।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      चैत्र कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०७८, मंगलवार

संसारका आश्रय कैसे छूटे ?


हमारेसे तो ये शत्रु सीधे होते नहीं । वे प्रभु कृपा करेंगे, तभी ये सीधे होंगे । परन्तु अपनी शक्तिका पूरा उपयोग किये बिना मनुष्य अपनी शक्तिसे हताश नहीं हो पाताअपनेमें असमर्थताका अनुभव नहीं कर पाता । अपनी शक्तिसे हताश हुए बिना अभिमान नहीं मिटता कि मैं ऐसा कर सकता हूँ । पूरी शक्ति लगाकर भी काम न बने तो कह दे कि हे नाथ ! अब मैं कुछ नहीं कर सकता !तो फिर उसी क्षण काम बन जायगा । परन्तु पूरी शक्ति लगाये बिना ऐसी अनन्यता नहीं आती । इसलिये जो आप कर सकते हैं, उसे पूरा करके मनकी निकाल दें । जब भीतर यह विश्वास हो जायगा कि मेरी शक्तिसे काम नहीं होगा, तब स्वतः पुकार निकलेगी कि हे नाथ ! मेरी शक्तिसे नहीं होताऔर उसी क्षण भगवान्‌की शक्तिसे काम पूरा हो जायगा । अपनी शक्ति बाकी रखते हुए भगवान्‌के अनन्य शरण नहीं हो सकते । अगर अपनी शक्तिका कुछ आश्रय है कि हम कुछ कर सकते हैं, तो करके पूरा कर लो । जितना जोर लगाना हो, पूरा-का-पूरा लगा लो । पूरा जोर लगानेपर जब जोर बाकी नहीं रहेगा, तब कार्य सिद्ध हो जायगा । अगर जोर लगाये बिना ही संसारका आश्रय छूट जाय तो भी कार्य सिद्ध हो जायगा । कारण कि संसारका जो आश्रय है, वह परमात्माका आश्रय नहीं लेने देता, इतना ही उसका काम है और खुद वह रहता नहीं !

संसारका आश्रय व्याकरणके क्विप्’ प्रत्ययकी तरह है । क्विप्’ प्रत्यय खुद तो रहता नहीं, पर धातुके गुण और वृद्धि नहीं होने देता । ऐसे ही संसारका आश्रय खुद तो रहता नहीं, पर मनुष्यमें न तो सद्गुण-सदाचार आने देता है और न उसको परमात्माकी तरफ बढ़ने देता है । अतः संसारका आश्रय रखनेसे कोरा, निखालिस धोखा ही होगा । इसमें कोई लाभ होता हो तो बताओ ?

श्रोता—अनन्त जन्मोंसे संसारका आश्रय लेनेके संस्कार पड़े हुए हैं !

स्वामीजी—यह सब कुछ नहीं, केवल बहानेबाजी है । आपका विचार ही नहीं है, इसलिये बहाना बनाते हो । बहानेबाजियाँ मैंने बहुत सुनी हैं । ‘क्या करें, हमारे कर्म ठीक नहीं हैं । क्या करें, कोई अच्छा महात्मा नहीं मिलता । क्या करें, ईश्वरने ऐसी कृपा नहीं की । क्या करें, वायुमण्डल ऐसा ही है । क्या करें, समय ऐसा ही आ गया है । समय बहुत खराब आ गया है, समाजमें कुसंग बहुत है । क्या करें, हमारा प्रारब्ध ऐसा ही है । क्या करें, हमारे संस्कार ऐसे ही हैं । कहाँ जायँ ? क्या करें ? किस तरहसे करें ? किससे पूछें ? ईश्वरने हमारेको ऐसा ही बना दिया । भगवान्‌की माया ही ऐसी है, हम क्या करें ।’ये सब बिलकुल फालतू बातें हैं, इनमें कुछ तत्त्व नहीं है । मैंने इनका अध्ययन किया है । ये जितनी बहानेबाजियाँ हैं, ये सब केवल असली लाभसे वञ्चित होनेके तरीके हैं । कहीं असली लाभ न हो जायइसके लिये ढूँढ़-ढूँढ़कर तरीके निकाले हैं और कुछ नहीं ! ऐसी बढ़िया रीतिसे कमर कसी है कि किसी तरहसे आध्यात्मिक उन्नति न हो जाय । कुछ-न-कुछ आड़ लगा ही देंगे कि स्वामीजीको इन बातोंका क्या पता ? इनके गृहस्थ तो है नहीं । दुकान इनके है नहीं । इनको तो मुफ्तमें रोटी मिलती है और बातें बनानी आती हैं । इस प्रकार किसी तरहसे इनकी बातोंको टाल देना हैयह आपने सोच रखा है । इसके लिये तरीके आपको बहुत आते हैं । एक-दो, चार-पाँच तरीके थोड़े ही हैं । यदि कर्म बाधक हैं, तो कर्म तुम्हारे किये हुए हैं या और किसीके ? तुम्हारे बनाये हुए संस्कार यदि बाधक हैं, तो क्या उनको तुम मिटा नहीं सकते ? आपने किया है, देखा है, सुना है, समझा है, पढ़ा हैइस प्रकार आपने स्वयं अपने भीतर जो संस्कार डाले हैं, वे ही उपजते हैं । अतः आपके किये हुए संस्कार ही उपजते हैं, आपके किये बिना एक भी संस्कार नहीं उपज सकता ।