प्रश्न‒ब्रह्मराक्षस
(जिन्न)-से छुटकारा पानेके क्या उपाय है ? उत्तर‒(क) जो भगवान्के भजनमें तत्परतासे लगे हुए हैं, साधनमें जिनकी अच्छी स्थिति है,
जिनमें भजन-स्मरणका जोर है, उन साधकोंके पास जानेसे ब्रह्मराक्षस भाग जाते हैं;
क्योंकि भागवती शक्तिके सामने उनकी शक्ति काम नहीं करती । (ख)‒अगर ब्रह्मराक्षससे ग्रस्त व्यक्ति किसी सिद्ध महापुरुके
पास चला जाय तो वह व्यक्ति उस ब्रह्मराक्षससे छूट जाता है और उस ब्रह्मराक्षसका भी
उद्धार हो जाता है । (ग)‒अगर ब्रह्मराक्षस गयाश्राद्ध कराना स्वीकार कर ले तो उसके
नामसे गयाश्राद्ध कराना चाहिये । इससे उसकी सद्गति हो जायगी । प्रश्न‒भूत-प्रेत
किन लोगोंके पास नहीं आते ? उत्तर‒भूत-प्रेतोंका बल उन्हीं मनुष्योंपर चलता है, जिनके साथ पूर्वजन्मका कोई लेन-देनका सम्बन्ध रहा है अथवा जिनका
प्रारब्ध खराब आ गया है अथवा जो भगवान्के (पारमार्थिक) मार्गमें नहीं लगे हैं अथवा
जिनका खान-पान अशुद्ध है और जो शौच-स्नान आदिमें शुद्धि नहीं रखते अथवा जिनके आचरण
खराब हैं । जो भगवान्के परायण हैं, भगवन्नामका जप-कीर्तन करते हैं,
भगवत्कथा सुनते हैं, खान-पान, शौच-स्नान आदिमें शुद्धि रखते हैं, जिनके आचरण शुद्ध हैं, उनके पास भूत-प्रेत प्रायः नहीं आ सकते । जो नित्यप्रति श्रद्धासे गीता,
भागवत, रामायण आदि सद्ग्रन्थोंका पाठ करते हैं,
उनके पास भी भूत-प्रेत नहीं जाते । परन्तु कई भूत-प्रेत ऐसे
होते हैं,
जो स्वयं गीता, रामायण आदिका पाठ करते हैं । ऐसे भूत-प्रेत पाठ करनेवालोंके
पास जा सकते हैं, पर उनको दुःख नहीं दे सकते । अगर ऐसे भूत-प्रेत गीता आदिका पाठ
करनेवालोंके पास आ जायँ तो उनका निरादर नहीं करना चाहिये;
क्योंकि निरादर करनेसे वे चिढ़ जाते हैं । जो रोज गंगाजलका चरणामृत लेता है,
उसके पास भी भूत-प्रेत नहीं आते । हनुमानचालीसा अथवा विष्णुसहस्रनामका
पाठ करनेवालेके पास भी भूत-प्रेत नहीं आते । एक
बार दो सज्जन बैलगाड़ीपर बैठकर दूसरे गाँव जा रहे थे । रास्तेमें
गाड़ीके पीछे एक पिशाच (प्रेत) लग गया । उसको देखकर वे दोनों सज्जन डर गये । उनमेंसे
एक सज्जनने विष्णुसहस्रनामका पाठ शुरू कर दिया । जबतक दूसरे गाँवकी सीमा नहीं आयी,
तबतक वह पिशाच गाड़ीके पीछे-पीछे ही चलता रहा । सीमा आते ही वह
अदृश्य हो गया । इस तरह विष्णुसहस्रनामके प्रभावसे वह गाड़ीपर आक्रमण नहीं कर सका । जिसके गलेमें तुलसी, रुद्राक्ष अथवा बद्ध पारदकी माला होती है,
उसका भूत-प्रेत स्पर्श नहीं कर सकते । एक सज्जन प्रातः लगभग
चार बजे घोड़ेपर बैठकर किसी आवश्यक कामके लिये दूसरे गाँव जा रहे थे । ठण्डीके दिन थे
। सूर्योदय होनेमें लगभग डेढ़ घण्टेकी देरी थी । जाते-जाते वे ऐसे स्थानपर पहुँचे,
जो इस बातके लिये प्रसिद्ध था कि वहाँ भूत-प्रेत रहते हैं,
। वहाँ पहुँचते ही उनके सामने अचानक एक प्रेत पेड़-जैसा लम्बा
रूप धारण करके रास्तेमें खड़ा हो गया । घोड़ा बिचक जानेसे वे सज्जन घोड़ेसे गिर पड़े ।
उनके दोनों हाथोंमें मोच आ गयी । पर वे सज्जन बड़े निर्भय थे;
अतः पिशाचसे डरे नहीं । जबतक सूर्योदय नहीं हुआ,
तबतक वह पिशाच उनके सामने ही खड़ा रहा,
पर उसने उनपर आक्रमण नहीं किया,
उनका स्पर्श नहीं किया; क्योंकि उनके गलेमें तुलसीकी माला थी । सूर्योदय होनेपर पिशाच
अदृश्य हो गया और वे सज्जन पुनः घोड़ेपर बैठकर अपने घर वापस आ गये । सूर्यास्तसे लेकर आधी राततक तथा मध्याह्नके समय भूत-प्रेतोंमें ज्यादा बल रहता है,
उनका ज्यादा जोर चलता है । यह सबके अनुभवमें भी आता है कि रात्रि
और मध्याह्नके समय श्मशान आदि
स्थानोंमें जानेसे जितना भय लगता है, उतना भय सबेरे और संध्याके समय नहीं लगता । अगर रात्रि अथवा
मध्याह्नके समय किसी एकान्त, निर्जन स्थानपर जाना पड़े और वहाँ पीछेसे कोई (प्रेत) पुकारे
अथवा ‘मैं आ जाऊँ’‒ऐसा कहे तो उत्तरमें कुछ नहीं बोलना चाहिये,
प्रत्युत चलते-चलते भगवन्नाम-जप,
कीर्तन, विष्णुसहस्रनाम, हनुमानचालीसा, गीता आदिका पाठ शुरू कर देना चाहिये । उत्तर न मिलनेसे वह प्रेत
वहींपर रह जायगा । अगर हम उत्तर देंगे, ‘हाँ आ जा’‒ऐसा कहेंगे तो वह प्रेत हमारे पीछे लग जायगा । जहाँ प्रेत रहते हैं, वहाँ पेशाब आदि करनेसे भी वे पकड़ लेते हैं;
क्योंकि उनके स्थानपर पेशाब करना उनके प्रति अपराध है । अतः
मनुष्यको जहाँ-कहीं भी पेशाब नहीं करना चाहिये ।
हमें दुर्गतिमें, प्रेतयोनिमें न जाना पड़े‒इस बातकी सावधानीके लिये और गयाश्राद्ध करके, पिण्ड-पानी देकर प्रेतात्माओंके उद्धारकी प्रेरणा करनेके लिये ही यहाँ प्रेतविषयक चर्चा की गयी है । नारायण !! नारायण !! नारायण !! |