।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   वैषाख शुक्ल नवमी, वि.सं.-२०७९, मंगलवार

गीतामें ईश्वरवाद


वास्तवमें ईश्वर माननेका ही विषय है, विचारका विषय नहीं । विचारका विषय वही होता है, जिसमें जिज्ञासा होती है और जिज्ञासा उसीमें होती है, जिसके विषयमें हम कुछ जानते हैं और कुछ नहीं जानते । परन्तु जिसके विषयमें हम कुछ भी नहीं जानते, उसके विषयमें जिज्ञासा नहीं होती, उसपर विचार नहीं होता । उसको तो हम मानें या न मानें‒इसमें हम स्वतन्त्र हैं । जैसे, जगत् हमारे देखनेमें आता है, पर जगत् तत्त्वसे क्या है‒इसको हम नहीं जानते; अतः जगत् विचारका विषय है । ऐसे ही जीवात्मा स्थावर-जंगमरूपसे शरीरधारी दीखता है, पर जीवात्मा तत्त्वसे क्या है‒इसको हम नहीं जानते; अतः जीवात्मा विचारका विषय है । परन्तु ईश्वरके विषयमें हम कुछ भी नहीं जानते; अतः ईश्वर विचारका (तर्कका) विषय नहीं है, प्रत्युत माननेका (श्रद्धाका) विषय है । शास्त्रोंसे और ईश्वरको प्राप्त हुए, ईश्वरका साक्षात्कार किये हुए सन्त-महापुरुषोंसे सुनकर ही ईश्वरको माना जाता है । शास्त्र और सन्त‒ये भी माननेके विषय हैं । जैसे वेद, पुराण आदिको हिन्दू मानते हैं, पर मुसलमान नहीं मानते । ऐसे ही सन्त-महापुरुषोंको कुछ लोग मानते हैं, पर कुछ लोग नहीं मानते, प्रत्युत उनको साधारण मनुष्य ही समझते हैं ।

प्रश्न‒क्या ईश्वरको माने बिना भी मनुष्य अपना उद्धार कर सकता है, संसारके बन्धनसे मुक्त हो सकता है ?

उत्तरहाँ, हो सकता है । ऐसे भी सम्प्रदाय हैं, जो ईश्वरको नहीं मानते । उन सम्प्रदायोंमें बताये गये साधनमें तत्परतासे लगे हुए मनुष्य संसारसे मुक्त हो सकते हैं, सांसारिक दुःखोंसे छूट सकते हैं, पर उनको प्रतिक्षण वर्धमान परमानन्द (भगवत्प्रेम)-की प्राप्ति नहीं हो सकती । हाँ, अगर उनमें ईश्वरके साथ विरोध, द्वेष और अपने मतका आग्रह न हो तो उनको भगवत्प्रेमकी प्राप्ति भी हो सकती है, चाहे वे ईश्वरको मानें या न मानें । तात्पर्य है कि जिसका अपने सिद्धान्तमें प्रेम है, पर दूसरेके सिद्धान्तसे द्वेष न करके तटस्थ रहता है, उसको मुक्त होनेके बाद भगवान्‌की, उनके प्रेमकी प्राप्ति हो सकती है । भगवान्‌में इस बातकी सम्भावना ही नहीं है कि मनुष्य उनको माने, तभी वे मिलें, अन्यथा नहीं मिलें ।

वास्तवमें उत्पत्ति-विनाशशील पदार्थोंका आकर्षण ही मुक्तिमें मुख्य बाधक है । अगर मनुष्य उत्पत्ति-विनाशशील पदार्थोंसे सर्वथा असंग, राग-रहित हो जाय, तो वह मुक्त हो जायगा अर्थात् उसकी परतन्त्रता मिट जायगी ।

प्रश्नगीतामें ईश्वरका कितने रूपोंमें वर्णन है ?

उत्तरगीतामें ईश्वरका तीन रूपोंमें वर्णन हुआ है‒सगुण-साकार, सगुण-निराकार और निर्गुण-निराकार । तात्पर्य है कि अगर ईश्वरको ‘सगुण-निर्गुण’ मानें तो ‘सगुण’ के दो भेद होंगे‒सगुण-साकार और सगुण-निराकार तथा ‘निगुण’ का एक भेद होगा‒निर्गुण-निराकार । अगर ईश्वरको ‘साकार-निराकार’ मानें तो ‘साकार’ का एक भेद होगा‒सगुण-साकार तथा ‘निराकार’ दो भेद होंगे‒सगुण-निराकार और निर्गुण-निराकार । गीतामें सातवें अध्यायके उन्तीसवें-तीसवें श्‍लोकोंमें, आठवें अध्यायके आठवें श्‍लोकसे सोलहवें श्‍लोकतक और ग्यारहवें अध्यायके अठारहवें श्‍लोकमें ईश्वरके सगुण-साकार, सगुण-निराकार और निर्गुण-निराकार‒इन तीनों रूपोंका वर्णन हुआ है ।