मैंने बहुत बार कहा है, अब भी कहता हूँ । जब आप बालक थे, तब
अपनेको बालक कहते थे । परन्तु अब आप अपनेको बालक नहीं कहते । आपने कौन-सी तारीखको
बालकपना छोड़ा ? कोई भाई-बहन बता सकता है तो बतायें ! वास्तवमें आपने बालकपन छोड़ा
नहीं, प्रत्युत वह अपने-आप छूट गया । जब बालकपन छूट गया तो जवानी नहीं छूटेगी ?
वृद्धावस्था नहीं छूटेगी ? छूटनेकी रीति है । जो निरन्तर
छूटता चला जा रहा है, उसके साथ सम्बन्ध केवल आपका माना हुआ है, वास्तवमें सम्बन्ध
है नहीं । परन्तु भगवान्के साथ आपका सम्बन्ध पहले भी था, अभी भी है और आगे भी
रहेगा । यह सम्बन्ध टूटेगा नहीं कभी । दुष्कर्मोंके कारण चाहे चौरासी लाख
योनियोंमें जाना पड़े, नरकोंमें जाना पड़े तो भी आप भगवान्से अलग नहीं हो सकते और
भगवान् आपसे अलग नहीं हो सकते । भगवान्के साथ अपने इस नित्य-सम्बन्धको तो आपने भुला दिया
और संसारके साथ सम्बन्ध मानकर भगवन्नामका जप करते हैं, इसी कारण भगवन्नामका प्रभाव
देखनेमें नहीं आ रहा है । कुटुम्बका सम्बन्ध तो ‘नदी-नाव-संयोग’ की तरह है । नदीके इस पार सब एक साथ नौकापर बैठ जाते हैं और उस पर पहुँचते
ही उतर जाते हैं । जबतक नदीसे पार नहीं होते, तभीतक हमारा सम्बन्ध रहता है । ऐसे
ही कुटुम्बका सम्बन्ध है, जो आगे रहेगा नहीं, छूट जायगा । यह सच्ची बात है । अगर आप इस बातको मान लें कि ‘मैं शरीर-संसारका नहीं हूँ और
शरीर-संसार मेरे नहीं हैं, मैं परमात्माका हूँ और परमात्मा मेरे हैं, मैं अपने
परमात्माका नाम लेता हूँ’ तो भगवान्की ताकत नहीं कि वे आपकी तरफ कृपादृष्टिसे न
देखें !
भगवान्के होकर भगवान्के नामका जप करो‒‘होहि राम को नाम जपु ।’ बच्चा माँके साथ जितना अधिक
घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है, माँ उतनी ही जल्दी उसके पास आती है । बालक जोरसे रो पड़ता
है तो माँ अपनी बड़ी लड़कीको भेजती है कि बेटी ! जा, भाईको समझा, राजी कर । वह आकर
भाईके हाथमें झुनझुनियाँ देती है, पर वह उसे
फेंक देता है । वह लड्डू देती है तो उसे भी फेंक देता है । बहन उसको
गोदीमें लेती है तो वह लात मारता है और माँ-माँ करता है । तब माँको उसके पास आना
ही पड़ता है । अगर वह झुनझुनियाँसे राजी हो जाय अथवा बहनकी गोदमें चला जय तो फिर
माँ उसके पास नहीं आती । बहनकी गोदमें माँका
दूध थोड़े ही है, वह प्यार थोड़े ही है ! इस तरह
नाम-जप करनेवालेका लोगोंमें आदर होता है कि वाह सा ! ये तो भगतजी हैं, भजन
करनेवाले हैं ! बस, अब झुनझुना बजाओ बैठे ! लोग़ आदर-सम्मान करने लगते हैं,
दण्डवत् प्रणाम करते हैं, पूजन करते हैं, प्रशंसा करते हैं कि बड़े भारी महात्मा
हैं । यह मायारूपी बहन आती है और गोदमें ले लेती है । उसमें राजी हो जाते हो तो
फिर भगवान् नहीं आते । नामकी बिक्री करके उसके बदले आदर लेते हो, भेंट-नमस्कार
लेते हो, सुख लेते हो तो बताओ । नामका संग्रह
कैसे हो ? सुख लेकर नामको खर्च कर रहे हो । |