।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७९, सोमवार

गीतामें भगवन्नाम


प्रश्न‒शास्त्रोंमें आता है कि जो नाम नहीं लेना चाहता, जिसकी नामपर श्रद्धा नहीं है, उसको नाम नहीं सुनाना चाहिये; क्योंकि यह नामापराध है; फिर भी गौरांग महाप्रभु आदिने नामपर श्रद्धा न रखनेवालोंको भी नाम क्यों सुनाया ?

उत्तर‒जो नाम नहीं सुनना चाहता, मुखसे भी नहीं लेना चाहता, नामका तिरस्कार करता है, उसको नाम नहीं सुनाना चाहिये‒यह विधि है, शास्त्रकी आज्ञा है; फिर भी सन्त-महापुरुष दया करके उसको नाम सुना देते है । उनकी दयामें विधि-निषेध लागू नहीं होता । विधि-निषेध कर्ममें लागू होता है और दयाकर्मसे अतीत है । दया अहैतुकी होती है, हेतुके बिना की जाती है । जैसे, कोई भगवत्प्राप्त सन्त-महापुरुष अपनी सामर्थ्यसे दूसरेको कोई चीज देता है तो यह चीज लेनेवालेके पूर्वकर्मका फल नहीं है, यह तो उस सन्त-महापुरुषकी दया है । ऐसे ही गौरांग महाप्रभु आदि सन्तोंने दया-परवश होकर दुष्ट, पापी व्यक्तियोंको भी भगवन्नाम सुनाया ।

प्रश्न‒अगर मरणासन्न पशु, पक्षी आदिको भगवन्नाम सुनाया जाय तो क्या उनका उद्धार हो सकता है ?

उत्तर‒पशु पक्षी आदि भगवन्नामके प्रभावको नहीं समझते और अपने-आप प्रभाव आ जाय तो वे उसका विरोध भी नहीं करते । वे नामकी निन्दा, तिरस्कार नहीं करते, नामसे घृणा नहीं करते । अतः उनको मरणासन्न अवस्थामें नाम सुनाया जाय तो उनपर नामका प्रभाव काम करता है अर्थात् नामके प्रभावसे उनका उद्धार हो जाता है ।

प्रश्न‒अन्तसमयमें कोई अपने पुत्र आदिके रूपमें भी नारायण’,वासुदेव’ आदि नाम लेता है तो उसको भगवान्‌ अपना ही नाम मान लेते हैं; ऐसा क्यों ?

उत्तर‒भगवान्‌ बहुत दयालु हैं । उन्होंने यह विशेष छूट दी हुई है कि अगर मनुष्य अन्तसमयमें किसी भी बहाने भगवान्‌का नाम ले ले, उनको याद कर ले तो उसका कल्याण हो जायगा । कारण कि भगवान्‌ने जीवका कल्याण करनेके लिये ही उसको मनुष्यशरीर दिया है और जीवने उस मनुष्यशरीरको स्वीकार किया है । अतः जीवका कल्याण हो जाय, तभी भगवान्‌का इस जीवको मनुष्यशरीर देना और जीवका मनुष्यशरीर लेना सार्थक होगा । परन्तु वह अपना कल्याण किये बिना ही मनुष्यशरीरको छोड़कर जा रहा है, इसलिये भगवान्‌ उसको मौका देते है कि अब जाते-जाते तू किसी भी बहाने मेरा नाम ले ले, मेरेको याद कर ले तो तेरा कल्याण हो जायगा ! जैसे अन्तसमयमें भयानक यमदूत दीखनेपर अजामिलने अपने पुत्र नारायणको पुकारा तो भगवान्‌ने उसको अपना ही नाम मान लिया और अपने चार पार्षदोंको अजामिलके पास भेज दिया ।

तात्पर्य है कि मनुष्यको रात-दिन, खाते-पीते, सोते-जागते, चलते-फिरते, सब समय भगवान्‌का नाम लेते ही रहना चाहिये ।

नारायण ! नारायण ! नारायण !