।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   फाल्गुन कृष्ण पंचमी, वि.सं.-२०७८, सोमवार
           सत्संगकी आवश्यकता


जो साधारण संसारी मनुष्य हैं, साधन भी नहीं करते‒उनके भी मनको, कानोंको, सत्संगकी बातें अच्छी लगती हैं‒श्रोत्रमनोऽभिरामात्, सत्संगसे एक प्रकारकी शान्ति मिलती है, स्वाभाविक मिठास आती है ।

इसलिये तीन प्रकारके मनुष्योंका वर्णन किया‒

(१) निवृत्ततर्षैरुपगीयमानात् (सिद्ध)

(२) भवौषधात् (साधक)

(३) श्रोत्रमनोऽभिरामात् (विषयी)

भगवान्‌के गुणानुवादसे उपराम कौन होते हैं ? जो नहीं सुनना चाहते । वे पशुघ्न होते हैं अर्थात् महान् घातक (कसाई) होते हैं । क उत्तमश्लोकगुणानुवादात् पुमान् विरज्येत कौन भगवान्‌के गुणनुवाद सुने बिना रह सकता है ? विना पशुघ्रात् पशुघ्रातीके सिवाय ।

पापवंत  कर    सहज  सुभाऊ ।

भजनु मोर तेहि भाव न काऊ ॥

                    (मानस, सुन्दर ४४/३)

महान् पापी अथवा ज्ञानका दुश्मन‒इनके सिवाय हरिकथासे विरक्त कौन होगा ?

जहाँ भगवान्‌की कथा होती है, वहाँ भगवान्‌, भगवान्‌के भक्त, सन्त-महात्मा, नारद-सनकादि ऋषि-मुनि तथा जीवन्मुक्त-महापुरुष भी खिंचे चले आते हैं; क्योंकि यह अत्यन्त विलक्षण है ।

भगवान्‌की सवारी हैं गरुड़ । उन गरुड़जीके बारेमें कहा गया हैगरुड़ महाग्यानी गुनरासी । गरुड़जी जब उड़ते हैं तो उनके पंखोंसे सामवेदकी ऋचाएँ निकलती हैं । हरिसेवक अतिनिकट निवासी । ऐसे गरुड़जी, जो सदा ही भगवान्‌के पास रहते हैं, उनको मोह हो गया, जब भगवान्‌ श्रीरामको नागपाशमें बँधे देखा । भगवान्‌का यह चरित्र देखा तो उनके मनमें सन्देह हो गया कि ये काहेके भगवान्‌, जिनको मैंने नागपाशसे छुड़ाया । मैं नहीं छुड़ाता तो इनकी क्या दशा होती ?

इसी प्रकार भगवान्‌ श्रीरामको, हा सीते ! हा सीते ! पुकारते हुए जंगलमें भटकते देखकर सतीको सन्देह हो गया था कि ये कैसे भगवान्‌ जो अपनी स्त्रीको ढूँढ़ते फिर रहे हैं और उसके वियोगमें रुदन कर रहे हैं ।

गरुड़जी और सतीके उदाहरण इसलिये दिये कि इन्हें स्वयं श्रीरामजीके चरित्र देखनेसे मोह पैदा हो गया और चरित्र-श्रवणसे मोह दूर हुआ । इससे सिद्ध हुआ कि भगवान्‌के चरित्र देखनेसे भी भगवान्‌के चरित्र सुनना बढ़िया है । साक्षात् दर्शनसे भी चरित्र सुनना उत्तम है; क्योंकि दर्शनोंसे तो मोह पैदा हुआ है और कथा सुननेसे दूर हुआ ।

भगवान्‌की कथा गरूड़, सती आदिके मोहको दूर करती है, इसका तात्पर्य यह है कि जिनको मोह हो गया, वे भी सत्संगके अधिकारी है तो जिनको मोह नहीं है, वे तत्त्वज्ञ पुरुष भी अधिकारी है तथा घोर संसारी आदमी सुनना चाहें तो वे भी अधिकारी हैं । कोई ज्ञानका दुश्मन ही हो तो उसकी बात अलग है । हरि-कथामें रुचि नहीं तो भाई ! अन्तःकरण बहुत मैला है । मामूली मैला नहीं है । मामूली मैला होगा तो स्वच्छ हो जायगा, परन्तु ज्यादा मैला होनेसे सत्संग अच्छा नहीं लग सकता ।