पारमार्थिक साधनोंमें ‘क्रिया’ की प्रधानता नहीं
है, प्रत्युत ‘भाव’ और ‘ज्ञान’ की प्रधानता है । क्रियाकी प्रधानता तो सांसारिक कार्योंमें है । भगवन्नामका
जप क्रिया होते हुए भी भावको, ज्ञानको जाग्रत् करनेका विलक्षण साधन है । नामजपमें ‘भाव’ की प्रधानता है । भावकी कमी रहनेसे
नाम-जप करते हुए भी विशेष लाभ नहीं होता । भावके विषयमें बहुत-सी बातें हैं । पहली
बात यह है कि भगवान्के साथ अपनापन हो । अपनापन रखकर नाम-जप किया जाय तो उसका भगवान्पर असर पड़ता है ।
एक बालक माँ-माँ पुकारता है । यहाँ बैठी जिन बहनोंके बालक हैं, उन सभीका नाम माँ
है, पर उस बालककी पुकार सुनकर वे सब नहीं दौड़तीं । जिसको वह माँ कहता है, वही उठकर
दौड़ती है और उसको प्यारसे दुलारकर हृदयसे लगाती है । तात्पर्य है कि माँका होकर
माँको पुकारा जाय तो उसका माँपर असर पड़ता है । खेलते समय भी बालक माँ-माँ कहता है
। माँ देख लेती है कि वह खेलमें लगा हुआ है; अतः माँ-माँ कहनेपर भी माँपर इतना असर
नहीं पड़ता । नाम-जपकी खास विधि है‒भगवान्का होकर भगवान्का नाम लें । केवल भगवान् ही हमारे हैं और हम भगवान्के ही हैं; संसार
हमारा नहीं है और हम संसारके नहीं है‒यह अगर पक्का विचार हो जाय तो तत्काल लाभ
होता है । गोस्वामीजी महाराजने कहा है‒ बिगरी जनम अनेक की
सुधरै अबहीं आजु । होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥ (दोहावली २२) अनेक जन्मोंकी बिगड़ी हुई बात आज सुधर जाय और आज भी अभी-अभी,
इसी क्षण सुधर जाय । कैसे सुधर जाय ? तो कहते हैं कि तू रामजीका होकर रामजीको
पुकार । परन्तु हमारेसे भूल यह होती है कि हम संसारके होकर भगवान्को पुकारते है ।
संसारके काम-धन्धोंके कारण वक्त नहीं मिलता, हम तो संसारी आदमी हैं, कलियुगी जीव
हैं‒इस प्रकार अपने-आपको संसारी और कलियुगी मानोगे तो
आपपर संसारका और कलियुगका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा; क्योंकि उनके साथ आपने सम्बन्ध जोड़
लिया । बिजलीके तारसे सम्बन्ध जुड़ जाता है तो करेण्ट आ जाता है, ऐसे ही
संसार और कलियुगसे सम्बन्ध जोडेंगे तो उनका असर जरूर आयेगा । कहते हैं, महाराज !
हम तो खाली राम-राम करते हैं, तो ठोस भरा हुआ क्यों नहीं करते भाई ? मानो भगवान्के
नाममें तो खालीपना है और सम्बन्ध हमारा संसार और कलियुगसे है ! यह बहुत बड़ी गलती
है । वास्तवमें भगवान् ही हमारे हैं । जब हमने संसारमें जन्म नहीं लिया था, तब भी वे हमारे थे और जब मर जायँगे, तब भी वे हमारे रहेंगे । यह संसार पहले भी हमारा नहीं था, आगे भी हमारा नहीं रहेगा और अभी भी प्रतिक्षण हमारेसे अलग हो रहा है । उम्र बीतती चली जा रही है, शरीर भी बीतता चला जा रहा है और कलियुगका समय भी बीतता चला जा रहा है । संसारका सम्बन्ध आपके साथ है ही नहीं । इस बातको आप खयालमें रखें । |