।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   आषाढ़ कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०७९, शनिवार

गीतामें आहारीका वर्णन


प्रश्न‒आजकल कई लोग जीवरहित अण्डा खानेमें दोष नहीं मानते; यह कहाँतक उचित है ?

उत्तर‒जीवरहित होनेपर भी वह साग-सब्जीकी तरह शुद्ध नहीं है, प्रत्युत महान् अशुद्ध है; क्योंकि वह अण्डा महान अपवित्र रज (रक्त) और मांससे ही बनता है ।

माताएँ-बहनें जब रजस्वला हो जाती हैं, तब उनको हम छूते भी नहीं, दूरसे ही नमस्कार करते हैं; क्योंकि उनको छूनेसे अपवित्रता आती है । रजस्वला स्त्रीकी छाया पड़नेसे साँप अन्धे हो जाते हैं और पापड़ काले पड़ जाते हैं । जलाशयको छूनेसे उसमें जीव-जन्तु पैदा हो जाते हैं । अन्न, वस्त्र आदिको छूनेसे वे अपवित्र हो जाते हैं । कारण कि रजस्वला स्त्रीके शरीरसे जहर निकलता है, जिसके निकल जानेपर वह शुद्ध हो जाती है । इस प्रकार जिस रजको अपवित्र मानते है, उसी रजसे अण्डा बनता है । अतः अण्डा खानेवालेमें वह अपवित्रता आयेगी ही ।

जो व्यक्ति जीवरहित अण्डा खाने लग जायगा, वह फिर जीववाला अण्डा भी खाने लगेगा । इसके सिवाय जीवरहित अण्डामें जीववाले अण्डाकी मिलावट न हो‒इसका भी क्या पता ? अतः प्रत्येक दृष्टिसे अण्डा खाना निषिद्ध है, पाप है ।

प्रश्न‒जड़ी-बूटियाँ उखाड़नेमें भी हिंसा होती है । अतः उनसे बनी हुई दवाइयाँ लेनी चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒चतुर्थाश्रमी संन्यासी, त्यागी अगर जड़ी-बूटियोंसे बनी शुद्ध दवाई भी न लें तो अच्छा है; क्योंकि उनमें त्याग ही मुख्य है । ऐसे तो त्याग सबके लिये ही अच्छा है, पर गृहस्थ आदि यदि जड़ी-बूटियोंसे बनी दवाइयाँ लें तो उनके लिये उतना दोष नहीं है । जैसे, जो खेती आदि करते हैं, उनके द्वारा अनेक जीव-जन्तुओंकी हिंसा होती है, पर उस हिंसाका उतना दोष नहीं लगता; क्योंकि खेतीसे उत्पन्न होनेवाले अन्न आदिके द्वारा प्राणियोंका जीवन चलता है । ऐसे ही जो लोग जड़ी-बूटियाँ उखाड़ते हैं, उनके द्वारा हिंसा तो होती है, पर उसका उतना दोष नहीं लगता, क्योंकि उस ओषधिके द्वारा लोगोंको नीरोगता प्राप्त होती है ।

पद्मपुराणमें आता है कि मनुष्य किसी भी जलाशयका पानी पीये तो उस जलाशयमेंसे थोड़ी-सी मिट्टी निकालकर किनारेपर डाल दे । इसका तात्पर्य यह है कि वह जलाशय किसी दूसरे व्यक्तिने खुदवाया है । अतः उसमेंसे मिट्टी निकालनेसे जलाशयके खोदनेमें हमारा भी हिस्सा हो जायगा, जिससे उस जलाशयका पानी पीने (पराया हक लेने)-का दोष हमें नहीं लगेगा । ऐसे ही जो जड़ी-बूटियाँ औषध बनानेके काममें आती हों, उनको जल आदिसे पुष्ट करना चाहिये, उनकी विशेष रक्षा करनी चाहिये, उनको निरर्थक नहीं उखाड़ना चाहिये ।

प्रश्न‒रोग किस प्रकार पैदा होते है ?

उत्तर‒रोग दो प्रकारसे पैदा होते हैं‒प्रारब्धसे और कुपथ्यसे । पुराने पापोंका फल भुगतानेके लिये शरीरमें जो रोग पैदा हो जाते है, वे ‘प्रारब्धजन्य’ हैं । जो रोग निषिद्ध खान-पानसे, आहार-विहारसे पैदा होते हैं वे ‘कुपथ्यजन्य’ हैं ।