।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   फाल्गुन कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७८, बुधवार
           सत्संगकी आवश्यकता


मच्चित्ता मद्गतप्राणा     बोधयन्तः परस्परम् ।

कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥

(गीता १०/९)

मेरमें चित्तवाले, मेरेमें प्राणोंको अर्पण करनेवाले भक्तजन आपसमें मेरे गुण, प्रभाव आदिको जनाते हुए और उनका कथन करते हुए ही नित्य-निरन्तर सन्तुष्ट रहते हैं और मेरेमें प्रेम करते हैं ।

एक भक्त हो गये हैंजयदेव कवि । गीत-गोविन्दउनका बनाया हुआ बहुत सुन्दर संस्कृत-ग्रन्थ है । भगवान्‌ जगन्नाथ स्वयं उनके गीत-गोविन्दको सुनते थे । भक्तोंकी बात भगवान्‌ ध्यान देकर सुनते हैं । एक मालिन थी, उसको गीत-गोविन्दका एक पद (धर) याद हो गया । वह बैगन तोड़ती जाती और पद गाती जाती थी । तो ठाकुरजी उसके पीछे-पीछे चलते और पद सुनते । पुजारीजी मन्दिरमें देखते हैं कि ठाकुरजीका वस्त्र फटा हुआ है । उन्होंने पूछा—‘प्रभो ! आपके यहाँ मन्दिरमें रहते हुए, यह वस्त्र कैसे फट गया; ठाकुरजी बोले—‘भाई ! बैगनके काँटोंमें उलझकर फट गया ।पुजारीने पूछा—‘बैगनके खेतमें आप क्यों गये थे ?’ ठाकुरजीने बता दिया; मालिन गीत-गोविन्दका धर गा रही थीअतः सुनने चला गया । वह चलती तो मैं पीछे-पीछे डोलता था, जिससे कपड़ा फट गया । ऐसे स्वयं भगवान्‌ भी सुनते हैं । क्या भगवान्‌के कोई रोग है, व्याधि है, पाप है, जिसे दूर करनेके लिये वे सुनते हैं ? फिर भी वे सुनते हैं । भगवान्‌की कथा सुननेके अधिकारी भक्त हैं, ऐसे ही भक्तकी कथा सुननेके अधिकारीभगवान्‌ होते हैं ।

जहाँ भक्तोंकी चर्चा होती है, वहाँ भगवान्‌ स्वयं पधारते हैं । नाभाजी महाराजने भक्तमाल की रचना की । उसके ऊपर प्रियादासजी महाराजने कवितामें टीका की । ये स्वयं ठाकुरजीका सिंहासन लगाकर, उन्हें कथा सुनाते थे । उनकी कथामें अनेक धनिक लोग भी आते थे । धनिकोंके आनेसे खतरा होता है । कुछ चोरोंने देखा कि यहाँ इतने धनी आदमी आते हैं, हम भी चलें । और कुछ नहीं मिला तो चोरोंने ठाकुरजीकी प्रतिमा चोरी कर ली । प्रियादासजी महाराजने कहा‒हमारे मुख्य श्रोता चले गये, अब कथा किसे सुनावें ? कथा बन्द । ठाकुरजी चले गये । अब भोग किसे लगावें ? भोजन बनाना बन्द ! भूखे रहे । कथा भी बन्द रही । उधर चोरोंके बड़ी खलबली मची । वे वापस लाकर ठाकुरजीको दे देते हैं । जब ठाकुरजी आ गये तो स्नान किया, ठाकुरजीको स्नान, श्रृंगार कराया । रसोई बनायी, भोग लगाया । उसके बाद कथा चली । जब कथा चली तो प्रसंग कहाँतक चला‒ऐसा किसीको याद नहीं रहा, तब ठाकुरजी स्वयं बोल पड़े कि अमुक प्रसंगतक कथा हुई थी । इस प्रकार स्वयं श्रीभगवान्‌ भक्तोंकी कथा ध्यानपूर्वक सुनते हैं ।

सूर्योदय होता है तो अन्धकार दूर हो जाता है, पर वह बाहरी अन्धकार होता है; किन्तु जब सत्संगरूपी सूर्य उदय होता है तो उससे भीतर (अन्तःकरण)-में रहनेवाला अँधेरा दूर हो जाता है । पाप दूर हो जाते हैं । शंकाएँ दूर हो जाती हैं । अन्तःकरणमें रहनेवाली तरह-तरहकी उलझनें सुलझ जाती हैं‒

राम माया सतगुरु दया, साधु संग जब होय ।

तब प्राणी जाने कछु, रह्यो विषय रस भोय ॥