।। श्रीहरिः ।।

 


  आजकी शुभ तिथि–
वैशाख कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.-२०८०, मंगलवार

श्रीमद्भगवद्‌गीता

साधक-संजीवनी (हिन्दी टीका)



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सम्बन्ध‒द्रोणाचार्यके मनमें पाण्डवोंके प्रति द्वेष पैदा करने और युद्धके लिये जोश दिलानेके लिये दुर्योधनने पाण्डव-सेनाकी विशेषता बतायी । दुर्योधनके मनमें विचार आया कि द्रोणाचार्य पाण्डवोंके पक्षपाती हैं ही; अतः वे पाण्डव-सेनाकी महत्ता सुनकर मेरेको यह कह सकते है कि जब पाण्डवोंकी सेनामें इतनी विशेषता है, तो उनके साथ तू सन्धि क्यों नहीं कर लेता ? ऐसा विचार आते ही दुर्योधन आगेके तीन श्‍लोकोंमें अपनी सेनाकी विशेषता बताता है ।

      अस्माकं तु विशिष्‍टा ये तान्‍निबोध द्विजोत्तम ।

   नायका  मम सैन्यस्य सञ्‍ज्ञार्थं  तान्ब्रवीमि ते ॥ ७ ॥

द्विजोत्तम = हे द्विजोत्तम !

ते = आपको

अस्माकम् = हमारे पक्षमें

सञ्‍ज्ञार्थम् = याद दिलानेके लिये

तु = भी

मम = मेरी

ये = जो

सैन्यस्य = सेनाके (जो)

विशिष्‍टाः = मुख्य (हैं),

नायकाः = नायक हैं,

तान् = उनपर (भी आप)

तान् = उनको (मैं)

निबोध = ध्यान दीजिये ।

ब्रवीमि = कहता हूँ ।

व्याख्याअस्माकं तु विशिष्‍टा ये तान्‍निबोध द्विजोत्तम’दुर्योधन द्रोणाचार्यसे कहता है कि हे द्विजश्रेष्‍ठ ! जैसे पाण्डवोंकी सेनामें श्रेष्‍ठ महारथी हैं, ऐसे ही हमारी सेनामें भी उनसे कम विशेषतावाले महारथी नहीं हैं, प्रत्युत उनकी सेनाके महारथियोंकी अपेक्षा ज्यादा ही विशेषता रखनेवाले हैं । उनको भी आप समझ लीजिये ।

तीसरे श्‍लोकमें ‘पश्य’ और यहाँ निबोध’ क्रिया देनेका तात्पर्य है कि पाण्डवोंकी सेना तो सामने खड़ी है, इसलिये उसको देखनेके लिये दुर्योधन पश्य’ (देखिये) क्रियाका प्रयोग करता है । परन्तु अपनी सेना सामने नहीं है अर्थात् अपनी सेनाकी तरफ द्रोणाचार्यकी पीठ है, इसलिये उसको देखनेकी बात न कहकर उसपर ध्यान देनेके लिये दुर्योधन निबोध’ (ध्यान दीजिये) क्रियाका प्रयोग करता है ।

नायका मम सैन्यस्य सञ्‍ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते’मेरी सेनामें भी जो विशिष्‍ट-विशिष्‍ट सेनापति हैं, सेनानायक हैं, महारथी हैं, मैं उनके नाम केवल आपको याद दिलानेके लिये, आपकी दृष्‍टि उधर खींचनेके लिये ही कह रहा हूँ ।

सञ्‍ज्ञार्थम्’ पदका तात्पर्य है कि हमारे बहुत-से सेनानायक हैं, उनके नाम मैं कहाँतक कहूँ; इसलिये मैं उनका केवल संकेतमात्र करता हूँ; क्योंकि आप तो सबको जानते ही हैं ।

इस श्‍लोकमें दुर्योधनका ऐसा भाव प्रतीत होता है कि हमारा पक्ष किसी भी तरह कमजोर नहीं है । परन्तु राजनीतिके अनुसार शत्रुपक्ष चाहे कितना ही कमजोर हो और अपना पक्ष चाहे कितना ही सबल हो, ऐसी अवस्थामें भी शत्रुपक्षको कमजोर नहीं समझना चाहिये और अपनेमें उपेक्षा, उदासीनता आदिकी भावना किंचिन्मात्र भी नहीं आने देनी चाहिये । इसलिये सावधानीके लिये मैंने उनकी सेनाकी बात कही और अब अपनी सेनाकी बात कहता हूँ ।

