।। श्रीहरिः ।।

       


  आजकी शुभ तिथि–
      माघ कृष्ण अष्टमी , वि.सं.-२०७९, रविवार

गीताका परिमाण और पूर्ण शरणागति





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भगवन्तं   प्रपन्‍नास्तु   तदभिन्‍ना   हि   सर्वथा ।

भक्ताः कृष्णे विलीयन्ते कृष्ण एको हि शिष्यते ॥

महर्षि श्रीवेदव्यास-रचित महाभारतमें ऋषिवर वैशम्पायनजीने गीताके परिमाणमें कुल सात सौ पैंतालीस श्‍लोक बताये हैं‒

षट्शतानि सविंशानि   श्‍लोकानां प्राह केशवः ।

अर्जुनः   सप्‍तपञ्चाशत्   सप्‍तषष्टिं   तु  संजयः ।

धृतराष्ट्र:   श्‍लोकमेकं   गीताया   मानमुच्यते ॥

(भीष्म ४३ । ४-५)

गीतामें भगवान्‌ श्रीकृष्णने छः सौ बीस श्‍लोक कहे हैं, अर्जुनने सत्तावन श्‍लोक कहे हैं, संजयने सड़सठ श्‍लोक कहे हैं और धृतराष्ट्रने एक श्‍लोक कहा है । यह गीताका परिमाण कहा जाता है ।’[*]

गीताकी प्रचलित प्रतिके अनुसार अठारह अध्यायोंके सम्पूर्ण श्‍लोक जोड़नेपर पाँच सौ चौहत्तर श्‍लोक भगवान्‌ श्रीकृष्णके, चौरासी श्‍लोक अर्जुनके, इकतालीस श्‍लोक संजयके और एक श्‍लोक धृतराष्ट्रका है, जिनका कुल योग सात सौ होता है । इन सात सौ श्‍लोकोंमें छः सौ चौवालीस श्‍लोक बत्तीस अक्षरोंके हैं, एक श्‍लोक (११ । १) तैंतीस अक्षरोंका है, इक्यावन श्‍लोक चौवालीस अक्षरोंके हैं, तीन श्‍लोक (२ । २९; ८ । १०; और १५ । ३) पैंतालीस अक्षरोंके हैं और एक श्‍लोक (२ । ६) छियालीस अक्षरोंका है । इस प्रकार गीताके श्‍लोकोंके सम्पूर्ण अक्षर २३०६६ (तेईस हजार छाछठ) हैं । पुष्पिकाओंके कुल आठ सौ तिहत्तर अक्षर हैं । उवाचोंके कुल तीन सौ तिरासी अक्षर हैं । अथ श्रीमद्भगवद्‌गीता’, ‘अथ प्रथमोऽध्यायः आदिके कुल एक सौ सैंतीस अक्षर हैं । इस प्रकार गीतामें कुल २४४५९ (चौबीस हजार चार सौ उनसठ) अक्षर हैं ।



[*] महाभारत (आदिपर्व १ । ७४-८३)-में आता है कि ब्रह्माजीके कहनेसे महर्षि वेदव्यासजीने गणेशजीसे महाभारत-ग्रन्थका लेखक बननेकी प्रार्थना की । इसपर गणेशजीने एक शर्त रखी कि यदि लिखते समय क्षणभरके लिये भी मेरी लेखनी न रुके तो मैं इस ग्रन्थका लेखक बन सकता हूँ । वेदव्यासजीने भी गणेशजीके सामने यह शर्त रखी कि आप भी बिना समझे किसी भी प्रसंगमें एक अक्षर भी न लिखें । गणेशजीने इसे स्वीकार कर लिया और महाभारत लिखने बैठ गये । लिखवाते समय बीच-बीचमें वेदव्यासजी ऐसे-ऐसे (गूढ़ अर्थवाले) कूट श्‍लोक बोल देते थे, जिन्हें समझनेके लिये गणेशजीको थोड़ा रुकना पड़ता था । उतने समयमें वेदसव्यासजी और बहुत-से श्‍लोकोंकी रचना कर लेते थे । गीता-परिमाण-सम्बन्धी श्‍लोक भी ऐसे ही कूट श्‍लोक प्रतीत होते हैं । इसलिये कोई-कोई टीकाकार गीता-परिमाणकी संगति बैठानेमें असमर्थ होकर इन श्‍लोकोंको प्रक्षिप्त (क्षेपक) मान लेते हैं । परंतु वास्तवमें ये महाभारतके ही श्‍लोक प्रतीत होते हैं; क्योंकि एक तो ये महाभारतकी पुरानी-से-पुरानी प्रतियोंमें पाये जाते हैं और दूसरे, गीताका गहराईसे विचार करनेपर इन श्‍लोकोंके अनुसार गीता-परिमाणकी संगति ठीक-ठीक बैठ जाती है ।

महाभारतकी जिन प्रतियोंमें हमें गीता-परिमाण-सम्बन्धी उपर्युक्त श्‍लोक मिले हैं,उनका परिचय इस प्रकार है‒

(१) गीताप्रेस, गोरखपुरसे प्रकाशित‒पाण्डेय श्रीरामनारायणदत्त शास्‍त्रीकृत हिंदी-टीका, पृष्ठ २८१३ ।

(२) सनातनधर्म प्रेस, मुरादाबादसे प्रकाशित‒श्रीरामस्वरूपकृत हिंदी-टीका, पृष्ठ १८४ ।

(३) महाभारत-प्रकाशक-मण्डल, मालीवाड़ा, दिल्लीसे प्रकाशित‒श्रीगंगाप्रसाद शास्‍त्रीकृत हिंदी-टीका पृष्ठ ३८७ ।

(४) स्वाध्याय-मण्डलद्वारा प्रकाशित‒श्रीपाद दामोदर सातवलेकरकृत हिंदी-टीका, पृष्ठ २२१ ।

(५) श्रीद्वारकाप्रसाद शर्माद्वारा किया महाभारतका हिंदी-अनुवादमात्र, पृष्ठ १४६ ।

(६) महाभारतकी नीलकण्ठी टीका‒मूलमें गीता-परिमाण-सम्बन्धी श्‍लोक दिये हैं; किंतु उनकी टीका न करके गीता सुगीता कर्तव्या इत्यादयः सार्धाः पञ्च श्‍लोकाः गोडैर्न पठ्यन्तेऐसा लिखा है ।