।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
   कार्तिक शुक्ल अष्टमी, वि.सं.-२०७९, मंगलवार

गीतामें सगुणोपासनाके नौ प्रकार



Listen



स्वकीयोपासना प्रोक्ता  नवधा फाल्गुनं प्रति ।

तासां यया कया युक्तो हरिं प्राप्‍नोति मानवः ॥

गीतामें सगुण-उपासनाका नौ प्रकारसे वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है‒

(१) सबके आदिमें भगवान्‌ हैं‒जो मनुष्य मेरेको अजन्मा, अनादि (सबका आदि) और सम्पूर्ण लोकोंका महान् ईश्‍वर मानता है, वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्‍त हो जाता है (१० । ३); मैं सम्पूर्ण जगत्‌का प्रभव (निमित्त कारण) तथा प्रलय (उपादान कारण) हूँ अर्थात् सबका आदि कारण हूँ (७ । ६); दैवी प्रकृतिके आश्रित महात्मालोग मुझे सम्पूर्ण प्राणियोंका आदि और अविनाशी जानकर अनन्यमनसे मेरा भजन करते हैं (९ । १३); आदि-आदि ।

(२) सबमें भगवान्‌ हैं‒जो सबमें मेरेको देखता है, उसके लिये मैं कभी अदृश्य नहीं होता (६ । ३०); जो सम्पूर्ण प्राणियोंमें मेरेको स्थित देखता है (६ । ३१); मैं अव्यक्तरूपसे सम्पूर्ण जगत्‌में व्याप्‍त हूँ (९ । ४); प्राणियोंके अन्तःकरणमें आत्मारूपसे मैं ही स्थित हूँ (१० । २०); वह परमात्मा सबके हृदयमें स्थित है (१३ । १७); मैं ही सब प्राणियोंके हृदयमें अन्तर्यामीरूपसे स्थित हूँ (१५ । १५); ईश्‍वर सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें स्थित है (१८ । ६१); आदि-आदि ।

(३) सब भगवान्‌में हैं‒जो सबको मेरेमें देखता है, वह मेरे लिये कभी अदृश्य नहीं होता (६ । ३०); यह सम्पूर्ण संसार सूत (धागे)-में सूतकी मणियोंकी तरह मेरेमें ही ओतप्रोत है (७ । ७); जिसके अन्तर्गत सम्पूर्ण प्राणी हैं, (८ । २२); सब प्राणी मेरेमें ही स्थित हैं, (९ । ६); हे अर्जुन ! तू मेरे इस शरीरके एक देशमें चर-अचरसहित सम्पूर्ण जगत्‌को अभी देख ले (११ । ७); अर्जुनने देवोंके देव भगवान्‌के शरीरमें एक जगह स्थित अनेक प्रकारके विभागोंमें विभक्त सम्पूर्ण जगत्‌को देखा (११ । १३); हे देव ! मैं आपके शरीरमें सम्पूर्ण देवताओंको, प्राणियोंको, कमलासनपर बैठे हुए ब्रह्माजीको, शंकरजीको, ऋषियोंको और दिव्य सर्पोंको देखता हूँ (११ । १५); आदि-आदि ।

(४) सबके मालिक भगवान्‌ हैं‒मैं अजन्मा, अविनाशी और सम्पूर्ण प्राणियोंका ईश्‍वर (मालिक) होता हुआ भी अपनी प्रकृतिको अधीन करके योगमायासे प्रकट होता हूँ (४ । ६); जो मुझे सब यज्ञों और तपोंका भोक्ता, सम्पूर्ण लोकोंके ईश्‍वरोंका भी ईश्‍वर (मालिक) तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका सुहृद् मानता है, वह शान्तिको प्राप्‍त हो जाता है (५ । २९); प्रकृति मेरी अध्यक्षतामें सम्पूर्ण चराचर जगत्‌को रचती है (९ । १०); मूढ़लोग मुझ सम्पूर्ण प्राणियोंके महान् ईश्‍वरको साधारण मनुष्य मानकर मेरी अवज्ञा करते हैं (९ । ११); सम्पूर्ण योगोंके महान् ईश्‍वर भगवान्‌ श्रीकृष्णने अर्जुनको अपना परम ऐश्‍वर्ययुक्त विराट्‌रूप दिखाया ( ११ । ९); आदि-आदि ।