।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७९, शनिवार

परमात्मा तत्काल कैसे मिले ?


            

आपकी स्थिति परमात्मामें है । संसारमें आपकी स्थिति है ही नहीं । आपकी स्थिति तो अटल है और संसार आपके सामने बदलता है । संसारमें आपकी स्थिति है ही कहाँ ? बालकपन बदला, जवानी बदली, निरोग-अवस्था बदली, वृद्धावस्था बदली, रोग-अवस्था बदली, निरोग-अवस्था बदली, धनवत्ता बदली, निर्धनता बदलीये सब बदलते रहे, पर आप वे-के-वे ही रहे । संसार आपके साथ कभी रह ही नहीं सकता और आप संसारके साथ कभी रह ही नहीं सकते । ब्रह्माजीकी भी ताकत नहीं है कि संसार आपके साथ और आप संसारके साथ रह जायँ । आपकी स्थिति सदा परमात्मामें रहती है । परमात्मा सदा आपके साथ रहते हैं और आप सदा परमात्माके साथ रहते हैं । अतः परमात्माकी प्राप्ति कठिन है ही नहीं । कठिन तो तब हो, जब परमात्माकी प्राप्तिके लिये कुछ करना पड़े । जब करना कुछ है ही नहीं, तब उसकी प्राप्ति कठिन कैसे ! कठिनता और सुगमताका सवाल ही नहीं है ।

श्रोताबात तो यह ठीक जँचती है पर .....।

स्वामीजीठीक जँचती है तो मना कौन करता है ? आड़ तो आपने खुद ही लगा रखी है । वास्तवमें आपको परमात्मप्राप्तिकी परवाह ही नहीं है, चाहे प्राप्ति हो अथवा न हो !

सन्तदास  संसार  में,  कई गुग्गु  कई  डोड ।

डूबन को साँसो नहीं, नहीं तिरन को कोड ॥

गुग्गु (उल्लू)-को तो दिनमें नहीं दीखता और डोड (एक प्रकारका बड़ा कौआ)-को रातमें नहीं दीखता । परन्तु संसारमें कई ऐसे लोग हैं, जिनको न दिनमें दीखता है और न रातमें दीखता है अर्थात् अपने उद्धारकी तरफ उनकी दृष्टि कभी जाती ही नहीं । उनमें न तो अपने डूबने (पतन होने)-की चिन्ता है और न तैरने (अपने उद्धार करने)-का उत्साह होता है ।

केवल यह लालसा हो जाय कि परमात्माकी प्राप्ति कैसे हो ? क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? किससे पूछूँ ? यह लालसा जोरदार लगी कि परमात्माकी प्राप्ति हुई ! क्योंकि यह लालसा लगते ही दूसरी लालसाएँ छूट जाती हैं । जबतक दूसरी सांसारिक लालसाएँ रहती हैं तबतक एक अनन्य लालसा नहीं होती । परमात्मा अनन्य हैं; क्योंकि उनके समान दूसरा कोई है ही नहीं, इसलिये उनकी प्राप्तिकी लालसा भी अनन्य होनी चाहिये ।

श्रोतापरमात्माकी लालसा बनानी पड़ती है कि स्वतःसिद्ध है ?

स्वामीजीपरमात्माकी लालसा स्वतःसिद्ध है, दूसरी लालसाएँ आपने बनायी हैं । अतः उन लालसाओंको छोड़ना है । अभी आप जिन लालसाओंको जानते हो, आजसे पचास वर्ष पहले उनको जानते थे क्या ? जानते ही नहीं थे । इसलिये वे लालसाएँ बनावटी हैं । एक क्षण भी कोई लालसा टिकती नहीं, प्रत्युत बदलती रहती है, मिटती रहती है और आप नयी-नयी लालसा पकड़ते रहते हो ।