Listen सम्बन्ध‒द्रोणाचार्यसे पाण्डवोंकी सेना देखनेके लिये प्रार्थना
करके अब दुर्योधन उन्हें पाण्डव-सेनाके महारथियोंको दिखाता है । अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि । युयुधानो
विराटश्च
द्रुपदश्च महारथः ॥ ४ ॥ धृष्टकेतुश्चेकितानः
काशिराजश्च
वीर्यवान् । पुरुजित्कुन्तिभोजश्च
शैब्यश्च नरपुङ्गवः ॥ ५ ॥ युधामन्युश्च
विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् । सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥ ६ ॥
व्याख्या‒‘अत्र शूरा महेष्वासा
भीमार्जुनसमा युधि’‒जिनसे बाण चलाये जाते हैं, फेंके जाते हैं, उनका नाम ‘इष्वास’ अर्थात् धनुष है । ऐसे बड़े-बड़े इष्वास (धनुष) जिनके पास हैं,
वे सभी ‘महेष्वास’ हैं । तात्पर्य है कि बड़े धनुषोंपर बाण चढ़ाने एवं प्रत्यंचा
खींचनेमें बहुत बल लगता है । जोरसे खींचकर छोड़ा गया बाण विशेष मार करता है । ऐसे बड़े-बड़े
धनुष पासमें होनेके कारण ये सभी बहुत बलवान् और शूरवीर हैं । ये मामूली योद्धा नहीं
हैं । युद्धमें ये भीम और अर्जुनके समान हैं अर्थात् बलमें ये भीमके समान और अस्त्र-शस्त्रकी
कलामें ये अर्जुनके समान हैं । ‘युयुधानः’‒युयुधान (सात्यकि)-ने अर्जुनसे अस्त्र-शस्त्रकी विद्या सीखी
थी । इसलिये भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा दुर्योधनको नारायणी सेना देनेपर भी वह कृतज्ञ
होकर अर्जुनके पक्षमें ही रहा, दुर्योधनके पक्षमें नहीं गया । द्रोणाचार्यके मनमें अर्जुनके
प्रति द्वेषभाव पैदा करनेके लिये दुर्योधन महारथियोंमें सबसे पहले अर्जुनके शिष्य युयुधानका
नाम लेता है । तात्पर्य है कि इस अर्जुनको तो देखिये ! इसने आपसे ही अस्त्र-शस्त्र
चलाना सीखा है और आपने अर्जुनको यह वरदान भी दिया है कि संसारमें तुम्हारे समान और
कोई धनुर्धर न हो, ऐसा प्रयत्न करूँगा१
। इस तरह आपने तो अपने शिष्य अर्जुनपर १ प्रयतिष्ये तथा कर्तुं यथा नान्यो
धनुर्धरः । त्वत्समो भविता लोके
सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥ (महाभारत, आदि॰ १३१ । २७) इतना स्नेह रखा है, पर वह कृतघ्न होकर आपके विपक्षमें लड़नेके
लिये खड़ा है, जबकि अर्जुनका शिष्य युयुधान उसीके पक्षमें खड़ा है । [ युयुधान महाभारतके युद्धमें न मरकर यादवोंके आपसी युद्धमें
मारे गये । ] ‘विराटश्च’‒जिसके कारण हमारे पक्षका वीर सुशर्मा अपमानित किया गया,
आपको सम्मोहन-अस्त्रसे मोहित होना पड़ा और हमलोगोंको भी जिसकी
गायें छोड़कर युद्धसे भागना पड़ा, वह राजा विराट आपके प्रतिपक्षमें खड़ा है । राजा विराटके साथ द्रोणाचार्यका ऐसा कोई वैरभाव या द्वेषभाव
नहीं था;
परन्तु दुर्योधन यह समझता है कि अगर युयुधानके बाद मैं द्रुपदका
नाम लूँ तो द्रोणाचार्यके मनमें यह भाव आ सकता है कि दुर्योधन पाण्डवोंके विरोधमें
मेरेको उकसाकर युद्धके लिये विशेषतासे प्रेरणा कर रहा है तथा मेरे मनमें पाण्डवोंके
प्रति वैरभाव पैदा कर रहा है । इसलिये दुर्योधन द्रुपदके नामसे पहले विराटका नाम लेता
है, जिससे द्रोणाचार्य मेरी चालाकी न समझ सकें और
विशेषतासे युद्ध करें । [ राजा विराट उत्तर, श्वेत और शंख नामक तीनों पुत्रोंसहित महाभारत-युद्धमें मारे
गये । ] ‘द्रुपदश्च
