।। श्रीहरिः ।।

    


आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन कृष्ण दशमी, वि.सं.-२०७८, शुक्रवार
                             
    जीव लौटकर क्यों आता है ?



आप, भाई-बहन कृपा करो । अभी अपनी सभी चीजोंको भगवान्‌की मान लो । हृदयसे मान लो कि हे नाथ ! यह सब कुछ आपका है । गहना, कपड़ा, भोजन, मकान आदि सब कुछ प्रभुका प्रसाद है । अब भगवान्‌की मर्जी हो वहाँ रखो । हम लौटकर क्यों आयेंगे ? हमारी कहीं ममता नहीं । कोई हमारा है ही नहीं । ऐसा कृपा करके भगवान्‌को सब कुछ दे दो । वास्तवमें सब कुछ भगवान्‌का ही है । हमने उसको अपना माना है । केवल मान्यता छोड़नी है । महाराज रघुने विश्वजित्-याग किया । संसारपर विजय कर ले और बादमें सर्वस्व दान कर दे‒यह विश्वजित्-याग होता है । सज्जनो ! आप और हम‒सब विश्वजित्-याग कर सकते हैं । हृदयसे सब वस्तुओंको भगवान्‌के अर्पण कर दें । शरीरको भी अपना न माने । कोई वस्तु हमारी है ही नहीं‒हृदयसे यदि ऐसा भाव कर लें, तो विश्वजित्-यज्ञ हो जायगा और कहीं जाना भी नहीं पड़ेगा ।

लोग कहते हैं कि भगवान्‌की मायासे हम मोहित हो गये । भगवान्‌की मायासे मोहित नहीं हुए, लेकिन भगवान्‌की मायाको अपना मान लिया, इसलिये मोहित हो गये हैं । भगवान्‌की माया किसीको मोहित करती ही नहीं । वह तो सबका काम सुचारुरूपसे चले, ऐसी सुविधा देती है, कृपा करती है । परन्तु आप मिली हुई वस्तुओंपर कब्ज़ा कर लेते हो । उन्हें अपना मान लेते हो । सज्जनो ! ये आपकी हैं ही नहीं, थीं नहीं और रहेंगी भी नहीं । अभी भी निरन्तर इनका वियोग हो रहा है । ध्यान दें, जितने दिन आप-हम इन वस्तुओंको अपना मानकर जी गये, उतना इनसे वियोग हो गया । यदि कोई चीज हमारे पास पचास वर्ष रहनेवाली है और दस वर्ष बीत गये, तो अब वह चीज पचास वर्ष हमारे पास रहेगी ? अब तो चालीस वर्ष ही रहेगी । इसलिये वियोग तो निरन्तर हो ही रहा है । जिस वस्तुको आप अपनी मानते हैं, वह आपसे प्रतिक्षण अलग हो रही है । पहले अलग थी, बादमें अलग रहेगी और अभी वर्तमानमें भी अलग हो रही है । वस्तु कभी नहीं कहती कि ‘तुम मेरे हो और मैं तुम्हारी हूँ ।’ आप कहते हैं कि यह मेरी है । अतः आपको लौटकर आना होता है । घरने आपको मेरा नहीं कहा, वस्तुओंने आपको मेरा नहीं कहा और सच्ची पूछो तो कुटुम्बीजन भी आप जबतक जीते हैं, तभीतक मेरा-मेरा कहते हैं । प्राण-निकलनेपर जलाकर भस्म कर देंगे, फूँक देंगे‒

स्वास थकां सब आस करै, स्वास गया अब काढ़ो रे काढ़ो ।

धरती को धन्न बताय दियो, अब नाख सनेती में बाँधो रे गाढ़ो ॥

अड़ोस-पड़ोस के आप खड़े सब, कोऊ न कहवत राखो रे ठाढ़ो ।

ठेट मसाण पौंचाय दियो अब, रह गयी जान चल्यो गयो लाडो ॥

फिर भी कहते हैं‒यह मेरा ! यह मेरा ! आपका क्या है ? शरीर भी यहीं पड़ा रह जायगा । भाइयो, बहनो ! कृपा करो और हृदयसे कह दो कि यह सब कुछ भगवान्‌का है ।