।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   वैषाख शुक्ल द्वितीया, वि.सं.-२०७९, सोमवार

गीता-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर


प्रश्नसात्त्विक आहारमें पहले फल (परिणाम)-का वर्णन करके फिर आहारके पदार्थोंका वर्णन किया और राजस आहारमें पहले आहारके पदार्थोंका वर्णन करके फिर फलका वर्णन किया;परन्तु तामस आहारके फलका वर्णन किया ही नहीं (१७ । ८-१०)‒ऐसा क्यों ?

उत्तरसात्त्विक मनुष्य पहले फल (परिणाम)-की तरफ देखते हैं, फिर वे आहार आदिमें प्रवृत्त होते हैं, इसलिये पहले परिणामका और बादमें खाद्य पदार्थोंका वर्णन किया गया है । राजस मनुष्योंकी दृष्टि पहले खाद्य पदार्थोंकी तरफ, विषयेन्द्रिय-सम्बन्धकी तरफ जाती है, परिणामकी तरफ नहीं । अगर राजस मनुष्योंकी दृष्टि पहले परिणामकी ओर चली जाय तो वे राजस आहार आदिमें प्रवृत्त होंगे ही नहीं । अतः राजस आहारमें पहले खाद्य पदार्थोंका और बादमें परिणामका वर्णन किया गया है । तामस मनुष्योंमें मूढ़ता (बेहोशी) छायी हुई रहती है, इसलिये उनमें आहार और उसके परिणामका विचार होता ही नहीं । आहार न्याययुक्त है या नहीं, उसमें हमारा अधिकार है या नहीं, शास्त्रोंकी आज्ञा है या नहीं और उसका परिणाम हमारे लिये हितकर है या नहीं‒इन बातोंपर तामस मनुष्य कुछ भी विचार नहीं करते, इसलिये तामस आहारके परिणामका वर्णन नहीं किया गया है ।

प्रश्नईश्वर अपनी मायासे सम्पूर्ण प्राणियोंको घुमाता है (१८ । ६१), तो क्या ईश्वर ही प्राणियोंसे पाप-पुण्य कराता है ?

उत्तरजैसे कोई मनुष्य रेलमें बैठ जाता है तो उसको परवश होकर रेलके अनुसार ही जाना पड़ता है, ऐसे ही जो प्राणी शरीररूपी यन्त्रपर आरूढ़ हो गये हैं अर्थात् जिन्होंने शरीररूपी यन्त्रके साथ मैं-मेरापनका सम्बन्ध जोड़ लिया है, उन्हीं प्राणियोंको ईश्वर उनके स्वभाव और कर्मोंके अनुसार घुमाता है, कर्मोंका फल भुगताता है, उनसे पाप-पुण्य नहीं कराता ।

प्रश्न–भगवान्‌ने अर्जुनको पहले ‘तमेव शरणंगच्छ’ पदोंसे अन्तर्यामी परमात्माकी शरणमें जानेके लिये कहा (१८ । ६२) और फिर ‘मामेकं शरणं व्रज’ पदोंसे अपनी शरणमें आनेके लिये कहा (१८ । ६६) । जब अर्जुनको अपनी ही शरणमें लेना था, तो फिर भगवान्‌ने उन्हें अन्तर्यामी परमात्माकी शरणमें जानेके लिये क्यों कहा ?

उत्तर–भगवान्‌ने पहले कहा कि मेरा शरणागत भक्त मेरी कृपासे शाश्वत पदको प्राप्त हो जाता है (१८ । ५६), फिर कहा कि मेरे परायण और मेरेमें चित्तवाला होकर तू सम्पूर्ण विघ्नोंसे तर जायगा (१८ । ५७-५८) । भगवान्‌के ऐसा कहनेपर भी अर्जुन कुछ बोले नहीं, उन्होंने कुछ भी स्वीकार नहीं किया । तब भगवान्‌ने कहा कि अगर तू मेरी शरणमें नहीं आना चाहता तो तू उस अन्तर्यामी परमात्माकी शरणमें चला जा । मैंने यह गोपनीयसे गोपनीय ज्ञान कह दिया, अब तेरी जैसी मरजी हो, वैसा कर (१८ । ६३) । यह बात सुनकर अर्जुन घबरा गये कि भगवान्‌ तो मेरा त्याग कर रहे है ! तब भगवान्‌ अर्जुनको सर्वगुह्यतम बात बताते हैं कि तू केवल मेरी शरणमें आ जा ।