।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   वैषाख शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७९, रविवार

गीता-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर


प्रश्नचौदहवें अध्यायके सत्रहवें श्‍लोकमें तमोगुणसे अज्ञानका पैदा होना बताया गया है और आठवें श्‍लोकमें अज्ञानसे तमोगुणका पैदा होना बताया गया है‒इसका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर‒जैसे वृक्षसे बीज पैदा होता है और उस बीजसे फिर बहुतसे वृक्ष पैदा होते हैं, ऐसे ही तमोगुणसे अज्ञान पैदा होता है और उस अज्ञानसे तमोगुण बढ़ता है, पुष्ट होता है ।

प्रश्नअश्वत्थ (पीपल)-के वृक्षको पूजनीय माना गया है, फिर भगवान्‌ने पन्द्रहवें अध्यायके तीसरे श्‍लोकमें संसाररूप अश्वत्थ-वृक्षका छेदन करनेकी बात क्यों कही है ?

उत्तरपीपल-वृक्ष सम्पूर्ण वृक्षोंमें श्रेष्ठ है । भगवान्‌ने उसको अपना स्वरूप बताया है (१० । २६) । औषधके रूपमें भी उसकी बड़ी महिमा है । उसकी जटाको पीसकर पी लेनेसे बन्ध्याको भी पुत्र हो सकता है । पीपल सभीको आश्रय देता है । पीपलके नीचे सभी पेड़-पौधे पनप जाते हैं । पीपल किसीको बाधा नहीं देता, इसलिये पीपलको भी कोई बाधा नहीं देता, जिससे यह मकानकी दीवार और छतपर, कुएँ आदिमें, सब जगह उग जाता है । पीपल, बट, पाकर आदि वृक्ष यज्ञीय हैं अर्थात् इनकी लकड़ी यज्ञमें काम आती है । अतः भगवान्‌ने पीपलको संसारका रूपक बनाया है; क्योंकि संसार भी स्वयं किसीको बाधा नहीं देता । संसार भगवत्स्वरूप है । वास्तवमें अपने व्यक्तिगत राग-द्वेष, कामना, ममता, आसक्ति आदि ही बाधा देते हैं । अतः भगवान्‌ने संसार-रूप पीपल-वृक्षका छेदन करनेकी बात नहीं कही है, प्रत्युत इसमें जो कामना, ममता, आसक्ति आदि हैं, जिनसे मनुष्य जन्म-मरणमें जाता है, उनका वैराग्यरूप शस्त्रके द्वारा छेदन करनेकी बात कही है ।

प्रश्नपंद्रहवें अध्यायके चौथे श्‍लोकमें भगवान्‌ कहते हैं कि ‘उस आदिपुरुष परमात्माके ही मैं शरण हूँ’‒‘तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये’, तो क्या भगवान्‌ भी किसीके शरण होते हैं ?

उत्तरभगवान्‌ किसीके भी शरण नहीं होते; क्योंकि वे सर्वोपरि हैं । केवल लोकशिक्षाके लिये भगवान्‌ साधककी भाषामें बोलकर साधकको यह बताते है कि वह ‘उस आदिपुरुष परमात्माके ही मैं शरण हूँ’‒ऐसी भावना करे ।

प्रश्नयह जीव परमात्माका अंश है (१५ | ७), तो क्या यह जीव परमात्मासे पैदा हुआ है ? क्या यह जीव परमात्माका एक टुकड़ा है ?

उत्तर‒ऐसी बात नहीं है । यह जीव अनादि है, सनातन है और परमात्मा पूर्ण है; अतः जीव परमात्माका टुकड़ा कैसे हो सकता है ? वास्तवमें यह जीव परमात्मस्वरूप ही है; परन्तु जब यह प्रकृतिके अंशको अर्थात् शरीर-इन्द्रियाँ-मन बुद्धिको ‘मैं और मेरा’ मान लेता है, तब यह अंश हो जाता है । प्रकृतिके अंशको छोड़नेपर यह पूर्ण हो जाता है ।