।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
         वैषाख पूर्णमा, वि.सं.-२०७९, सोमवार

गीतामें अवतारवाद


जैसे खेलमें कोई स्वाँग बनाता है तो वह हरेकको अपना वास्तविक परिचय नहीं देता । अगर वह अपना वास्तविक परिचय दे दे तो खेल बिगड़ जायगा । ऐसे ही जब भगवान् अवतार लेते हैं, तब वे सबके सामने अपने-आपको प्रकट नहीं करते, सबको अपना वास्तविक परिचय नहीं देते‒‘नाहं प्रकाशः सर्वस्य’ (७ ।२५) । अगर वे अपना वास्तविक परिचय दे दें तो फिर वे लीला नहीं कर सकते । जैसे खेल खेलनेवालेका स्वाँग देखकर उसका आत्मीय मित्र डर जाता है तो वह स्वाँगधारी अपने मित्रको संकेतरूपसे अपना असली परिचय देता है कि ‘अरे ! तू डर मत, मैं वही हूँ’ । ऐसे ही भगवान्‌के अवतारी शरीरोंको देखकर कोई भक्त डर जाता है तो भगवान् उसको अपना असली परिचय देते हैं कि ‘भैया ! तू डर मत, मैं तो वही हूँ ।’

दो मित्र थे । एकने बाजारमें अपनी दूकान फैला रखी थी, जिससे लोग माल देखें और खरीदें । दूसरा राजकीय सिपाहीका स्वाँग धारण करके उसके पास गया और उसको खूब धमकाने लगा कि ‘अरे ! तूने यहाँ रास्तेमें दूकान क्यों लगा रखी है ? जल्दी उठा, नहीं तो अभी राजमें तेरी खबर करता हूँ ।’ उसकी बातोंसे वह दूकानदार मित्र बहुत डर गया और अपनी दूकान समेटने लगा । उसको भयभीत देखकर सिपाही बना हुआ मित्र बोला‒‘अरे ! तू डर मत, मैं तो वही तेरा मित्र हूँ ।’ ऐसे ही अर्जुनके सामने भगवान् विश्वरूपसे प्रकट हो गये तो अर्जुन डर गये । तब भगवान्‌ने अपना असली परिचय देकर अर्जुनको सान्त्वना दी ।

यहाँ एक शंका होती है कि वर्तमानमें धर्मका ह्रास हो रहा है और अधर्म बढ़ रहा है तथा श्रेष्ठ पुरुष दुःख पा रहे हैं, फिर भी भगवान् अवतार क्यों नहीं ले रहे हैं ? इसका समाधान यह है कि अभी भगवान्‌के अवतारका समय नहीं आया है । कारण कि शास्त्रोंमें कलियुगमें जैसा बर्ताव होना लिखा है, उससे भी ज्यादा बर्ताव गिर जाता है, तब भगवान् अवतार लेते हैं । अभी ऐसा नहीं हुआ है । त्रेतायुगमें तो राक्षसोंने ऋषि-मुनियोंको खा-खाकर हड्डियोंका ढेर कर दिया था, तब भगवान्‌ने अवतार लिया था । अभी कलियुगको देखते हुए वैसा अन्याय-अत्याचार नहीं हो रहा है । धर्मका थोड़ा ह्रास होनेपर भगवान् कारकपुरुषोंको भेजकर उसको ठीक कर देते हैं अथवा जगह-जगह सन्त-महात्मा प्रकट होकर अपने आचरणों एवं वचनोंके द्वारा मनुष्योंको सन्मार्गपर लाते हैं ।

एक दृष्टिसे भगवान्‌का अवतार नित्य है । इस संसाररूपसे भगवान्‌का ही अवतार है । साधकोंके लिये साध्य और साधनरूपसे भगवान्‌का अवतार है । भक्तोंके लिये भक्तिरूपसे, ज्ञानयोगियोंके लिये ज्ञेयरूपसे और कर्मयोगियोंके लिये कर्तव्यरूपसे भगवान्‌का अवतार है । भूखोंके लिये अन्नरूपसे, प्यासोंके लिये जलरूपसे, नंगोंके लिये वस्त्ररूपसे और रोगियोंके लिये ओषधिरूपसे भगवान्‌का अवतार है । भोगियोंके लिये भोगरूपसे और लोभियोंके लिये रुपये, वस्तु आदिके रूपसे भगवान्‌का अवतार है । गरमीमें छायारूपसे और सरदीमें गरम कपड़ोंके रूपसे भगवान्‌का अवतार है । तात्पर्य है कि जड़-चेतन, स्थावर-जंगम आदिके रूपसे भगवान्‌का ही अवतार है; क्योंकि वास्तवमें भगवान्‌के सिवाय दूसरी कोई चीज है ही नहीं‒‘वासुदेवः सर्वम्’ (७ । १९); ‘सदसच्चाहम्’ (९ । १९)परन्तु जो संसाररूपसे प्रकट हुए प्रभुको भोग्य मान लेता है, अपनेको उसका मालिक मान लेता है, उसका पतन हो जाता है, वह जन्मता-मरता रहता है ।