महारथः’‒आपने तो द्रुपदको पहलेकी मित्रता याद दिलायी,
पर उसने सभामें यह कहकर आपका अपमान किया कि मैं राजा हूँ और
तुम भिक्षुक हो; अतः मेरी-तुम्हारी मित्रता कैसी ? तथा वैरभावके कारण आपको मारनेके लिये पुत्र भी पैदा किया,
वही महारथी द्रुपद आपसे लड़नेके लिये विपक्षमें खड़ा है । [ राजा द्रुपद युद्धमें द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये । ] ‘धृष्टकेतुः’‒यह धृष्टकेतु कितना मूर्ख है कि जिसके पिता शिशुपालको कृष्णने
भरी सभामें चक्रसे मार डाला था, उसी कृष्णके पक्षमें यह लड़नेके लिये खड़ा है ! [ धृष्टकेतु द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये । ] ‘चेकितानः’‒सब यादवसेना तो हमारी ओरसे लड़नेके लिये तैयार है और यह यादव
चेकितान पाण्डवोंकी सेनामें खड़ा है ! [ चेकितान दुर्योधनके हाथसे मारे गये । ] ‘काशिराजश्च
वीर्यवान्’‒यह काशिराज बड़ा ही शूरवीर और महारथी है । यह भी पाण्डवोंकी सेनामें खड़ा है । इसलिये
आप सावधानीसे युद्ध करना; क्योंकि यह बड़ा पराक्रमी है । [ काशिराज महाभारत-युद्धमें मारे गये । ] ‘पुरुजित्कुन्तिभोजश्च’‒यद्यपि पुरुजित् और कुन्तिभोज‒ये दोनों कुन्तीके भाई होनेसे
हमारे और पाण्डवोंके मामा हैं, तथापि इनके मनमें पक्षपात होनेके कारण ये हमारे विपक्षमें युद्ध
करनेके लिये खड़े हैं । [ पुरुजित् और कुन्तिभोज‒दोनों ही युद्धमें द्रोणाचार्यके हाथसे
मारे गये । ] ‘शैब्यश्च
नरपुङ्गवः’‒यह शैब्य युधिष्ठिरका श्वशुर है । यह मनुष्योंमें श्रेष्ठ और बहुत बलवान् है
। परिवारके नाते यह भी हमारा सम्बन्धी है । परन्तु यह पाण्डवोंके ही पक्षमें खड़ा है
। ‘युधामन्युश्च
विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्’‒पांचालदेशके बड़े बलवान् और वीर योद्धा युधामन्यु तथा उत्तमौजा
मेरे वैरी अर्जुनके रथके पहियोंकी रक्षामें नियुक्त किये गये हैं । आप इनकी ओर भी नजर
रखना । [ रातमें सोते हुए इन दोनोंको अश्वत्थामाने मार डाला । ] ‘सौभद्रः’‒यह कृष्णकी बहन सुभद्राका पुत्र अभिमन्यु है । यह बहुत शूरवीर
है । इसने गर्भमें ही चक्रव्यूह-भेदनकी विद्या सीखी है । अतः चक्रव्यूह-रचनाके समय
आप इसका खयाल रखें । [ युद्धमें दुःशासनपुत्रके द्वारा अन्यायपूर्वक सिरपर गदाका
प्रहार करनेसे अभिमन्यु मारे गये । ] ‘द्रौपदेयाश्च’‒युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव‒इन पाँचोंके द्वारा द्रौपदीके गर्भसे क्रमशः प्रतिविन्ध्य,
सुतसोम, श्रुतकर्मा, शतानीक और श्रुतसेन पैदा हुए हैं । इन पाँचोंको आप देख लीजिये
। द्रौपदीने भरी सभामें मेरी हँसी उड़ाकर मेरे हृदयको जलाया है, उसीके इन पाँचों पुत्रोंको युद्धमें मारकर आप
उसका बदला चुकायें । [ रातमें सोते हुए इन पाँचोंको अश्वत्थामाने मार डाला । ] ‘सर्व एव महारथाः’‒ये सब के-सब महारथी हैं । जो शास्त्र और शस्त्रविद्या‒दोनोंमें
प्रवीण हैं और युद्धमें अकेले ही एक साथ दस हजार धनुर्धारी योद्धाओंका संचालन कर सकता
है,
उस वीर पुरुषको ‘महारथी’ कहते हैं२
। ऐसे बहुत-से महारथी पाण्डव-सेनामें खड़े हैं । २ एको दशसहस्राणि योधयेद् यस्तु धन्विनाम् । शस्त्रशास्त्रप्रवीणश्च
महारथ इति स्मृतः ॥
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