प्रश्न‒शास्त्रोंमें
तथा सन्तोंने कहा है कि अमुक संख्यामें नामजप करनेसे भगवान्के दर्शन हो जाते हैं, क्या
ऐसा होता है ? उत्तर‒हाँ, ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे
कृष्ण कृष्ण कृष्णा हरे हरे ॥’‒इस मन्त्रका साढ़े तीन करोड़ जप करनेसे भगवान्के दर्शन हो जाते हैं‒ऐसा ‘कलिसंतरणोपनिषद्’ में आया है । ‘राम’-नामका तेरह करोड़ जप करनेसे भगवान्के दर्शन हो जाते हैं‒ऐसा समर्थ रामदास बाबाने
‘दासबोध’
में लिखा है । परन्तु नाममें, भगवान्में
श्रद्धा-विश्वास और प्रेम अधिक हो तो उपर्युक्त संख्यासे पहले भी भगवान्के दर्शन हो
सकते हैं । प्रश्न‒‘नहिं कलि करम न भगति बिबेकू’ । राम नाम अवलंबन एकू ॥’ (मानस १ । २७ । ४)‒ऐसा कहनेका क्या
तात्पर्य है ? उत्तर‒कलियुगमें यज्ञादि शुभ-कर्मोंका सांगोपांग होना बहुत कठिन है और उनके विधि-विधानको
ठीक तरहसे जाननेवाले पुरुष भी बहुत कम रह गये हैं तथा शुद्ध गौघृत आदि सामग्री मिलनी
भी कठिन हो रही है । अतः कलियुगमें शुभ-कर्मोंका अनुष्ठान सांगोपांग न होनेसे,
उसमें विधि-विधानकी कमी रहनेसे कर्ताको दोष लगता है । वैधीभक्ति विधि-विधानसे की जाती है । उसमें किस इष्टदेवका किस
विधिसे पूजा-पाठ होना चाहिये‒इसको जाननेवाले बहुत कम है । अतः वह भक्ति करना भी इस
कलियुगमें कठिन है । ज्ञानमार्ग कठिन है और ज्ञानमार्गकी साधना बतानेवाले अनुभवी
पुरुषोंका मिलना भी बहुत कठिन है । अतः विवेकमार्गमें चलना कलियुगमें बहुत कठिन है
। तात्पर्य है कि इस कलियुगमें कर्म, भक्ति और ज्ञान‒इन तीनोंका होना बहुत कठिन है,
पर भगवान्का नाम लेना कठिन नहीं है । भगवान्का नाम सभी ले सकते है; क्योंकि
उसमें कोई विधि-विधान नहीं है । उसको बालक, स्त्री, पुरुष, वृद्ध, रोगी आदि सभी ले सकते हैं और हर समय, हर
परिस्थितिमें, हर अवस्थामें ले सकते हैं । नाम एक सम्बोधन है, पुकार
है । उसमें आर्तभावकी ही मुख्यता है, विधिकी मुख्यता नहीं । अतः भगवान्का नाम लेकर हरेक मनुष्य आर्तभावसे भगवान्को पुकार
सकता है । शंका‒नामजपमें
मन नहीं लगता और मन लगे बिना नामजप करनेमें कुछ फायदा नहीं ! कहा भी है‒ माला
तो कर में फिरे, जीभ
फिरै मुख माहिं । मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै,यह तो
सुमिरन नाहिं ॥ समाधान‒मन नहीं लगेगा तो ‘सुमिरन’ (स्मरण) नहीं होगा‒यह बात सच्ची है,
पर नामजप नहीं होगा‒यह बात दोहेमें नहीं कही गयी है । मन नहीं
लगनेसे सुमिरन नहीं होगा तो नहीं सही, पर नामजप तो हो ही जायगा ! नामजप कभी
व्यर्थ हो ही नहीं सकता; अतः मन लगे चाहे न लगे, नामजप
करते रहना चाहिये ।
जब मन लगेगा, तब नामजप करेंगे‒ऐसा होना सम्भव नहीं है । हाँ,
अगर हम नामजप करने लग जायँ तो मन भी लगने लग जायगा;
क्योंकि मनका लगना नामजपका परिणाम है । |