प्रश्न‒भूत-प्रेत
कहाँ रहते हैं ? उत्तर‒भूत-प्रेत प्रायः श्मशानमें, श्मशानके वृक्षोंमें रहते हैं । वे सरोवरके किनारे रहते हैं
। वे सरोवरका पानी नहीं पी सकते, पर जलकी ठण्डी हवा उनको अच्छी लगती है,
उससे उनको सुख मिलता है । पीपलके वृक्षका स्वभाव सबको आश्रय
देनेका होनेसे उसकी छायामें भी भूत-प्रेत रहते हैं । कोई उनके नामसे छतरी बनवा देता
है तो वे उसके भीतर रहते है । कोई मकान कई दिनसे सूना पड़ा हो तो उसमें भी भूत-प्रेत
रहने लग जाते हैं । प्रश्न‒भूत-प्रेत
किसी मनुष्यको पकड़ते हैं तो वे उसके शरीरमें किस द्वारसे प्रवेश करते हैं ? उत्तर‒भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता है; अतः वे मनुष्यशरीरमें किसी भी द्वारसे प्रवेश कर सकते हैं ।
वे आँख,
कान, त्वचा आदि किसी भी इन्द्रियसे शरीरमें प्रविष्ट हो सकते हैं
। परन्तु वे प्रायः मलिन द्वारसे अर्थात् मल-मूत्रके स्थानसे अथवा प्राणोंसे ही मनुष्यशरीरमें
प्रविष्ट होते हैं । प्रश्न‒शरीरमें
प्रविष्ट होनेपर भूत-प्रेत कहाँ रहते हैं ? उत्तर‒शरीरमें प्रविष्ट होकर भूत-प्रेत अहंवृत्तिमें अर्थात् अन्तःकरणमें रहते हैं । ‘अहम्’ दो प्रकारका होता है‒(१) अहंकार और (२) अहंवृत्ति ।
अहंकार जीवात्मामें रहता है और अहंवृत्ति अन्तःकरणमें रहती है । भूत-प्रेत श्वास आदिके
द्वारा मनुष्यके शरीरमें प्रविष्ट होकर अहंवृत्तिमें रहकर इन्द्रियोंके स्थानोंको काममें
लेते हैं । प्रश्न‒क्या
शरीरमें एकसे अधिक भूत-प्रेत भी रह सकते हैं ? उत्तर‒हाँ, रह सकते हैं । किसी-किसी व्यक्तिके शरीरमें एकसे अधिक भूत-प्रेत भी प्रविष्ट
हो जाते हैं । जब वे उसके मुखसे बोलते हैं, तब सबकी अलग-अलग आवाज सुनायी पड़ती है । प्रश्न‒मनुष्यशरीरमें
प्रविष्ट होनेके बाद भूत-प्रेत हरदम उसीमें रहते हैं क्या ? उत्तर‒भूत-प्रेत उसमें प्रायः आते-जाते रहते हैं । वे उसके पासमें ही घूमते रहते हैं
और उनकी वायुके समान तेज गति होनेसे वे दूर भी चले जाते हैं । कुछ ऐसे भूत-प्रेत भी
होते हैं,
जो हरदम उसीमें रहते हैं ।
भूत-प्रेत हरेकको दुःख देनेमें,
हरेक शरीरमें प्रविष्ट होनेमें स्वतन्त्र नहीं होते । वे अपनी
मनमानी नहीं कर सकते । वे जिनके शासनमें रहते हैं, उनकी आज्ञाके अनुसार ही वे कार्य करते हैं अर्थात् शासकके आज्ञानुसार
ही वे किसीके शरीरमें प्रविष्ट होते हैं, किसीको दुःख देते हैं । अगर शासक आज्ञा न दे तो वे हरेक व्यक्तिमें
हरेक समयमें भी प्रविष्ट नहीं हो सकते । जैसे शुभकर्मोंके फलस्वरूप जो स्वर्गादि लोकोंमें
जाते हैं,
वे अगर मृत्युलोकमें किसीके साथ सम्बन्ध करते हैं तो उन लोकोंके
शासकोंकी आज्ञाके अनुसार ही करते हैं । स्वतन्त्ररूपसे वे मृत्युलोकमें किसीके साथ
बातचीत भी नहीं कर सकते । इसी तरह भूत-प्रेतयोनिमें भी शासक रहते हैं,
जिनकी आज्ञाके अनुसार ही भूत-प्रेत सब कार्य करते हैं । |