।। श्रीहरिः ।।

 



  आजकी शुभ तिथि–
     ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.-२०७९, मंगलवार

गीतामें भगवन्नाम


शंका‒गुड़का नाम लेनेसे मुख मीठा नहीं होताफिर भगवान्‌का नाम लेनेसे क्या होगा ?

समाधान‒जिस वस्तुका नाम गुड़ हैउसके नाममें गुड़ नामवाली वस्तुका अभाव है अर्थात् गुड़के नाममें गुड़ नहीं हैऔर जबतक गुड़का रसनेन्द्रिय (जीभ)-के साथ सम्बन्ध नहीं होतातबतक मुख मीठा नहीं होताक्योंकि जीभमें गुड़ मौजूद नहीं है । ऐसे ही धनीका नाम लेनेसे धन नहीं मिलताक्योंकि धनीके नाममें धन मौजूद नहीं है । परन्तु भगवान्‌के नाममें भगवान्‌ मौजूद हैं । नामी (भगवान्‌)-से नाम अलग नहीं है और नामसे नामी अलग नहीं है । नामीमें नाम मौजूद है और नाममें नामी मौजूद है । अतः नामीकाभगवान्‌का नाम लेनेसे भगवान्‌ मिल जाते हैंनामी प्रकट हो जाता है ।

शंका‒नाम तो केवल शब्दमात्र हैउससे क्या कार्य सिद्ध होगा ?

समाधान‒ऐसे तो शब्दमात्रमें अचिन्त्य शक्ति हैपर नाममें भगवान्‌के साथ सम्बन्ध जोड़नेकी ही एक विशेष सामर्थ्य है । अतः नाम किसी भी तरहसे लिया जायवह मंगल ही करता है । नाम जपनेवालेका भाव विशेष हो तो बहुत जल्दी लाभ होता है‒

सादर सुमिरन    जे नर करहीं ।

भव बारिधि गोपद इव तरहीं ॥

(मानस १ । ११९ । २)

नामजपमें भाव कम भी रहे तो भी नाम जपनेसे लाभ तो होगा हीपर कब होगा‒इसका पता नहीं । नामजपकी संख्या ज्यादा बढ़नेसे भी भाव बन जाता हैक्योंकि नामजप करनेवालेके भीतर सूक्ष्म भाव रहता ही हैवह भाव नामकी संख्या बढ़नेसे प्रकट हो जाता है ।

नाम-जप क्रिया (कर्म) नहीं हैप्रत्युत उपासना है; क्योंकि नामजपमें जापकका लक्ष्यसम्बन्ध भगवान्‌से रहता है । जैसे कर्मोंसे कल्याण नहीं होता । कर्म अपना फल देकर नष्ट हो जाते हैपरन्तु कर्मोंके साथ निष्कामभावकी मुख्यता रहनेसे वे कर्म कल्याण करनेवाले हो जाते हैं । ऐसे ही नामजपके साथ भगवान्‌के लक्ष्यकी मुख्यता रहनेसे नामजप भगवत्साक्षात्कार करानेवाला हो जाता है । भगवान्‌का लक्ष्य मुख्य रहनेसे नाम चिन्मय हो जाता हैफिर उसमें क्रिया नहीं रहती । इतना ही नहीवह चिन्मयता जापकमें भी उतर आती है अर्थात् नाम जपनेवालेका शरीर भी चिन्मय हो जाता है । उसके शरीरकी जड़ता मिट जाती है । जैसेतुकारामजी महाराज सशरीर वैकुण्ठ चले गये । मीराबाईका शरीर भगवान्‌के विग्रहमें समा गया । कबीरजीका शरीर अदृश्य हो गया और उसके स्थानपर लोगोंको पुष्प मिले । चोखामेलाकी हड्डियोंसे विट्ठल’ नामकी ध्वनि सुनाई पड़ती थी ।

प्रश्न‒शास्त्रोंसन्तोंने भगवन्नामकी जो महिमा गायी हैवह कहाँतक सच्ची है ?

उत्तर‒शास्त्रों और सन्तोंने नामकी जो महिमा गायी हैवह पूरी सच्ची है । इतना ही नहींआजतक जितनी नाम-महिमा गायी गयी हैउससे नाम-महिमा पूरी नहीं हुई हैप्रत्युत अभी बहुत नाम-महिमा बाकी है । कारण कि भगवान्‌ अनन्त हैंअतः उनके नामकी महिमा भी अनन्त है‒हरि अनंत हरि कथा अनंता’ (मानस १ । १४० । ३) । नामकी पूरी महिमा स्वयं भगवान्‌ भी नहीं कह सकते‒‘रामु न सकहिं नाम गुन गाई’ ( १ । २६ । ४) ।