।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
       चैत्र शुक्ल तृतीया, वि.सं.-२०७९, सोमवार

परमात्मा तत्काल कैसे मिले ?



श्रोतासंयोगजन्य सुखकी लालसा कैसे छूटे ?

स्वामीजीइसके छूटनेका बड़ा सरल उपाय है । परन्तु इसको छोड़ना हैइतनी इच्छा आपके घरकी, स्वयंकी होनी चाहिये; क्योंकि इसके बिना कोई उपाय काम नहीं देगा । इसको हम छोड़ना चाहते हैंइतने आप तैयार हो जाओ तो ऐसा सरल उपाय मेरे पास है, जिससे बहुत जल्दी काम बन जाय ! मैंने जो पुस्तकोंमें पढ़ा है, सन्तोंसे सुना है, वह बात कहता हूँ । भाई-बहनोंके लिये, पढ़े-लिखे और अनपढ़ आदमियोंके लिये, छोटे-बड़ोंके लिये, सबके लिये सीधा सरल उपाय है कि दूसरोंको सुख कैसे पहुँचे ? दूसरोंको आराम कैसे मिले ? दूसरोंका भला कैसे हो ?यह लालसा लग जाय तो अपने सुखकी लालसा छूट जायगी । करके देख लो, नहीं तो फिर मेरेसे पूछो कि यह तो हुआ नहीं ! युक्तिसंगत न दीखे तो कह दो कि यह युक्तिसंगत नहीं दीखता !

श्रोताइसमें प्रारब्धकी बाधा है कि नहीं ?

स्वामीजीइसमें प्रारब्धकी कोई बाधा नहीं है । इसमें प्रारब्ध मानना तो केवल बहानेबाजी है । प्रारब्ध ऐसा ही है, समय ऐसा ही आ गया, ईश्वरने कृपा नहीं की, अच्छे गुरु नहीं मिले, अच्छे महात्मा नहीं मिले, कोई बतानेवाला नहीं मिला, हमारा भाग्य ऐसा ही हैयह सब बहानेबाजी है, केवल परमात्मतत्त्वसे वञ्चित रहनेका उपाय है ।

ऐसा भी कभी हो सकता है कि ईश्वर अपनी प्राप्तिमें बाधा दे दे ? अथवा हमारा किया हुआ कर्म हमें बाधा दे ? या हमारी बनायी हुई वासना हमें बाधा दे दे ? कर्म हमने स्वयं किये हैं, वासनाएँ हमने स्वयं बनायी हैं । जो चीज हमने पैदा की है, उसको हम मिटा सकते हैं । गुरु कोई नहीं मिला तो गुरुकी जरूरत ही नहीं है । कोई महात्मा नहीं मिला तो महात्माकी जरूरत ही नहीं है । भगवान्‌ने जब अपनी प्राप्तिके लिये मनुष्य-शरीर दिया है तो अपनी प्राप्तिकी सामग्री कम दी है क्या ? अगर गुरुकी जरूरत होगी तो भगवान्‌को स्वयं गुरु बनकर आना पड़ेगा ! वे जगद्गुरु हैं‘कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।’ अच्छे महात्मा संसारमें क्यों रहते हैं ? तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त, परमात्माको प्राप्त हुए महापुरुष संसारमें जीते हैं, तो क्यों जीते हैं ? संसारमें आकर उन्हें जो काम करना था, वह काम तो उन्होंने पूरा कर लिया; अतः उनको उसी वक्त मर जाना चाहिये था ! परन्तु वे अब जीते हैं तो केवल हमारे लिये जीते हैं । उनपर हमारा पूरा हक लगता है । जैसे बालक दुःख पा रहा है तो माँ जीती क्यों है ? माँ तो बालकके लिये ही है, नहीं तो मर जाना चाहिये माँको ! जरूरत नहीं है उसकी ! ऐसे ही वे महात्मा पुरुष संसारमें जीते हैं, तो केवल जीवोंके कल्याणके लिये जीते हैं । इसीलिए महात्मा हमें नहीं मिलेंगे तो वे कहाँ जायँगे ? उनको मिलना पड़ेगा, झख मारकर आना पड़ेगा; अगर हम सच्चे हृदयसे परमात्माको चाहते हैं, तो गुरुकी जरूरत होनेपर गुरु अपने-आप आ जायगा । भगवान्‌ गुरुको भेज देंगे । ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं । यह एकदम सच्ची बात है । इसलिये प्रारब्ध और कर्म कुछ भी बाधक नहीं है । परमात्मप्राप्तिकी एक प्रबल इच्छा हो जाय तो अनन्त जन्मोंके पाप भस्म हो जायँगे ।

नारायण !     नारायण !     नारायण !