।। श्रीहरिः ।।

           


आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७८, शुक्रवार
                             
      भगवान्‌में मन कैसे लगें ?


आप जो सम्बन्ध भगवान्‌के साथ मान लें, भगवान्‌ भी वही सम्बन्ध माननेको तैयार हैं । आपको सरलतासे जैसा भाव आवे, वैसा ही भाव कर लो ।

तू दयालु, दीन हौं, तू दानि हौं भिखारी ।

हौं  प्रसिद्ध  पातकी,  तू पाप-पुंज-हारी ॥

नाथ तू अनाथको,  अनाथ  कौन  मोसो ।

मो समान आरत नहीं,  आरतिहर तोसो ॥

ऐसे ही तुलसीदासजी आगे कहते हैं‒

तोहिं मोहिं नाते अनेक,   मानिये जो भावै ।

ज्यों-त्यों तुलसी कृपालु ! चरन-सरन पावै ॥

ऐसे ही मान लो । भगवान्‌के प्रति भाव बदल लो । भगवान्‌को भगवान्‌ ही मान लो चाहे अपना प्यारा मान लो, जो भाव प्यारा लगे उनके साथ वही भाव मान लो । यहाँ कई वर्षों पहले व्याख्यान करते हुए मेरेसे एक भाईने प्रश्न किया‒मुझे तो माँका नाम प्यारा लगता है । प्रत्येकका ही ऐसा भाव होता है कि माँ अच्छी लगती है । पालन करनेवाली होती है माँ, बूढ़े हो जायँ तबतक माँ याद आती है । माँका स्नेह होता है । स्नेहका प्रभाव ज्यादा हो जाता है । तो, मेरेसे पूछा था एक सज्जनने कि भगवान्‌को हम माँ कहकर पुकार सकते हैं क्या ?

भगवान्‌में स्त्री-पुरुषका बिलकुल भेद है ही नहीं । माँ कहोगे तो माँ-रूपमें आ जायेंगे भगवान्‌ । प्रबोध-सुधाकर पुस्तकमें श्रीशंकराचार्यजी महाराज (वेदान्तके आचार्य)-ने, ‘मातः कृष्णाऽभिधाना’ लिखा है । वे भी कृष्णभगवान्‌को माँ कहकर पुकारते हैं । माँ कहकर पुकारो । माँ-नामसे यदि स्नेह जागृत होता हो, मन लगता हो तो भगवान्‌को माँ कहो, पिता कहो, भाई कहो । जो नाम प्यारा लगे, जो सम्बन्ध प्यारा लगे । ऐसा नहीं मान सको तो राधाजीको माँ बना लो, नहीं तो कृष्ण माँ हैं मेरी । ऐसा मान लो ।

पहले आरम्भ-आरम्भमें ही सम्बन्ध जोड़नेमें मन जगह-जगह जाता है । उद्देश्य एक बना लें । लक्ष्य एक बना लें । बस, फिर बादमें जगह-जगह मन नहीं जायगा, फिर एकमें ही मन रहेगा । जैसे लड़का हो या लड़की । आप उसका सम्बन्ध करते हो, लड़केका सम्बन्ध करते हो तो अनेक लड़कियोंकी बातें करो तो छोरा सुनेगा । लड़कीका सम्बन्ध आप करते हो, अपनी स्त्रीसे बातें करते हो कि देखो वहाँ ऐसा लड़का है, इतना पढ़ा-लिखा है । इस प्रकारकी बातें करोगे‒तो लड़की सुनेगी । ऐसी बातें लड़की कबतक सुनती है ? जबतक उसका सम्बन्ध पक्का नहीं हो जाता । आप सम्बन्ध पक्का कर दें, अमुकके साथ बात पक्की हुई । उसके बाद (सम्बन्ध पक्का होनेके बाद) छोरी केवल उसकी बात सुनेगी । दूसरेकी बात इस प्रकारसे नहीं सुनेगी । सुनेगी तो परवाह नहीं करेगी । ऐसे ही लड़केका यदि किसीके साथ सम्बन्ध पक्का हो गया तो लड़का सम्बन्धवाली उस लड़कीकी ही बात सुनेगा कि कैसी योग्यता है ? कैसी बात है ? लड़की भी छिप-छिपकर सुनती है । यह क्या है ? सम्बन्ध हो गया न अब । सम्बन्ध न होता, तो इस प्रकार नहीं सुनती । बहुत-सी बातें होती है, पर नहीं सुनते । तो हम भगवान्‌की बातें क्यों नहीं सुनते हैं, क्योंकि सम्बन्ध जोड़ा नहीं । जब सम्बन्ध भगवान्‌के साथ जोड़ लेंगे तो उनकी बातें ही सुनेंगे ।