दूसरा भाव यह है कि पाण्डवोंकी सेनाको देखकर दुर्योधनपर बड़ा प्रभाव पड़ा और उसके मनमें कुछ भय भी हुआ । कारण कि संख्यामें कम होते हुए भी पाण्डव-सेनाके पक्षमें बहुत-से धर्मात्मा पुरुष थे और स्वयं भगवान् थे । जिस पक्षमें धर्म और भगवान् रहते हैं, उसका सबपर बड़ा प्रभाव पड़ता है । पापी-से-पापी, दुष्‍ट-से-दुष्‍ट व्यक्तिपर भी उसका प्रभाव पड़ता है । इतना ही नहीं, पशु-पक्षी, वृक्ष-लता आदिपर भी उसका प्रभाव पड़ता है । कारण कि धर्म और भगवान् नित्य हैं । कितनी ही ऊँची-से-ऊँची भौतिक शक्तियाँ क्यों न हों, हैं वे सभी अनित्य ही । इसलिये दुर्योधनपर पाण्डव-सेनाका बड़ा असर पड़ा । परन्तु उसके भीतर भौतिक बलका विश्‍वास मुख्य होनेसे वह द्रोणाचार्यको विश्‍वास दिलानेके लिये कहता है कि हमारे पक्षमें जितनी विशेषता है, उतनी पाण्डवोंकी सेनामें नहीं है । अतः हम उनपर सहज ही विजय कर सकते हैं ।

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       भवान्भीष्मश्‍च कर्णश्‍च कृपश्‍च समितिञ्‍जयः ।

    अश्‍वत्थामा  विकर्णश्‍च  सौमदत्तिस्तथैव  च ॥ ८ ॥

भवान् = आप (द्रोणाचार्य)

= तथा

= और

तथा = वैसे

भीष्मः = पितामह भीष्म

एव = ही

च = तथा

अश्‍वत्थामा = अश्‍वत्थामा,

कर्णः = कर्ण

विकर्णः = विकर्ण

= और

च = और

समितिञ्‍जयः = संग्रामविजयी

सौमदत्तिः = सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा ।

कृपः = कृपाचार्य

 

व्याख्या‘भवान् भीष्मश्‍च’आप और पितामह भीष्म‒दोनों ही बहुत विशेष पुरुष हैं । आप दोनोंके समकक्ष संसारमें तीसरा कोई भी नहीं है । अगर आप दोनोंमेंसे कोई एक भी अपनी पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करे, तो देवता, यक्ष, राक्षस, मनुष्य आदिमें ऐसा कोई भी नहीं है, जो कि आपके सामने टिक सके । आप दोनोंके पराक्रमकी बात जगत्‌में प्रसिद्ध ही है । पितामह भीष्म तो आबाल ब्रह्मचारी हैं, और इच्छामृत्यु हैं अर्थात् उनकी इच्छाके बिना उन्हें कोई मार ही नहीं सकता ।

[ महाभारत-युद्धमें द्रोणाचार्य धृष्‍टद्युम्‍नके द्वारा मारे गये और पितामह भीष्मने अपनी इच्छासे ही सूर्यके उत्तरायण होनेपर अपने प्राणोंका त्याग कर दिया । ]

कर्णश्‍च’कर्ण तो बहुत ही शूरवीर है । मुझे तो ऐसा विश्‍वास है कि वह अकेला ही पाण्डव-सेनापर विजय प्राप्‍त कर सकता है । उसके सामने अर्जुन भी कुछ नहीं कर सकता । ऐसा वह कर्ण भी हमारे पक्षमें है ।

[ कर्ण महाभारत-युद्धमें अर्जुनके द्वारा मारे गये । ]

कृपश्‍च समितिञ्‍जयः’‒कृपाचार्यकी तो बात ही क्या है ! वे तो चिरंजीवी हैं, हमारे परम हितैषी

१.अश्‍वत्थामा, बलि, वेदव्यास, हनुमान्, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय‒ये आठ चिरंजीवी हैं । शास्‍त्रमें लिखा है‒

अश्‍वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्‍च विभीषणः ।

कृपः   परशुरामश्‍च    सप्‍तैते    चिरजीविनः ॥

(पद्यपुराण ४९ । ७)

