।। श्रीहरिः ।।



  आजकी शुभ तिथि–
वैशाख कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०८०, सोमवार

श्रीमद्भगवद्‌गीता

साधक-संजीवनी (हिन्दी टीका)



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सम्बन्ध‒द्रोणाचार्यसे पाण्डवोंकी सेना देखनेके लिये प्रार्थना करके अब दुर्योधन उन्हें पाण्डव-सेनाके महारथियोंको दिखाता है ।

      अत्र   शूरा   महेष्‍वासा  भीमार्जुनसमा   युधि ।

    युयुधानो      विराटश्‍च    द्रुपदश्‍च   महारथः ॥ ४ ॥

      धृष्‍टकेतुश्‍चेकितानः   काशिराजश्‍च  वीर्यवान् ।

    पुरुजित्कुन्तिभोजश्‍च   शैब्यश्‍च    नरपुङ्गवः ॥ ५ ॥

      युधामन्युश्‍च  विक्रान्त उत्तमौजाश्‍च  वीर्यवान् ।

    सौभद्रो    द्रौपदेयाश्‍च   सर्व   एव   महारथाः ॥ ६ ॥

अत्र = यहाँ (पाण्डवों-की सेनामें)

पुरुजित् = पुरुजित्

शूराः = बड़े-बड़े शूरवीर हैं,

च = और

महेष्‍वासाः = (जिनके) बहुत बड़े-बड़े धनुष हैं

कुन्तिभोजः = कुन्तिभोज (‒ये दोनों भाई)

च = तथा (जो)

= तथा

युधि = युद्धमें

नरपुङ्गवः = मनुष्योंमें श्रेष्‍ठ

भीमार्जुनसमाः = भीम और अर्जुनके समान हैं । (उनमें)

शैब्यः = शैब्य (भी हैं ।)

युयुधानः = युयुधान (सात्यकि),

विक्रान्तः = पराक्रमी

विराटः = राजा विराट

युधामन्युः = युधामन्यु

च = और

च = और

महारथः = महारथी

वीर्यवान् = पराक्रमी

द्रुपदः = द्रुपद (भी हैं ।)

उत्तमौजाः = उत्तमौजा (भी हैं ।)

धृष्‍टकेतुः = धृष्‍टकेतु

सौभद्रः = सुभद्रापुत्र अभिमन्यु

च = और

च = और

चेकितानः = चेकितान

द्रौपदेयाः = द्रौपदीके पाँचों पुत्र (भी हैं ।)

च = तथा

सर्वे, एव = (ये) सब-के-सब

वीर्यवान् = पराक्रमी

महारथाः = महारथी हैं ।

काशिराजः=काशिराज (भी हैं ।)

 

व्याख्या‘अत्र शूरा महेष्‍वासा भीमार्जुनसमा युधि’जिनसे बाण चलाये जाते हैं, फेंके जाते हैं, उनका नाम इष्‍वास’ अर्थात् धनुष है । ऐसे बड़े-बड़े इष्‍वास (धनुष) जिनके पास हैं, वे सभी महेष्‍वास’ हैं । तात्पर्य है कि बड़े धनुषोंपर बाण चढ़ाने एवं प्रत्यंचा खींचनेमें बहुत बल लगता है । जोरसे खींचकर छोड़ा गया बाण विशेष मार करता है । ऐसे बड़े-बड़े धनुष पासमें होनेके कारण ये सभी बहुत बलवान् और शूरवीर हैं । ये मामूली योद्धा नहीं हैं । युद्धमें ये भीम और अर्जुनके समान हैं अर्थात् बलमें ये भीमके समान और अस्‍त्र-शस्‍त्रकी कलामें ये अर्जुनके समान हैं ।

युयुधानः’युयुधान (सात्यकि)-ने अर्जुनसे अस्‍त्र-शस्‍त्रकी विद्या सीखी थी । इसलिये भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा दुर्योधनको नारायणी सेना देनेपर भी वह कृतज्ञ होकर अर्जुनके पक्षमें ही रहा, दुर्योधनके पक्षमें नहीं गया । द्रोणाचार्यके मनमें अर्जुनके प्रति द्वेषभाव पैदा करनेके लिये दुर्योधन महारथियोंमें सबसे पहले अर्जुनके शिष्य युयुधानका नाम लेता है । तात्पर्य है कि इस अर्जुनको तो देखिये ! इसने आपसे ही अस्‍त्र-शस्‍त्र चलाना सीखा है और आपने अर्जुनको यह वरदान भी दिया है कि संसारमें तुम्हारे समान और कोई धनुर्धर न हो, ऐसा प्रयत्‍न करूँगा । इस तरह आपने तो अपने शिष्य अर्जुनपर

प्रयतिष्ये  तथा  कर्तुं  यथा  नान्यो  धनुर्धरः ।

 त्वत्समो भविता लोके सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥

(महाभारत, आदि १३१ । २७)

इतना स्‍नेह रखा है, पर वह कृतघ्‍न होकर आपके विपक्षमें लड़नेके लिये खड़ा है, जबकि अर्जुनका शिष्य युयुधान उसीके पक्षमें खड़ा है ।

[ युयुधान महाभारतके युद्धमें न मरकर यादवोंके आपसी युद्धमें मारे गये । ]

