।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   फाल्गुन कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०७८, मंगलवार
           सत्संगकी आवश्यकता


सत्संगति सब मैलोंको दूर करती है; परन्तु सत्संग करते रहनेसे । यदि मनुष्य सत्संगति करे ही नहीं तो मैल दूर कैसे हो ? पित्तका बुखार होनेसे मिश्री कड़वी लगती है, कैसे करें ? तो कड़वी लगनेपर भी खाते रहो । मिश्रीमें खुदमें ताकत है कि वह पित्तको शान्त कर देगी और मीठी लगने लग जायगी । ऐसे ही सत्संग-भजनमें रुचि न हो तो भी सत्संग-भजन करते रहनेसे ज्यों-ज्यों पाप नष्ट होने लगेंगे, त्यों-त्यों सत्संगमें मिठास आने लगेगा ।

जिस मिठाईको हम चखे ही नहीं, उसका स्वाद हम कैसे जान सकते हैं । ऐसे ही जिन्होंने सत्संग किया ही नहीं, वे इसकी विशेषता नहीं जानते, फिर भी कह देते हैं कि हमने बहुत सत्संग सुना है । तो समझ लेना चाहिये कि उन्होंने विशेष सत्संग किया ही नहीं, अन्यथा सत्संगमें रुचि अवश्य बढ़ती

राम चरित जे  सुनत  अघाहीं ।

रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं ॥

(मानस, उत्तर. ५३/१)

जो मनुष्य भगवान्‌के चरित्र सुनते हैं और तृप्त हो जाते हैं, उन्होंने राम-कथाका विशेष रस जाना ही नहीं । अन्यथा

जिन्ह के श्रवन    समुद्र समाना ।

कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना ॥

भरहिं  निरंतर  होहिं  न पूरे ।

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(मानस, अयोध्या १२८/४-५)

आपकी कथाएँ नदियोंके समान और उन सत्संग-प्रेमियोंके कान ऐसे समुद्रके समान हैं; जो निरन्तर कथारूपी नदियोंके गिरने (मिलने)-पर भी कभी पूरे भरते नहीं हैं । राजा पृथुने भगवान्‌की कथा सुननेके लिये दस हजार कान माँगे ।

पागल व्यक्ति जैसे सँभालकर नहीं बोल सकताऐसे ही संसारी पुरुष सत्संगके बारेमें उलटी-सीधी बातें कहते हैं

बातुल  भूत  बिबस  मतवारे ।

ते नहिं बोलहिं बचन बिचारे ॥

(मानस, बाल ११५/७)

ऐसे लोगोंके पैरोंमें पड़ जाओ । उनसे कहो—‘आप पवित्र हो, बड़ी अच्छी बात है । आप सत्संगमें पधारो । अन्य सत्संगमें आनेवाले लोगोंको पवित्र करो ।ऐसे कहकर उन्हें सत्संगमें बुलाओ । नहीं आवे तो उनकी मरजी । गाली दें तो सह लो । जो गाली सुनाता है वह तो हमारे पापोंको दूर करता है ।

सत्संगकी महिमा कहाँतक कही जाय ? स्वयं भगवान्‌ शंकर श्रीरामजीसे सत्संग माँगते हैं ।

बार  बार  बर  मागउँ  हरषि  देहु  श्रीरंग ।

पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥

(मानस, उत्तर.१४ (क) )

भगवान्‌ शंकरको कौन-सा पाप दूर करना था ? कौन-सी साधना सीखनी थी ? जो सदा सत्संग ही चाहते हैं । भगवान्‌ शंकरको कोई राम-कथा सुनानेवाले मिलते हैं तो सुनते हैं और पार्वतीजी-जैसे सुननेवाले मिलते हैं तो सुनाते हैं ।