आप, भाई-बहन कृपा करो । अभी अपनी सभी चीजोंको भगवान्की मान लो । हृदयसे मान लो कि हे नाथ
! यह सब कुछ आपका है । गहना, कपड़ा, भोजन, मकान आदि सब कुछ प्रभुका प्रसाद है । अब भगवान्की मर्जी
हो वहाँ रखो । हम लौटकर क्यों आयेंगे ? हमारी
कहीं ममता नहीं । कोई हमारा है ही नहीं । ऐसा कृपा करके भगवान्को सब कुछ
दे दो । वास्तवमें सब कुछ भगवान्का ही है । हमने उसको
अपना माना है । केवल मान्यता छोड़नी है । महाराज रघुने विश्वजित्-याग किया
। संसारपर विजय कर ले और बादमें सर्वस्व दान कर दे‒यह विश्वजित्-याग होता है ।
सज्जनो ! आप और हम‒सब विश्वजित्-याग कर सकते हैं । हृदयसे
सब वस्तुओंको भगवान्के अर्पण कर दें । शरीरको भी अपना न माने । कोई वस्तु हमारी
है ही नहीं‒हृदयसे यदि ऐसा भाव कर लें, तो विश्वजित्-यज्ञ हो जायगा और कहीं जाना
भी नहीं पड़ेगा । लोग कहते हैं कि भगवान्की मायासे हम मोहित हो गये । भगवान्की मायासे मोहित नहीं हुए, लेकिन भगवान्की मायाको अपना
मान लिया, इसलिये मोहित हो गये हैं । भगवान्की माया किसीको मोहित करती ही
नहीं । वह तो सबका काम सुचारुरूपसे चले, ऐसी सुविधा देती है, कृपा करती है ।
परन्तु आप मिली हुई वस्तुओंपर कब्ज़ा कर लेते हो । उन्हें
अपना मान लेते हो । सज्जनो ! ये आपकी हैं ही नहीं, थीं नहीं और रहेंगी भी नहीं ।
अभी भी निरन्तर इनका वियोग हो रहा है । ध्यान दें, जितने दिन आप-हम इन वस्तुओंको
अपना मानकर जी गये, उतना इनसे वियोग हो गया । यदि कोई चीज हमारे पास पचास वर्ष
रहनेवाली है और दस वर्ष बीत गये, तो अब वह चीज पचास वर्ष हमारे पास रहेगी ? अब तो
चालीस वर्ष ही रहेगी । इसलिये वियोग तो निरन्तर हो ही रहा है । जिस वस्तुको आप
अपनी मानते हैं, वह आपसे प्रतिक्षण अलग हो रही है । पहले अलग थी, बादमें अलग रहेगी
और अभी वर्तमानमें भी अलग हो रही है । वस्तु कभी नहीं कहती कि ‘तुम मेरे हो और मैं
तुम्हारी हूँ ।’ आप कहते हैं कि यह मेरी है । अतः आपको लौटकर आना होता है । घरने
आपको मेरा नहीं कहा, वस्तुओंने आपको मेरा नहीं कहा और सच्ची
पूछो तो कुटुम्बीजन भी आप जबतक जीते हैं, तभीतक मेरा-मेरा कहते हैं ।
प्राण-निकलनेपर जलाकर भस्म कर देंगे, फूँक देंगे‒ स्वास थकां सब आस करै, स्वास गया अब काढ़ो रे काढ़ो । धरती को धन्न बताय दियो, अब नाख सनेती
में बाँधो रे गाढ़ो ॥ अड़ोस-पड़ोस के आप खड़े सब, कोऊ न कहवत
राखो रे ठाढ़ो । ठेट मसाण पौंचाय दियो अब,
रह गयी जान चल्यो गयो लाडो ॥ फिर भी कहते हैं‒यह मेरा ! यह मेरा ! आपका क्या है ? शरीर भी यहीं पड़ा रह जायगा । भाइयो, बहनो ! कृपा करो और हृदयसे कह दो कि यह सब कुछ भगवान्का है । |