प्रश्न‒सत्संगसे मुफ्तमें लाभ मिलता है सो कैसे ? उत्तर‒सत्संगसे
जो लाभ होता है वह साधनसे नहीं होता । साधन करके जो परमात्माको प्राप्त
करता है, वह कमाकर धनी बनता है और सत्संगसे वह गोद चला जाता है, कमाया हुआ धन मिल
जाता है । सन्तोंका कमाया हुआ धन मिलता है । गोद जानेवालेको क्या जोर आवे ? आज
कंगाल और कल लखपति । वह तो जा बैठा गोदमें । कमाये हुए धनका मालिक हो जाता है । सत्संगके द्वारा ऐसी चीजें मिलती हैं, जो वर्षोंतक साधन करनेसे
भी नहीं मिलतीं । अतः सत्संग मिल जाय तो अवश्य करना चाहिये । मुफ्तमें
कल्याण होता है, मुफ्तमें । प्रश्न‒नाम-जपसे अधिक सत्संगकी महिमा कही‒इसका
क्या कारण है ? उत्तर‒सत्संग करनेवाला
नाम जपे बिना रह नहीं सकता । नाम-जप स्वाभाविक ही होगा । प्रश्न‒सत्संग न मिले तो क्या करें ? उत्तर‒भगवान्से
प्रार्थना करें हे नाथ ! हे नाथ ! करके पुकारो । भगवान् सर्वसमर्थ हैं । इसके
अलावा सत्-शास्त्रोंका अध्ययन करें । प्रश्न‒मनुष्यका सुधार करनेमें सबसे बढ़िया उपाय
क्या है ? आप अपने अनुभवके आधारपर बतावें ? उत्तर‒मेरेको
जितना लाभ सत्संगसे हुआ है, उतना किसी साधनसे नहीं हुआ । अच्छे संगमें रहनेसे बड़ा
भारी लाभ होता है, जिसकी कोई सीमा नहीं । सत्संग मत छ़ोडो, जिस सत्संगसे
अपने हृदयकी गाँठ खुलती है, आत्मसाक्षात्कार होता है, प्रकाश मिलता है, ऐसा सत्संग
छोड़ो मत । सब कुछ मिल जाता है पर ‘सन्त समागम दुर्लभ भाई
।’ प्रश्न‒सत्संगसे प्रकाश कैसे मिलता है ? उत्तर‒सत्संगतिका अर्थ
होता है प्रकाश । जैसे हम कहीं जाते हैं और रात्रिका समय हो तो मोटरका प्रकाश
सामने ही रहता है । ऐसा नहीं होता कि प्रकाश पीछे रह जाय और मोटर आगे निकल जाय ।
प्रकाश आगे ही रहेगा और वह प्रकाश चलनेके लिए रास्ता बताता है । ऐसे ही सत्संगतिसे
मनुष्यको प्रकाश मिलता है कि हम कैसे चलें ? सत्संगकी बातें केवल याद कर लें,
पुस्तकोंमें पढ़ लें, लोगोंसे कह दें और हम उसके अनुसार चलें नहीं तो प्रकाशको तेज
करनेमात्रसे रास्ता नहीं कटता । लाइट कम भी है, परन्तु जहाँतक रास्ता दीखता है,
वहाँतक हम चलते जायें तो उससे आगे दीखने ही लगेगा‒यह नियम है । परन्तु एक जगह
खड़े-खड़े कितनी ही तेज लाइट कर लें, गन्तव्य स्थान नहीं दीखेगा । ऐसे ही सत्संगतिके
द्वारा हमें जो प्रकाश मिल जाय उसके अनुसार चलें । तभी वह प्रकाश सार्थक होता है ।
जीवन न भी बनावें तो भी यह प्रकाश निरर्थक नहीं जाता; क्योंकि जो सत्य चीज है, वह
प्रकट हो ही जाती है । सत्यकी विजय होती है, झूठकी विजय
नहीं होती । परन्तु यदि सत्यका आदर करें तो बहुत जल्दी और विशेष लाभ ले सकते हैं ।
तो सत्संगकी
बातें अपने आचरणमें लाना चाहिये । नारायण ! नारायण !! नारायण !!! ‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे |