।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
      ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७९, रविवार

गीतामें भगवन्नाम


प्रश्न‒शास्त्रोंमें तथा सन्तोंने कहा है कि अमुक संख्यामें नामजप करनेसे भगवान्‌के दर्शन हो जाते हैं, क्या ऐसा होता है ?

उत्तर‒हाँ, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्णा हरे हरे ॥’‒इस मन्त्रका साढ़े तीन करोड़ जप करनेसे भगवान्‌के दर्शन हो जाते हैं‒ऐसा ‘कलिसंतरणोपनिषद्’ में आया है । राम’-नामका तेरह करोड़ जप करनेसे भगवान्‌के दर्शन हो जाते हैं‒ऐसा समर्थ रामदास बाबाने

दासबोध’ में लिखा है । परन्तु नाममें, भगवान्‌में श्रद्धा-विश्वास और प्रेम अधिक हो तो उपर्युक्त संख्यासे पहले भी भगवान्‌के दर्शन हो सकते हैं ।

प्रश्न‒नहिं कलि करम न भगति बिबेकू’ । राम नाम अवलंबन एकू ॥’ (मानस १ । २७ । ४)‒ऐसा कहनेका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर‒कलियुगमें यज्ञादि शुभ-कर्मोंका सांगोपांग होना बहुत कठिन है और उनके विधि-विधानको ठीक तरहसे जाननेवाले पुरुष भी बहुत कम रह गये हैं तथा शुद्ध गौघृत आदि सामग्री मिलनी भी कठिन हो रही है । अतः कलियुगमें शुभ-कर्मोंका अनुष्ठान सांगोपांग न होनेसे, उसमें विधि-विधानकी कमी रहनेसे कर्ताको दोष लगता है ।

वैधीभक्ति विधि-विधानसे की जाती है । उसमें किस इष्टदेवका किस विधिसे पूजा-पाठ होना चाहिये‒इसको जाननेवाले बहुत कम है । अतः वह भक्ति करना भी इस कलियुगमें कठिन है ।

ज्ञानमार्ग कठिन है और ज्ञानमार्गकी साधना बतानेवाले अनुभवी पुरुषोंका मिलना भी बहुत कठिन है । अतः विवेकमार्गमें चलना कलियुगमें बहुत कठिन है । तात्पर्य है कि इस कलियुगमें कर्म, भक्ति और ज्ञान‒इन तीनोंका होना बहुत कठिन है, पर भगवान्‌का नाम लेना कठिन नहीं है । भगवान्‌का नाम सभी ले सकते है; क्योंकि उसमें कोई विधि-विधान नहीं है । उसको बालक, स्त्री, पुरुष, वृद्ध, रोगी आदि सभी ले सकते हैं और हर समय, हर परिस्थितिमें, हर अवस्थामें ले सकते हैं ।

नाम एक सम्बोधन है, पुकार है । उसमें आर्तभावकी ही मुख्यता है, विधिकी मुख्यता नहीं । अतः भगवान्‌का नाम लेकर हरेक मनुष्य आर्तभावसे भगवान्‌को पुकार सकता है ।

शंका‒नामजपमें मन नहीं लगता और मन लगे बिना नामजप करनेमें कुछ फायदा नहीं ! कहा भी है‒

माला  तो  कर में  फिरे, जीभ  फिरै मुख  माहिं ।

मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै,यह तो सुमिरन नाहिं ॥

समाधान‒मन नहीं लगेगा तो सुमिरन’ (स्मरण) नहीं होगा‒यह बात सच्ची है, पर नामजप नहीं होगा‒यह बात दोहेमें नहीं कही गयी है । मन नहीं लगनेसे सुमिरन नहीं होगा तो नहीं सही, पर नामजप तो हो ही जायगा ! नामजप कभी व्यर्थ हो ही नहीं सकता; अतः मन लगे चाहे न लगे, नामजप करते रहना चाहिये ।

जब मन लगेगा, तब नामजप करेंगे‒ऐसा होना सम्भव नहीं है । हाँ, अगर हम नामजप करने लग जायँ तो मन भी लगने लग जायगा; क्योंकि मनका लगना नामजपका परिणाम है ।