।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७८, गुरुवार

संसारका आश्रय कैसे छूटे ?


यह संसार सब-का-सब छूटनेवाला ही है; परन्तु ऐसा जानते हुए भी इसको छोड़नेमें असमर्थता मालूम देती है । पर इस असमर्थता, कठिनताके आगे हार स्वीकार मत करो । घबरा जाओ तो भगवान्‌से प्रार्थना करो । चलते-फिरते कहो कि ‘हे नाथ ! क्या करूँ ! मेरेसे तो कुछ बनता नहीं !’ जितना संयोगजन्य सुख लिया है, उससे सवा गुणा अधिक दुःख हो जाय तो संसारसे माना हुआ सम्बन्ध छूट जायगा । इसलिये दुःखके समान उपकारी कोई है ही नहीं । पर वह दुःख भीतरसे होना चाहिये । परिस्थितिजन्य दुःख बाहरसे आता है । पुत्र नहीं है, धन नहीं है, मान नहीं है, यह नहीं है, वह नहीं हैये सब बाहरके दुःख हैं । ये नकली दुःख हैं, असली दुःख नहीं हैं । असली दुःख भीतरसे होता है । अपनी वास्तविक स्थिति नहीं हो रही है, भगवान्‌से प्रेम नहीं हो रहा है, भगवान्‌के दर्शन नहीं हो रहे हैं, संसारका आश्रय नहीं छूट रहा हैइस प्रकार भीतरसे जो दुःख होता है, जलन होती है, उसको भगवान्‌ सह नहीं सकते ।

भगवान्‌का स्वभाव है‘वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि’ अर्थात् भगवान्‌ भक्तके हितके लिये कठोरतामें तो वज्रसे भी कठोर हैं (वज्र पड़े तो पर्वतके भी टुकड़े-टुकड़े कर दे, ऐसे वज्रसे भी कठोर हैं), पर कोमलतामें वे पुष्पसे भी कोमल है ! सन्तोके लिये आया है

सन्त  हृदय  नवनीत   समाना ।

कहा कबिन्ह परि कहै न जाना ॥

निज  परिताप  द्रवइ  नवनीता ।

पर  दुख द्रवहिं सन्त सुपुनीता ॥

(मानस ७/१२५/४)

मक्खन तो अपने ही तापसे पिघल जाता है, पर सन्त दूसरेका दुःख देखकर पिघल जाते हैं । जब सन्त दूसरेका दुःख सह नहीं सकते, तब सन्तोंके इष्ट भगवान्‌ दूसरेका दुःख कैसे सह सकते हैं ?  भगवान्‌का ही तो स्वभाव सन्तोंमें आता है । भगवान्‌ बड़े शूरवीर हैं, परन्तु दूसरेके असली दुःखको सहनेमें बड़े कायर हैं । इसमें उनकी शूरवीरता रद्दी हो जाती है । लोग क्या कहेंगे ? क्या नहीं कहेंगे, प्रशंसा होगी या निन्दा होगीइस बातको वे कुछ नहीं गिनते । गोपियाँ कहती हैं कि ‘लाला, तुम नाचो तो हम तुम्हें छाछ देंगी’ तो भगवान्‌ नाचने लग जाते हैं ! जिनकी स्फुरणामात्रसे अनन्त ब्रह्माण्ड उत्पन्न और लीन होते हैं, वे भगवान्‌ छाछके लिये गोपियोंके आगे नाचने लग जाते हैं ! ऐसा नहीं कि मेरी कितनी बेइज्जती होगी । वे भगवान्‌ क्या आज बदल गये ? यदि हम संसारका आश्रय न छूटनेसे दुःखी हो जायँ, तो क्या वे हमारा दुःख सह सकते हैं ? नहीं सह सकते । उनकी कृपासे हमारा संसारका आश्रय छूट जायगा ।

नारायण !     नारायण !     नारायण !