जिस दिन साधकके भीतर यह उत्कट अभिलाषा जाग्रत्
हो जाती है कि परमात्मा अभी ही प्राप्त होने चाहिये अभी, अभी......अभी ! उसी दिन उसे परमात्मकी प्राप्ति हो सकती है ! साधककी योग्यता, अभ्यास आदिके बलपर
परमात्माकी प्राप्ति हो जाय‒यह सर्वथा असम्भव है । परमात्माकी प्राप्ति केवल उत्कट
अभिलाषासे ही हो सकती है । आप सगुण या निर्गुण, साकार या निराकार‒किसी भी तत्त्वको
मानते हों, उसके बिना आपसे रहा नहीं जाये, उसके बिना चैन न पड़े । भक्तिमती
मीराबाईने कहा है‒ हेली म्हाँस्यूँ हरि बिन रह्यो न जाय ॥ ‘हे सखी ! मुझसे हरिके बिना रहा नहीं जाता ।’ निर्गुण-उपासकोंने भी यही कहा है‒ दिन नहिं भूख रैन
नहिं निद्रा, छिन-छिन व्याकुल होता हिया, चितवन मोरी तुमसे लागी पिया ॥ तत्त्वकी प्राप्तिके बिना दिनमें भूख नहीं लगती और रातमें
नींद नहीं आती ! आप कैसे मिलें ! क्या करूँ ? हृदयमें क्षण-क्षण व्याकुलता बढ़ रही
है । उसे छोड़कर और कुछ सुहाता नहीं । सन्तोंने भी कहा है‒ ‘नारायण’ हरि लगन में
ये
पाँचों न सुहात । विषय भोग, निद्रा हँसी, जगत् प्रीति, बहु बात ॥ ये विषयभोगादि पाँचों चीजें जिस दिन सुहायेंगी नहीं, अपितु
कड़वी अर्थात् बुरी लगेंगी, भगवान्का वियोग सहा नहीं जायगा । उसी दिन प्रभु मिल
जायेंगे । इतने प्यारे भगवान् ! इतने प्रियतम परमात्मा
! जिनके समान कोई प्यारा हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं, ऐसे अपने
प्यारे प्रभुके वियोगमें हम दिन बिता रहे हैं ! उनके मिले बिना ही हम सुखसे रह रहे
हैं ! भगवान् कहते हैं इतनेसे ही काम चलाओ औरकी जरूरत नहीं है,
इसीलिये चाह पूरी नहीं करते । परन्तु जो भगवान्के लिये दुःखी हो जायगा उसका दुःख
भगवान्से नहीं सहा जायगा । उनके मिले बिना ही हम नींद लेते हैं, आराम करते हैं !
बड़ा काला दिन है । इस प्रकार यदि प्रभुके बिना
क्षण-क्षणमें महान् दुःख होने लगे, प्राण छटपटाने लगें तो भगवान् उसी समय मिल
जायेंगे । उनके मिलनेमें देरी नहीं है । भक्तका भगवत्प्राप्ति-विषयक दुःख वे सह
नहीं सकते । वे कृपाके समुद्र हैं ! फिर भी संसार दुःखी है न ! संसार तो दुःखके लिये ही दुःखी हो रहा है । इसे दुःख चाहिये, इसे आफत और चाहिये, धन और चाहिये, बेटा-पोता और चाहिये ! भगवान्के लिये अगर दुःखी हो जाय तो वे तुरन्त आ जायेंगे । इसके लिये भीतर एकमात्र यही लगन पैदा हो जाय कि भगवान्के दर्शन कैसे हों ? भगवान् कैसे मिलें ? क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? ऐसी छटपटाहट तो लगे ! |