।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया, वि.सं.-२०७९, बुधवार

गीतामें भगवन्नाम



प्रश्न‒नामकी जो महिमा गायी गयी है, वह नामजप करनेवाले व्यक्तियोंमें देखनेमें नहीं आती, इसमें क्या कारण है ?

उत्तर‒नामके महात्म्यको स्वीकार न करनेसे नामका तिरस्कार, अपमान होता है; अतः वह नाम उतना असर नहीं करता । नामजपमें मन न लगानेसे, इष्टके ध्यानसहित नामजप न करनेसे, हृदयसे नामको महत्त्व न देनेसे, आदि-आदि दोषोंके कारण नामका माहात्म्य शीघ्र देखनेमें नहीं आता । हाँ, किसी प्रकारसे नामजप मुखसे चलता रहे तो उससे भी लाभ होता ही है, पर इसमें समय लगता है । मन लगे चाहे न लगे, पर नामजप निरन्तर चलता रहे, कभी छूटे नहीं तो नाम-महाराजकी कृपासे सब काम हो जायगा अर्थात् मन लगने लग जायगा, नामपर श्रद्धा-विश्वास भी हो जायँगे, आदि-आदि ।

अगर भगवन्नाममें अनन्यभाव हो और नामजप निरन्तर चलता रहे तो उससे वास्तविक लाभ हो ही जाता है; क्योंकि भगवान्‌का नाम सांसारिक नामोंकी तरह नहीं है । भगवान्‌ चिन्मय है; अतः उनका नाम भी चिन्मय (चेतन) है । राजस्थानमें बुधारामजी नामक एक सन्त हुए हैं । वे जब नामजपमें लगे, तब उनकी नामजपके बिना थोड़ा भी समय खाली जाना सुहाता नहीं था । जब भोजन तैयार हो जाता, तब माँ उनको भोजनके लिये बुलाती और वे भोजन करके पुनः नामजपमें लग जाते । एक दिन उन्होंने माँसे कहा कि माँ ! रोटी खानेमें बहुत समय लगता है; अतः केवल दलिया बनाकर थालीमें परोस दिया कर और जब वह थोड़ा ठण्डा हो जाया करे, तब मेरेको बुलाया कर, माँने वैसा ही किया । एक दिन फिर उन्होंने कहा कि माँ ! दलिया खानेमें भी समय लगता है; अतः केवल राबड़ी बना दिया कर और जब वह ठण्डी हो जाया करे, तब बुलाया कर । इस तरह लगनसे नाम-जप किया जाय तो उससे वास्तविक लाभ होता ही है ।

शंका‒अगर श्रद्धा-विश्वासपूर्वक किये हुए नामजपसे ही लाभ होता है, तो फिर नामकी महिमा क्या हुई ? महिमा तो श्रद्धा-विश्वासकी ही हुई ?

समाधान‒जैसे, राजाको राजा न माननेसे राजासे होनेवाला लाभ नहीं होता; पण्डितको पण्डित न माननेसे पण्डितसे होनेवाला लाभ नहीं होता; सन्त-महात्माओंको सन्त-महात्मा न माननेसे उनसे होनेवाला लाभ नहीं होता; भगवान्‌ अवतार लेते हैं तो उनको भगवान्‌ न माननेसे उनसे होनेवाला लाभ नहीं होता; परन्तु राजा आदिसे लाभ न होनेसे राजा आदिमें कमी थोड़े ही आ गयी ? कमी तो न माननेवालेकी ही हुई । ऐसे ही जो नाममें श्रद्धा-विश्वास नहीं करता, उसको नामसे होनेवाला लाभ नहीं होता, पर इससे नामकी महिमामें कोई कमी नहीं आती । कमी तो नाममें श्रद्धा-विश्वास न करनेवालेकी ही है ।

नाममें अनन्त शक्ति है । वह शक्ति नाममें श्रद्धा-विश्वास करनेसे तो बढ़ेगी और श्रद्धा-विश्वास न करनेसे घटेगी‒यह बात है ही नहीं । हाँ, जो नाममें श्रद्धा-विश्वास करेगा, वह तो नामसे लाभ ले लेगा, पर जो श्रद्धा-विश्वास नहीं करेगा, वह नामसे लाभ नहीं ले सकेगा । दूसरी बात, जो नाममें श्रद्धा-विश्वास नहीं करता, उसके द्वारा नामका अपराध होता है । उस अपराधके कारण वह नामसे होनेवाले लाभको नहीं ले सकता ।