हैं और सम्पूर्ण पाण्डव-सेनापर विजय प्राप्‍त कर सकते हैं ।

यद्यपि यहाँ द्रोणाचार्य और भीष्मके बाद ही दुर्योधनको कृपाचार्यका नाम लेना चाहिये था; परन्तु दुर्योधनको कर्णपर जितना विश्‍वास था, उतना कृपाचार्यपर नहीं था । इसलिये कर्णका नाम तो भीतरसे बीचमें ही निकल पड़ा । द्रोणाचार्य और भीष्म कहीं कृपाचार्यका अपमान न समझ लें, इसलिये दुर्योधन कृपाचार्यको संग्रामविजयी’ विशेषण देकर उनको प्रसन्‍न करना चाहता है ।

अश्‍वत्थामा’ये भी चिरंजीवी हैं और आपके ही पुत्र हैं । ये बड़े ही शूरवीर हैं । इन्होंने आपसे ही अस्‍त्र-शस्‍त्रकी विद्या सीखी है । अस्‍त्र-शस्‍त्रकी कलामें ये बड़े चतुर हैं ।

विकर्णश्‍च सौमदत्तिस्तथैव च’आप यह न समझें कि केवल पाण्डव ही धर्मात्मा हैं, हमारे पक्षमें भी मेरा भाई विकर्ण बड़ा धर्मात्मा और शूरवीर है । ऐसे ही हमारे प्रपितामह शान्तनुके भाई बाह्लीकके पौत्र तथा सोमदत्तके पुत्र भूरिश्रवा भी बड़े धर्मात्मा हैं । इन्होंने बड़ी-बड़ी दक्षिणावाले अनेक यज्ञ किये हैं । ये बड़े शूरवीर और महारथी हैं ।

[ युद्धमें विकर्ण भीमके द्वारा और भूरिश्रवा सात्यकिके द्वारा मारे गये । ]

यहाँ इन शूरवीरोंके नाम लेनेमें दुर्योधनका यह भाव मालूम देता है कि हे आचार्य ! हमारी सेनामें आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य आदि जैसे महान् पराक्रमी शूरवीर हैं, ऐसे पाण्डवोंकी सेनामें देखनेमें नहीं आते । हमारी सेनामें कृपाचार्य और अश्‍वत्थामा‒ये दो चिरंजीवी हैं, जबकि पाण्डवोंकी सेनामें ऐसा एक भी नहीं है । हमारी सेनामें धर्मात्माओंकी भी कमी नहीं है । इसलिये हमारे लिये डरनेकी कोई बात नहीं है ।

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        अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः ।

 नानाशस्‍त्रप्रहरणाः  सर्वे  युद्धविशारदाः ॥ ९ ॥

अन्ये = इनके अतिरिक्त

च = और

बहवः = बहुत-से

नानाशस्‍त्रप्रहरणाः = जो अनेक प्रकारके अस्‍त्र-शस्‍त्रोंको चलानेवाले हैं (तथा जो)

शूराः = शूरवीर हैं, (जिन्होंने)

सर्वे = सब-के-सब

मदर्थे = मेरे लिये

युद्धविशारदाः = युद्धकलामें अत्यन्त चतुर हैं ।

त्यक्तजीविताः = अपने जीनेकी इच्छाका भी त्याग कर दिया है,

 

व्याख्या‘अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्त-जीविताः’मैंने अभीतक अपनी सेनाके जितने शूरवीरोंके नाम लिये हैं, उनके अतिरिक्त भी हमारी सेनामें बाह्लीक, शल्य, भगदत्त, जयद्रथ आदि बहुत-से शूरवीर महारथी हैं, जो मेरी भलाईके लिये, मेरी ओरसे लड़नेके लिये अपने जीनेकी इच्छाका त्याग करके यहाँ आये हैं । वे मेरी विजयके लिये मर भले ही जायँ, पर युद्धसे हटेंगे नहीं । उनकी मैं आपके सामने क्या कृतज्ञता प्रकट करूँ ?

नानाशस्‍त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः’ये सभी लोग हाथमें रखकर प्रहार करनेवाले तलवार, गदा, त्रिशूल आदि नाना प्रकारके शस्‍त्रोंकी कलामें निपुण हैं; और हाथसे फेंककर प्रहार करनेवाले बाण, तोमर, शक्ति आदि अस्‍त्रोंकी कलामें भी निपुण हैं । युद्ध कैसे करना चाहिये; किस तरहसे, किस पैंतरेसे और किस युक्तिसे युद्ध करना चाहिये; सेनाको किस तरह खड़ी करनी चाहिये आदि युद्धकी कलाओंमें भी ये बड़े निपुण हैं, कुशल हैं ।

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