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(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
शंका‒गुड़का
नाम लेनेसे मुख
मीठा नहीं होता, फिर भगवान्का
नाम लेनेसे क्या
होगा ?
समाधान‒जिस
वस्तुका नाम गुड़
है, उसके नाममें
गुड़ नामवाली
वस्तुका अभाव
है अर्थात् गुड़के
नाममें गुड़ नहीं है; और जबतक गुड़का
रसनेन्द्रिय-(जीभ-) के
साथ सम्बन्ध
नहीं होता, तबतक मुख मीठा
नहीं होता; क्योंकि जीभमें गुड़
मौजूद नहीं है
। ऐसे ही धनीका
नाम लेनेसे धन
नहीं मिलता; क्योंकि धनीके
नाममें धन मौजूद
नहीं है । परन्तु
भगवान्के
नाममें भगवान्
मौजूद हैं । नामी-
(भगवान्-) से नाम
अलग नहीं है और
नामसे नामी अलग
नहीं है
। नामीमें नाम
मौजूद है और नाममें
नामी मौजूद है
। अत: नामीका, भगवान्का
नाम लेनेसे भगवान्
मिल जाते हैं, नामी प्रकट
हो जाता है ।
शंका‒नाम तो केवल शब्दमात्र
है, उससे क्या कार्य
सिद्ध होगा ?
समाधान‒ऐसे तो शब्दमात्रमें
अचिन्त्य शक्ति
है, पर नाममें
भगवान्के साथ
सम्बन्ध जोड़नेकी
ही एक विशेष सामर्थ्य
है । अत: नाम किसी
भी तरहसे लिया
जाय, वह मंगल ही
करता है । नाम जपनेवालेका
भाव विशेष हो तो
बहुत जल्दी लाभ
होता है‒
सादर सुमिरन
जे नर करहीं ।
भव बारिधि
गोपद इव तरहीं
॥
(मानस १।११९।२)
नाम-जपमें
भाव कम भी रहे तो
भी नाम जपनेसे
लाभ तो होगा ही, पर कब होगा−इसका
पता नहीं । नाम-जपकी संख्या ज्यादा
बढ़नेसे भी भाव
बन जाता है, क्योंकि नाम-जप करनेवालेके
भीतर सूक्ष्म
भाव रहता ही है, वह भाव नामकी संख्या
बढ़नेसे प्रकट
हो जाता है ।
नाम-जप क्रिया
(कर्म) नहीं है, प्रत्युत
उपासना है; क्योंकि
नाम-जपमें जापकका
लक्ष्य, सम्बन्ध
भगवान्से रहता
है । जैसे कर्मोंसे
कल्याण नहीं होता
। कर्म अपना फल
देकर नष्ट हो जाते
हैं, परन्तु
कर्मोंके साथ
निष्कामभावकी
मुख्यता रहनेसे
वे कर्म कल्याण
करनेवाले हो जाते
हैं । ऐसे ही नामजपके
साथ भगवान्के
लक्ष्यकी मुख्यता
रहनेसे नामजप
भगवत्साक्षात्कार
करानेवाला हो
जाता है । भगवान्का
लक्ष्य मुख्य
रहनेसे नाम चिन्मय
हो जाता है, फिर उसमें
क्रिया नहीं रहती
। इतना ही नहीं, वह चिन्मयता
जापकमें भी उतर
आती है अर्थात्
नाम जपनेवालेका
शरीर भी चिन्मय
हो जाता है । उसके
शरीरकी जड़ता मिट
जाती है । जैसे, तुकारामजी
महाराज सशरीर
वैकुण्ठ चले गये
। मीराबाईका शरीर
भगवान्के विग्रहमें
समा गया । कबीरजीका
शरीर अदृश्य हो
गया और उसके स्थानपर
लोगोंको पुष्प
मिले । चोखामेलाकी
हड्डियोंसे ‘विट्ठल’
नामकी ध्वनि सुनायी
पड़ती थी ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा
और नाम-जपकी महिमा’
पुस्तकसे
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