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(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
प्रश्न‒शास्त्रों, सन्तोंने
भगवन्नामकी जो
महिमा गायी है, वह कहाँतक
सच्ची है ?
उत्तर‒शास्त्रों
और सन्तोंने नामकी
जो महिमा गायी
है, वह पूरी सच्ची
है । इतना ही नहीं, आजतक जितनी
नाम-महिमा गायी
गयी है, उससे नाम-महिमा
पूरी नहीं हुई
है, प्रत्युत अभी
बहुत नाम-महिमा
बाकी है । कारण
कि भगवान् अनन्त
हैं; अत: उनके नामकी
महिमा भी अनन्त
है‒‘हरि अनंत हरि
कथा अनंता’ (मानस १।१४०।३) । नामकी पूरी
महिमा स्वयं भगवान्
भी नहीं कह सकते‒‘रामु न सकहिं
नाम गुन गाई’ (१।२६।४) ।
प्रश्न‒नामकी जो महिमा
गायी गयी है, वह नामजप
करनेवाले व्यक्तियोंमें
देखनेमें नहीं
आती, इसमें क्या कारण
है ?
उत्तर‒नामके माहात्म्यको
स्वीकार न करनेसे
नामका तिरस्कार, अपमान होता है; अत: वह नाम उतना
असर नहीं करता
। नाम-जपमें मन
न लगानेसे, इष्टके ध्यानसहित
नाम-जप न करनेसे, हृदयसे नामको
महत्त्व न देनेसे, आदि-आदि दोषोंके
कारण नामका माहात्म्य
शीघ्र देखनेमें
नहीं आता । हाँ,
किसी प्रकारसे
नाम-जप मुखसे चलता
रहे तो उससे भी
लाभ होता ही है, पर इसमें समय लगता
है । मन लगे
चाहे न लगे, पर नामजप
निरन्तर चलता
रहे कभी छूटे नहीं
तो नाम-महाराजकी
कृपासे सब काम
हो जायगा, अर्थात्
मन लगने लग जायगा, नामपर श्रद्धा-विश्वास
भी हो जायँगे, आदि- आदि
।
अगर भगवन्नाममें
अनन्यभाव हो और
नाम-जप निरन्तर
चलता रहे तो उससे
वास्तविक लाभ
हो ही जाता है; क्योंकि भगवान्का नाम
सांसारिक नामोंकी
तरह नहीं है । भगवान्
चिन्मय हैं; अत: उनका
नाम भी चिन्मय (चेतन) है
। राजस्थानमें
बुधारामजी नामक
एक सन्त हुए हैं
। वे जब नाम-जपमें
लगे, तब
उनको नाम-जपके
बिना थोड़ा भी समय
खाली जाना सुहाता
नहीं था । जब भोजन
तैयार हो जाता, तब माँ उनको भोजनके
लिये बुलाती और
वे भोजन करके पुन:
नाम-जपमें लग जाते
। एक दिन उन्होंने
माँसे कहा कि माँ
! रोटी खानेमें
बहुत समय लगता
है; अत: केवल दलिया
बनाकर थालीमें
परोस दिया कर और
जब वह थोड़ा ठण्डा
हो जाया करे, तब मेरेको बुलाया
कर । माँने वैसा
ही किया । एक दिन
फिर उन्होंने
कहा कि माँ ! दलिया
खानेमें भी समय
लगता है; अत: केवल राबड़ी
बना दिया कर और
जब वह ठण्डी हो
जाया करे, तब बुलाया कर ।
इस तरह लगनसे नाम-जप
किया जाय तो उससे
वास्तविक लाभ
होता ही है ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा
और नाम-जपकी महिमा’
पुस्तकसे
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