।। श्रीहरिः ।।

                                                                                                                                                                                                     




           आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७७, रविवा

कल्याण सहज है


समय, समझ, सामग्री आदिकी किंचिन्मात्र भी कमी नहीं है । कमी केवल एक ही बातकी है कि हम अपना कल्याण चाहते नहीं हैं । कल्याण तब होगा, जब हम स्वयं चाहेंगे, स्वयं विचार करेंगे । दूसरेके कहनेसे कल्याण नहीं होगा । दूसरेके कहनेसे भी कल्याण तब होगा, जब आप स्वयं उस बातको मानोगे अर्थात्‌ वह बात आपकी हो करके ही आपके काम आयेगी ।

आपपर जितनी जिम्मेवारी है, उतना कर दो तो कल्याण हो जायगा । आप ज्यों-ज्यों बुद्धिमान बनते हो, त्यों-त्यों जिम्मेवारी बढ़ती है । बुद्धि जितनी कम है, जिम्मेवारी भी उतनी ही कम है । टैक्स इन्कमपर ही लगता है । जगात मालपर ही लगती है । माल ही नहीं तो जगात कैसी ? आप जितनी जानकारी बढ़ाते हैं, जितना संग्रह करते हैं, उतनी ही आपकी जिम्मेवारी बढ़ती है ।

अगर अपने कल्याणके लिये अधिक वस्तुकी आवश्यकता होती तो भगवान्‌ अधिक दे देते । दे देते ही नहीं, दे दिया है ! भगवान्‌ने अधिक वस्तु दी है, अधिक बुद्धि दी है, अधिक समय दिया है, अधिक योग्यता दी है, अधिक बल दिया है । भगवान्‌का दरबार अनन्त, अपार है । बालकका पालन-पोषण करनेके लिये माँकी जितनी शक्ति है, वह सब-की-सब बालकके लिये ही है । ऐसे ही हमारे प्रभुकी जो शक्ति है, वह सब-की-सब हमारे लिये ही है । सर्वसमर्थ, अनन्त सामर्थ्यवाले, परम दयालु, परम उदार, परम कृपालु, परम सुहृद् प्रभुने जीवको उसके कल्याणके लिये मनुष्य-शरीर दिया है तो उसमें कमी किस बातकी ? केवल इस बातको स्वीकार करनेसे आपका रास्ता एकदम साफ हो जायगा । परन्तु चतुराई, चालाकी मत करो, सीधे-सरल हो जाओ‒

सरल सुभाव न मन कुटिलाई ।

जथ   लाभ   संतोष   सदाई ॥

                  (मानस, उत्तरकाण्ड ४६/१)

जितना सरल होते हो, उतना रास्ता ठीक होता है । जितनी चतुराई करते हो, उतना रास्ता कठिन हो जाता है । जितना कर सकते हैं, उतना ही करना है । जितना जान सकते हैं, उतना ही जानना है । जितना मान सकते हैं, उतना ही मानना है । अधिक करनेकी, जानने और माननेकी जरूरत नहीं है । जितना है, उसीका सदुपयोग करना है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒ ‘अच्छे बनो’ पुस्तकसे