श्रोता—संयोगजन्य
सुखकी लालसा कैसे छूटे ? स्वामीजी—इसके छूटनेका बड़ा सरल उपाय है । परन्तु इसको
छोड़ना है—इतनी इच्छा आपके घरकी, स्वयंकी होनी चाहिये; क्योंकि इसके
बिना कोई उपाय काम नहीं देगा । इसको हम छोड़ना चाहते हैं—इतने आप
तैयार हो जाओ तो ऐसा सरल उपाय मेरे पास है, जिससे बहुत जल्दी काम बन जाय ! मैंने
जो पुस्तकोंमें पढ़ा है, सन्तोंसे सुना है, वह बात कहता हूँ । भाई-बहनोंके लिये,
पढ़े-लिखे और अनपढ़ आदमियोंके लिये, छोटे-बड़ोंके लिये, सबके लिये सीधा सरल उपाय है
कि दूसरोंको सुख कैसे पहुँचे ? दूसरोंको आराम कैसे मिले
? दूसरोंका भला कैसे हो ?—यह लालसा लग जाय तो अपने सुखकी लालसा छूट जायगी । करके देख लो, नहीं तो फिर मेरेसे पूछो कि यह तो हुआ नहीं !
युक्तिसंगत न दीखे तो कह दो कि यह युक्तिसंगत नहीं दीखता ! श्रोता—इसमें प्रारब्धकी बाधा है कि नहीं ? स्वामीजी—इसमें प्रारब्धकी कोई बाधा नहीं है । इसमें प्रारब्ध मानना
तो केवल बहानेबाजी है । प्रारब्ध ऐसा ही है, समय ऐसा ही आ गया, ईश्वरने कृपा नहीं
की, अच्छे गुरु नहीं मिले, अच्छे महात्मा नहीं मिले, कोई बतानेवाला नहीं मिला,
हमारा भाग्य ऐसा ही है—यह सब
बहानेबाजी है, केवल परमात्मतत्त्वसे वञ्चित रहनेका उपाय है । ऐसा भी कभी हो सकता है कि ईश्वर अपनी
प्राप्तिमें बाधा दे दे ? अथवा हमारा किया हुआ कर्म हमें बाधा दे ? या हमारी बनायी हुई वासना हमें बाधा
दे दे ? कर्म हमने स्वयं किये हैं, वासनाएँ हमने स्वयं बनायी हैं । जो चीज हमने पैदा की है, उसको हम मिटा सकते हैं । गुरु कोई
नहीं मिला तो गुरुकी जरूरत ही नहीं है । कोई महात्मा नहीं मिला तो महात्माकी जरूरत
ही नहीं है । भगवान्ने जब अपनी प्राप्तिके लिये मनुष्य-शरीर दिया है तो अपनी
प्राप्तिकी सामग्री कम दी है क्या ? अगर गुरुकी जरूरत होगी तो भगवान्को स्वयं
गुरु बनकर आना पड़ेगा ! वे जगद्गुरु हैं—‘कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।’ अच्छे महात्मा संसारमें क्यों रहते हैं ? तत्त्वज्ञ,
जीवन्मुक्त, परमात्माको प्राप्त हुए महापुरुष संसारमें जीते हैं, तो क्यों जीते
हैं ? संसारमें आकर उन्हें जो काम करना था, वह काम तो उन्होंने पूरा कर लिया; अतः
उनको उसी वक्त मर जाना चाहिये था ! परन्तु वे अब जीते हैं तो केवल हमारे लिये जीते
हैं । उनपर हमारा पूरा हक लगता है । जैसे बालक दुःख पा रहा है तो माँ जीती क्यों
है ? माँ तो बालकके लिये ही है, नहीं तो मर जाना चाहिये माँको ! जरूरत नहीं है
उसकी ! ऐसे ही वे महात्मा पुरुष संसारमें जीते हैं, तो केवल जीवोंके कल्याणके लिये
जीते हैं । इसीलिए महात्मा हमें नहीं मिलेंगे तो वे कहाँ जायँगे ? उनको मिलना
पड़ेगा, झख मारकर आना पड़ेगा; अगर हम सच्चे हृदयसे परमात्माको चाहते हैं, तो गुरुकी
जरूरत होनेपर गुरु अपने-आप आ जायगा । भगवान् गुरुको भेज देंगे । ऐसी कई घटनाएँ
हुई हैं । यह एकदम सच्ची बात है । इसलिये प्रारब्ध और
कर्म कुछ भी बाधक नहीं है । परमात्मप्राप्तिकी एक प्रबल इच्छा हो जाय तो अनन्त
जन्मोंके पाप भस्म हो जायँगे ।
नारायण ! नारायण
! नारायण ! |