Listen (२) मनमें दो बातोंकी उलझन हो और उनका समाधान पाना हो तो उपर्युक्त
विधिसे ही ‘व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव
मे । तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥’ (३ ।
२)‒इस श्लोकका पाठ करना चाहिये
। (३) भूत-प्रेतकी बाधाको दूर करना हो तो ‘स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च । रक्षांसि
भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः ॥’ (११ ।
३६)‒इस मन्त्रको पहली कही गयी
विधिसे सिद्ध कर लेना चाहिये । फिर जिस व्यक्तिको भूत-प्रेतने पकड़ा है,
उसको इस मन्त्रका पाठ करते हुए मोरपंखसे झाड़ा दें अथवा अपने
हाथमें शुद्ध जलसे भरा हुआ लोटा ले लें और इस मन्त्रको बोलकर जलमें फूँक मारते रहें,
फिर वह जल उस व्यक्तिको पिला दें । इन दोनों प्रयोगोंमें इस
मन्त्रका सात, इक्कीस या एक सौ आठ बार पाठ कर सकते हैं । इस मन्त्रको भोजपत्र या सफेद कागजपर
अनारकी कलमके द्वारा अष्टगंधसे लिखें और ताबीजमें डालकर रोगीके गलेमें लाल धागेसे पहना
दें । (४) शास्त्रार्थमें, वाद-विवादमें विजय पानेके लिये ‘यत्र
योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम
॥’ (१८ ।
७८)‒इस मन्त्रका जप करना चाहिये । (५) सब जगह भगवद्भाव करनेके लिये सातवें अध्यायके सातवें अथवा
उन्नीसवें श्लोकका पाठ करना चाहिये । (६) भगवान्की भक्ति प्राप्त करनेके लिये नवें अध्यायका चौंतीसवाँ,
ग्यारहवें अध्यायका चौवनवाँ अथवा पचपनवाँ, बारहवें अध्यायका आठवाँ और अठारहवें अध्यायका
छाछठवाँ‒इनमेंसे किसी एक श्लोकका पाठ करना चाहिये । इस तरह जिस कार्यके लिये जो श्लोक ठीक मालूम दे,
उसीका पाठ करते रहें तो कार्य सिद्ध हो जायगा । अगर वह श्लोक
अर्जुनका हो तो अपनेमें अर्जुनका भाव लाकर भगवान्से प्रार्थना करें;
और भगवान्का श्लोक हो तो ‘भगवान् मेरेसे कह रहे हैं’‒ऐसा भाव रखते हुए पाठ करें । गीताके श्लोकोंपर जितना अधिक श्रद्धा-विश्वास होगा,
उतना ही जल्दी काम सिद्ध होगा ।
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
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