एक खास बात ध्यान देनेकी है कि यह मानव-शरीर
केवल अपना कल्याण करनेके लिये ही मिला है । धन कमाना और भोग भोगना‒यह
मनुष्य-शरीरका प्रयोजन है ही नहीं । भोग भोगना तो हरेक योनिमें होता है । देवताओंसे लेकर नरकोंमें पड़े हुए
जन्तुओंतकके लिये भोग मिलते हैं । इन्द्रियाँसे होनेवाला सुख स्वर्गमें भी मिलता
है और नरकोंमें भी । नरकोंमें, जहाँ बड़ी घोर यातनाएँ दी जाती हैं, उबलते हुए तेलमें
डाल दिया जाता है, शरीरके टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं, तो भी नरकोंमें रहनेवाला
जीव मरता नहीं । जब उसे उबलते हुए तेलसे निकाला जाता है, उस समय उसे सुखका अनुभव
होता है । शरीरके टुकड़े-टुकड़े करनेपर दुःख होता है; परन्तु शरीर मिलनेपर एक सुख
होता है । इस प्रकार इन्द्रियोंसे होनेवाला सुख तो नरकोंमें भी मिलता है; कुत्ते,
गधे, सूअर आदिको भी सुख मिलता है । परन्तु मनुष्य-शरीर
सुख भोगनेके लिये, ऐश-आराम करनेके लिये है ही नहीं । दुःख भोगनेके लिये भी यह
मनुष्य-शरीर नहीं है । सुखकी मुख्यता स्वर्गमें रहती है और दुःखकी मुख्यता
नरकोंमें रहती है । मनुष्य-शरीरमें सुख और दुःख दोनों ही
आते हैं । परन्तु मनुष्य-शरीर सुख और दुःख‒दोनोंसे ऊँचा उठकर अपना कल्याण करनेके
लिये मिला है ।
एक
मार्मिक बात है । मनुष्यको जितनी सुख-सामग्री मिलती है, वह केवल दूसरोंका हित
करनेके लिये मिलती है, और जितनी दुःख-सामग्री मिलती है, वह केवल सुख-बुद्धि
हटानेके लिये मिलती है । ये दोनों बातें खूब सोचनेकी हैं । संसारका सुख क्या है ? जिस
वस्तुकी चाहना होती है, वह वस्तु मिल जाय तो उससे सुख होता है । जैसे, धनकी
लालसा हो तो धन मिलनेसे सुख होगा । जोरदार भूख लगे तो भोजन मिलनेसे सुख होगा ।
जोरदार प्यास लगे तो जल मिलनेसे सुख होगा । इस प्रकार कामनाकी पूर्ति होनेसे एक
सुख होता है । वह सुख कामनाके आधीन है । अगर जोरदार भूख न हो और भोजन बढ़िया मिल
जाय तो सुख नहीं होगा । मनमें लोभ नहीं होगा तो धनके मिलनेसे सुख नहीं होगा ।
तात्पर्य है कि जिस चीजके न मिलनेसे दुःख होगा, उस चीजके
मिलनेसे ही सुख होगा, संसारके जितने संयोग हैं, उनमें पहले दुःख होगा, तभी उनसे
सुख मिलेगा । अगर दुःख नहीं होगा तो संसारके पदार्थ सुख नहीं देंगे । अतः
उस सुखका कारण दुःख हुआ और उस सुखके बादमें भी दुःख जरूर होगा । जैसे, धन मिलनेसे
सुख होता है और धन चला जाता है तो दुःख होता है । अनुकूल सामग्री मिले तो सुख होता
है और वह नष्ट हो जाय तो दुःख होता है । सुख आता है तो अच्छा लगता है और जाता है तो बुरा लगता है
। ऐसे ही दुःख आता है तो बुरा लगता है और जाता है तो अच्छा लगता है । अच्छा लगना और बुरा लगना दोनोंमें हैं । एक
तरफ सुख और एक तरफ दुःख होता है, पर दोनोंको तौलकर देखा जाय तो कोई फर्क नहीं है ! |