।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   वैषाख शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.-२०७९, गुरुवार

गीता-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर


प्रश्नजैसे भागवतमें भगवान्‌ने उद्धवजीको जो उपदेश दिया, उसका नाम ‘उद्धवगीता’ है, ऐसे ही गीताका नाम भी ‘अर्जुनगीता' होना चाहिये, फिर इसका नाम 'भगवद्‌गीता' क्यों हुआ है ?

उत्तरभागवतमें तो स्वयं उद्धवजीने भगवान्‌से जिज्ञासापूर्वक प्रश्र किये हैं; अतः उनके संवादका नाम ‘उद्धवगीता’ रखना ठीक ही है । परन्तु गीता कहनेकी बात तो स्वयं भगवान्‌के ही मनमें आयी थी; क्योंकि अर्जुन तो युद्ध करनेके लिये ही आये थे, उपदेश सुननेके लिये नहीं । गीता कहनेकी बात मनमें होनेसे ही तो भगवान्‌ने अर्जुनका रथ पितामह भीष्म और गुरु द्रोणाचार्यके सामने खड़ा करके अर्जुनसे ‘हे पार्थ ! इन कुरुवंशियोंको देख’‘कुरून् पश्य’ (१ । २५) ऐसा कहा । अगर भगवान्‌ ऐसा न कहकर यह कहते कि ‘धृतराष्ट्रके पुत्रोंको देख’ धार्तराष्ट्रान् पश्य’, तो अर्जुनके भीतर मोह जाग्रत् न होकर युद्ध करनेका जोश ही आता, जिससे गीता कहनेका अवसर ही नहीं आता । गीता कहनेका अवसर तो ‘कुरुवंशियोंको देख’ऐसा कहनेसे ही प्राप्त हुआ; क्योंकि कुरुवंशमें धृतराष्ट्रके पुत्र और पाण्डव‒दोनों एक हो जाते हैं । अतः अपने ही सम्बन्धियोंको देखकर अर्जुनका सुप्त मोह जाग्रत् हो गया और वे कर्तव्य-अकर्तव्यका निर्णय करनेमें असमर्थ होकर तथा भगवान्‌की शरण होकर अपने कल्याणकी बातें पूछने लगे । इसलिये भगवान्‌के द्वारा दिये गये उपदेशका नाम ‘भगवद्‌गीता’ रखना युक्तियुक्त, उचित ही है ।

प्रश्नजब युद्धकी तैयारी हो चुकी थी, ऐसे थोड़े समयमें भगवान्‌ने इतना बड़ा गीतोपदेश कैसे दिया ?

उत्तर‒जब भगवान्‌की माया भी अघटित-घटना-पटीयसी है, तो फिर स्वयं भगवान्‌ थोड़े समयमें बहुत कुछ कह दें, इसमें आश्चर्य ही क्या है ?

महाभारतको देखनेसे मालूम होता है कि समय थोड़ा नहीं था । अर्जुनने भगवान्‌से दोनों सेनाओंके बीचमें अपना रथ खड़ा करनेके लिये कहा तो भगवान्‌ने अर्जुनके रथको दोनों सेनाओंके बीचमें खड़ा कर दिया । जब दोनों सेनाओंके बीचमें रथ खड़ा हो और उसमें दोनों मित्र आपसमें बातचीत कर रहे हों, तब दोनों सेनाओंमें युद्ध कैसे हो ? अतः दोनों सेनाएँ बड़ी शान्तिसे खड़ी थीं ।

गीताका उपदेश पूरा होनेके बाद युधिष्ठिर निःशस्त्र होकर कौरवसेनामें गये । उनके साथ भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और भगवान्‌ श्रीकृष्ण भी थे । कौरवसेनामें जाकर वे भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदिसे मिले और उनके साथ बातचीत भी की । फिर वहाँसे लौटते समय युधिष्टिरने घोषणा की कि यह सब कौरवसेना मरेगी, अगर कोई बचना चाहे तो वह हमारी सेनामें आ सकता है । युधिष्टिरकी ऐसी घोषणा सुनकर दुर्योधनका भाई युयुत्सु नगाड़ा बजाते हुए पाण्डवसेनामें चला आया । इसके बाद ही युद्ध आरम्भ हुआ । इससे भी यही सिद्ध होता है कि गीतोपदेश देनेके लिये पर्याप्त समय था ।