आपकी स्थिति परमात्मामें है । संसारमें आपकी स्थिति है ही
नहीं । आपकी स्थिति तो अटल है और संसार आपके सामने बदलता है । संसारमें आपकी
स्थिति है ही कहाँ ? बालकपन बदला, जवानी बदली, निरोग-अवस्था बदली, वृद्धावस्था
बदली, रोग-अवस्था बदली, निरोग-अवस्था बदली, धनवत्ता बदली, निर्धनता बदली—ये सब बदलते रहे, पर आप वे-के-वे ही रहे । संसार आपके साथ
कभी रह ही नहीं सकता और आप संसारके साथ कभी रह ही नहीं सकते । ब्रह्माजीकी भी ताकत
नहीं है कि संसार आपके साथ और आप संसारके साथ रह जायँ । आपकी स्थिति सदा परमात्मामें रहती है । परमात्मा
सदा आपके साथ रहते हैं और आप सदा परमात्माके साथ रहते हैं । अतः परमात्माकी प्राप्ति कठिन है ही नहीं । कठिन तो तब
हो, जब परमात्माकी प्राप्तिके लिये कुछ करना पड़े । जब करना कुछ है ही नहीं, तब
उसकी प्राप्ति कठिन कैसे ! कठिनता और सुगमताका सवाल ही नहीं है । श्रोता—बात
तो यह ठीक जँचती है पर .....। स्वामीजी—ठीक जँचती है तो मना कौन करता है ? आड़ तो आपने खुद ही लगा
रखी है । वास्तवमें आपको परमात्मप्राप्तिकी परवाह ही नहीं है, चाहे प्राप्ति हो
अथवा न हो ! सन्तदास संसार में, कई
गुग्गु कई डोड । डूबन को साँसो नहीं, नहीं तिरन को कोड ॥ —गुग्गु (उल्लू)-को तो दिनमें नहीं दीखता और डोड (एक
प्रकारका बड़ा कौआ)-को रातमें नहीं दीखता । परन्तु संसारमें कई ऐसे लोग हैं, जिनको
न दिनमें दीखता है और न रातमें दीखता है अर्थात्
अपने उद्धारकी तरफ उनकी दृष्टि कभी जाती ही नहीं । उनमें न तो अपने डूबने (पतन
होने)-की चिन्ता है और न तैरने (अपने उद्धार करने)-का उत्साह होता है । केवल यह लालसा हो जाय कि परमात्माकी प्राप्ति कैसे हो ?
क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? किससे पूछूँ ? यह लालसा जोरदार लगी कि परमात्माकी
प्राप्ति हुई ! क्योंकि यह लालसा लगते ही दूसरी लालसाएँ छूट जाती हैं । जबतक दूसरी
सांसारिक लालसाएँ रहती हैं तबतक एक अनन्य लालसा नहीं होती । परमात्मा अनन्य हैं; क्योंकि उनके समान दूसरा कोई है ही नहीं,
इसलिये उनकी प्राप्तिकी लालसा भी अनन्य होनी चाहिये । श्रोता—परमात्माकी
लालसा बनानी पड़ती है कि स्वतःसिद्ध है ? स्वामीजी—परमात्माकी लालसा स्वतःसिद्ध है, दूसरी लालसाएँ आपने बनायी
हैं । अतः उन लालसाओंको छोड़ना है । अभी आप जिन लालसाओंको जानते हो, आजसे पचास वर्ष
पहले उनको जानते थे क्या ? जानते ही नहीं थे । इसलिये वे लालसाएँ बनावटी हैं । एक
क्षण भी कोई लालसा टिकती नहीं, प्रत्युत बदलती
रहती है, मिटती रहती है और आप नयी-नयी लालसा पकड़ते रहते हो । |