।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      चैत्र कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.-२०७८, बुधवार

संसारका आश्रय कैसे छूटे ?


एक सन्तसे किसीने पूछा कि ‘महाराज ! भगवान्‌में मन कैसे लगे ? सन्तने उत्तर दिया कि तुम स्वयं भगवान्‌में लग जाओ तो मन भी आप-से-आप भगवान्‌में लग जायगा । मन कहाँ जाता है ? तुमने जहाँ-जहाँ अपना सम्बन्ध जोड़ा हैं, वहाँ-वहाँ मन जाता है । उसने कहा कि ‘महाराज ! मन तो हरेक जगह चला जाता है ।’ तो सन्तने कहा कि मनमें कभी वाइसरायकी चाय पीनेका संकल्प होता है क्या ?’ ‘नहीं होता ।’ ‘क्यों नहीं होता ?’ क्योंकि वहाँ हमने सम्बन्ध नहीं जोड़ा, वहाँ मन नहीं जाता । जहाँ आपने सम्बन्ध जोड़ा है, वहाँ मन जाता है । आप सम्बन्ध छोड़ दो तो मन वहाँ जाना छोड़ देगा । सब काम खुदका ही किया हुआ है

आप कमाया कामड़ा, किणने दीजै दोष ।

खोजेजी री पालड़ी, काँदे लीनी खोस ॥[*]

अगर खुदका पक्का विचार होगा तो उसको खुद ही मिटा दोगे । अगर उसको पूरा मिटाना चाहते हो, पर अपनी शक्तिसे वह मिटता नहीं तो ऐसी अवस्थामें आप रो दोगे । यह विद्या हम सबने बालकपनमें काममें ली है । बालकपनमें कौन-सा काम रोनेसे नहीं हुआ ! रोनेसे सब काम हुए । छोटा बच्चा रो करके अपने मनकी बात पूरी कर लेता है । यह रोना आपके, हमारे सबके काममें लिया हुआ उपाय है । अतः भगवान्‌के आगे रो पड़ो, तो भगवान्‌को झख मारकर आना पड़ेगा । हम भगवान्‌के प्यारे-से-प्यारे बच्चे हैं । अगर हम बेचैन होकर रो पड़ें तो भगवान्‌की ताकत नहीं है कि हमारी उपेक्षा कर दें; कर ही नहीं सकते !

हम संसारके भोगोंको चाहते हैं, उनके संग्रहको चाहते हैं, तो ये चीजें रोनेपर भी नहीं मिलेंगी । प्रारब्धके अनुसार ये चीजें मिलनी होंगी तो मिलेंगी, नहीं मिलनी होंगी तो नहीं मिलेंगी । परन्तु भगवान्‌के लिये रोना होगा तो उसको भगवान्‌ सह नहीं सकेंगे । भगवान्‌ संसारके दुःखकी परवाह नहीं करते । जो संसारका सुख चाहता है, वह तो एक प्रकारसे दुःख ही चाहता है । भगवान्‌ मानो कहते हैं कि पहले मिला हुआ दुःख काफी है, और दुःख लेकर तू क्या करेगा ! इसलिये सांसारिक सुख माँगनेपर और उसके लिये रोनेपर भी भगवान्‌ सांसारिक सुख दे ही देंयह नियम नहीं है ।

एक सज्जन थे । उनकी स्त्री बीमार हो गयी तो उन्होंने भगवान्‌से प्रार्थना की । परन्तु उनकी स्त्री मर गयी, तो उन्होंने भगवान्‌की आस्था छोड़ दी । उनकी परीक्षामें भगवान्‌ फेल हो गये; क्योंकि प्रार्थना करनेपर भी भगवान्‌ने हमारा दुःख नहीं मिटाया, स्त्रीकी रक्षा नहीं की । परन्तु मनुष्य यह विचार नहीं करता कि पहले दुःख ज्यादा था, उसे कम किया तो हर्ज क्या हुआ ? परन्तु यह बात अक्लमें नहीं आती । मनुष्य अपनी मनचाही वस्तु ही माँगता रहता है । अगर आपमें आध्यात्मिक लगन हो और उसके लिये आप रो पडो, तो भगवान्‌ उसी समय उसकी पूर्ति कर देंगे । कारण कि वे जानते हैं कि यह सच्ची बातके लिये रोता है । जो झूठी बातके लिये रोता है, उसकी कौन परवाह करे ? वह तो पागल है, बेअक्ल है, मूर्ख है !

संसारसे कुछ भी लेनेकी इच्छा न रखे, तो भी मनमें ‘यह अपना है’यह भाव है तो यह भोग है । कारण कि संसारसे अपनापन छूटता है तो दुःख होता है । संसारसे अपनापन टिकनेवाला नहीं है । हम शरीरको अपना मानते हैं तो क्या उसके साथ हमारा सम्बन्ध सदा बना रहेगा ? शरीर बना रहेयह इच्छा ही मनुष्यको तंग कर रही है । शरीर सदा रहनेवाला तो है नहीं, पर ‘वह मेरा है’इस भावसे एक सुख मिलता है, यह सुख ही आफतमें डालनेवाला है । यह साधकके कामकी बहुत मार्मिक बात है ।



[*] अपने ही द्वारा किये गये काममें किसको दोष दें ! ‘खोजेजी’ नामक एक ठाकुरके गाँव पालड़ीको लोग ‘खोजेजीकी पालड़ी’ कहकर पुकारा करते थे । एक बार खोजेजीके गाँवमें एक बहुत बड़ा काँदा (प्याज) पैदा हुआ । उसको वे राजाके पास दिखानेके लिये ले गये । राजाके पास ले जानेसे उस गाँवकी ‘काँदेकी पालड़ी’ नामसे प्रसिद्धि हो गयी और लोग उस गाँवको ‘खोजेजीकी पालड़ी’ न कहकर ‘काँदेकी पालड़ी’ कहकर पुकारने लग गये ।