मन कैसे स्थिर हो ? मनको स्थिर करनेके लिये बहुत सरल युक्ति
बताता हूँ । आप मनसे भगवान्का नाम लें और मनसे ही गणना
रखें । राम-राम-राम‒ऐसे रामका नाम लें । एक राम, दो राम, तीन राम, चार राम,
पाँच राम । न तो एक-दो-तीन बोलें, न अँगुलियोंपर रखें, न मालापर रखें । मनसे ही नाम लें और मनसे ही गणना करें । करके देखो मन
लगे बिना यह होगा नहीं और होगा तो मन लग ही जायगा । एकदम सरल युक्ति है‒मनसे ही नाम लो, मनसे ही गिनती करो और
फिर तीसरी बार देखो तो उसको लिखा हुआ देखो । “राम” ऐसा सुनहरा चमकता हुआ नाम लिखा
हुआ दीखे । ऐसा करनेसे मन कहीं जायगा नहीं और जायगा तो यह क्रिया होगी नहीं । इतनी
पक्की बात है । कोई भाई करके देख लो । सुगमतासे मन लग जायगा । कठिनता पड़ेगी तो यह
क्रम छूट जायगा । न नाम ले सकोगे, न गणना कर सकोगे, न देख सकोगे । इसलिये मनकी आँखोंसे देखो, मनके कानोंसे सुनो, मनकी जबानसे
बोलो । इससे मन स्थिर हो जायगा । दूसरा उपाय यह है कि जबानसे आप एक नाम लो और
मनसे दूसरा । जैसे मुँहसे
नाम जपो‒ हरे राम हरे राम राम
राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥ ऐसा करते रहो । भीतर राम-राम-राम‒कहकर मन लगाते
रहो । देखो मन लगता है या नहीं । ऐसा सम्भव है तभी बताता हूँ । कठिन इसलिये है कि मन आपके काबूमें नहीं है ।
मन लगाओ, इससे मन लग जायगा । तीसरा उपाय बतावें । अगर मन लगाना है तो मनसे कीर्तन करो । मनसे ही रागनीमें गाओ । मन लग जायगा ।
जबानसे मत बोलो । कण्ठसे कीर्तन मत करो । मनसे ही कीर्तन करो और मनकी रागनीसे
भगवान्का नाम जपो । पहले
रागको मिटाना बहुत आवश्यक है और राग मिटता है सेवा करनेसे । उत्पन्न और नष्ट होनेवाली वस्तुओंके द्वारा किसी तरहसे सेवा
हो जाय, यह भाव रखना चाहिये । पारमार्थिक मार्गमें,
अविनाशीमें, भगवान्की कथामें अगर राग हो जाय तो प्रेम हो जायगा । भगवान्में,
भगवान्के नाममें, गुणोंमें, लीलामें आसक्ति हो जाय तो बड़ा लाभ होता है । अपने स्वार्थ और अभिमानका त्याग करके सेवा करें तो भी राग मिट
जाता है । नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे |