।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल द्वितीया, वि.सं.-२०७९, रविवार

परमात्मा तत्काल कैसे मिले ?


         

श्रोता—परमात्मप्राप्तिकी अनन्य लालसाके बिना भी परमात्मप्राप्ति हो सकती है क्या ?

स्वामीजीपरमात्मप्राप्तिकी अनन्य लालसाके बिना, दूसरी लालसा रहते हुए भी उद्योग किया जा सकता है, भजन-स्मरण किया जा सकता है । परन्तु यह लम्बा रास्ता है, इससे तत्काल परमात्मप्राप्ति नहीं होगी । एक-दो जन्म, दस जन्म, पता नहीं कितने जन्ममें हो जाय तो हो जाय ! दूसरी लालसा रहनेसे ही तो हम अटके पड़े हैं, नहीं तो अटकते क्या ? जो सत्संगमें लगे हुए हैं, उनमें कुछ-न-कुछ पारमार्थिक लालसा है ही; परन्तु अनन्य लालसा न होनेसे ही परमात्मप्राप्तिमें देरी हो रही है ।

वास्तवमें देखा जाय तो पारमार्थिक लालसाके बिना कोई प्राणी है ही नहीं । परन्तु इस बातका पता पशु-पक्षियोंको नहीं है । जो मनुष्य पशु-पक्षियोंकी तरह ही जीवन बिता रहे हैं, उनको भी इस बातका पता नहीं है । सभी उस तत्त्वको चाहते हैं । जैसे, कोई भी प्राणी मरना चाहता है क्या ? सभी प्राणी निरन्तर रहना चाहते हैयह ‘सत्’ की चाहना है ! कोई अज्ञानी रहना चाहता है क्या ? सभी जानना चाहते हैंयह ‘चित्’ की चाहना है । कोई दुःखी रहना चाहता है क्या ? सभी सुखी रहना चाहते हैंयह ‘आनन्द’ की चाहना है । इस प्रकार सत्-चित्-आनन्द-स्वरूप परमात्माकी चाहना सभीमें स्वाभाविक है । इसको कोई मिटा नहीं सकता, दूसरी चाहनाएँ जितनी ज्यादा पकड़ रखी हैं, उतनी ही परमात्मप्राप्तिमें देरी लगेगी । दूसरी चाहनाएँ जितनी मिटेंगी, उतनी ही जल्दी परमात्मप्राप्ति होगी । सर्वथा चाहना मिटा दो तो तत्काल परमात्मप्राप्ति हो जायगी ।

राज्यकी चाहना होनेसे ही ध्रुवजीको परमात्मप्राप्तिमें देरी लगी । इस चाहनाके कारण अन्तमें उनको पश्चात्ताप हुआ कि मैंने गलती कर दी ! आप जिन चाहनाओंको पूरी करना चाहते हैं, उन चाहनाओंका आपको पश्चात्ताप होगा और रोना पड़ेगा । अतः परमात्माकी प्राप्तिमें दूसरी लालसा बाधा हैइस बातपर विचार करनेसे दूसरी लालसा मिट जायगी । दूसरी लालसा परमात्मप्राप्तिमें बाधा देनेमें ही सहायता करती है । इससे लोक-परलोकमें किसी तरहका किञ्चिन्मात्र भी फायदा नहीं है । केवल नुकसानके सिवाय और कुछ नहीं है । दूसरी लालसा केवल आध्यात्मिक मार्गमें बाधा डालती है । अगर इससे कुछ फायदा हो तो कोई बताओ कि अमुक लालसासे इतना फायदा हो जायगा । इसमें कोरा नुकसान है । केवल नुकसानकी बात भी आप नहीं छोड़ सकते, तो क्या छोड़ सकते हैं ।

श्रोतादूसरी लालसा किसपर टिकी हुई है ?

स्वामीजीदूसरी लालसाएँ संयोगजन्य सुखभोगकी लालसापर टिकी हुई हैं । संयोगजन्य सुखभोगकी जो लालसा है, मनमें जो रुचि है, यही बाधक है; सुख इतना बाधक नहीं है । असली बीमारी कहाँ हैइस बातका हमें तो कई वर्षोंतक पता नहीं लगा था । व्याख्यान देते-देते कई वर्ष बीत गये तब पता चला कि मनमें संयोगजन्य सुखकी जो लोलुपता है । यहाँ है वह बीमारी ! हमें सुख मिल जायबस, इस इच्छामें ही सब बाधाएँ हैं । यही अनर्थका मूल है, यही जहर है ।