विराटश्‍च’जिसके कारण हमारे पक्षका वीर सुशर्मा अपमानित किया गया, आपको सम्मोहन-अस्‍त्रसे मोहित होना पड़ा और हमलोगोंको भी जिसकी गायें छोड़कर युद्धसे भागना पड़ा, वह राजा विराट आपके प्रतिपक्षमें खड़ा है ।

राजा विराटके साथ द्रोणाचार्यका ऐसा कोई वैरभाव या द्वेषभाव नहीं था; परन्तु दुर्योधन यह समझता है कि अगर युयुधानके बाद मैं द्रुपदका नाम लूँ तो द्रोणाचार्यके मनमें यह भाव आ सकता है कि दुर्योधन पाण्डवोंके विरोधमें मेरेको उकसाकर युद्धके लिये विशेषतासे प्रेरणा कर रहा है तथा मेरे मनमें पाण्डवोंके प्रति वैरभाव पैदा कर रहा है । इसलिये दुर्योधन द्रुपदके नामसे पहले विराटका नाम लेता है, जिससे द्रोणाचार्य मेरी चालाकी न समझ सकें और विशेषतासे युद्ध करें ।

[ राजा विराट उत्तर, श्‍वेत और शंख नामक तीनों पुत्रोंसहित महाभारत-युद्धमें मारे गये । ]

द्रुपदश्‍च महारथः’आपने तो द्रुपदको पहलेकी मित्रता याद दिलायी, पर उसने सभामें यह कहकर आपका अपमान किया कि मैं राजा हूँ और तुम भिक्षुक हो; अतः मेरी-तुम्हारी मित्रता कैसी ? तथा वैरभावके कारण आपको मारनेके लिये पुत्र भी पैदा किया, वही महारथी द्रुपद आपसे लड़नेके लिये विपक्षमें खड़ा है ।

[ राजा द्रुपद युद्धमें द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये । ]

‘धृष्‍टकेतुः’यह धृष्‍टकेतु कितना मूर्ख है कि जिसके पिता शिशुपालको कृष्णने भरी सभामें चक्रसे मार डाला था, उसी कृष्णके पक्षमें यह लड़नेके लिये खड़ा है !

[ धृष्‍टकेतु द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये । ]

चेकितानः’सब यादवसेना तो हमारी ओरसे लड़नेके लिये तैयार है और यह यादव चेकितान पाण्डवोंकी सेनामें खड़ा है !

[ चेकितान दुर्योधनके हाथसे मारे गये । ]

काशिराजश्‍च वीर्यवान्’यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है । यह भी पाण्डवोंकी सेनामें खड़ा है । इसलिये आप सावधानीसे युद्ध करना; क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है ।

[ काशिराज महाभारत-युद्धमें मारे गये । ]

पुरुजित्कुन्तिभोजश्‍च’यद्यपि पुरुजित् और कुन्तिभोज‒ये दोनों कुन्तीके भाई होनेसे हमारे और पाण्डवोंके मामा हैं, तथापि इनके मनमें पक्षपात होनेके कारण ये हमारे विपक्षमें युद्ध करनेके लिये खड़े हैं ।

[ पुरुजित् और कुन्तिभोज‒दोनों ही युद्धमें द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये । ]

शैब्यश्‍च नरपुङ्गवः’यह शैब्य युधिष्‍ठिरका श्‍वशुर है । यह मनुष्योंमें श्रेष्‍ठ और बहुत बलवान् है । परिवारके नाते यह भी हमारा सम्बन्धी है । परन्तु यह पाण्डवोंके ही पक्षमें खड़ा है ।

युधामन्युश्‍च विक्रान्त उत्तमौजाश्‍च वीर्यवान्’पांचालदेशके बड़े बलवान् और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उत्तमौजा मेरे वैरी अर्जुनके रथके पहियोंकी रक्षामें नियुक्त किये गये हैं । आप इनकी ओर भी नजर रखना ।

[ रातमें सोते हुए इन दोनोंको अश्‍वत्थामाने मार डाला । ]

सौभद्रः’यह कृष्णकी बहन सुभद्राका पुत्र अभिमन्यु है । यह बहुत शूरवीर है । इसने गर्भमें ही चक्रव्यूह-भेदनकी विद्या सीखी है । अतः चक्रव्यूह-रचनाके समय आप इसका खयाल रखें ।

[ युद्धमें दुःशासनपुत्रके द्वारा अन्यायपूर्वक सिरपर गदाका प्रहार करनेसे अभिमन्यु मारे गये । ]

द्रौपदेयाश्‍च’युधिष्‍ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव‒इन पाँचोंके द्वारा द्रौपदीके गर्भसे क्रमशः प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं । इन पाँचोंको आप देख लीजिये । द्रौपदीने भरी सभामें मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदयको जलाया है, उसीके इन पाँचों पुत्रोंको युद्धमें मारकर आप उसका बदला चुकायें ।

[ रातमें सोते हुए इन पाँचोंको अश्‍वत्थामाने मार डाला । ]

सर्व एव महारथाः’ये सब के-सब महारथी हैं । जो शास्‍त्र और शस्‍त्रविद्या‒दोनोंमें प्रवीण हैं और युद्धमें अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओंका संचालन कर सकता है, उस वीर पुरुषको महारथी’ कहते हैं । ऐसे बहुत-से महारथी पाण्डव-सेनामें खड़े हैं ।

२    एको दशसहस्राणि योधयेद् यस्तु धन्विनाम् ।

           शस्‍त्रशास्‍त्रप्रवीणश्‍च  महारथ  इति  स्मृतः ॥

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