।। श्रीहरिः ।।



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आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक कृष्ण दशमी, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
एकादशी-व्रत कल है
नाम-जपकी महिमा
 
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒शास्त्रों, सन्तोंने भगवन्नामकी जो महिमा गायी है, वह कहाँतक सच्ची है ?
 
उत्तर‒शास्त्रों और सन्तोंने नामकी जो महिमा गायी है, वह पूरी सच्ची है । इतना ही नहीं, आजतक जितनी नाम-महिमा गायी गयी है, उससे नाम-महिमा पूरी नहीं हुई है, प्रत्युत अभी बहुत नाम-महिमा बाकी है । कारण कि भगवान् अनन्त हैं; अत: उनके नामकी महिमा भी अनन्त है‒‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ (मानस १।१४०।३) । नामकी पूरी महिमा स्वयं भगवान् भी नहीं कह सकते‒‘रामु न सकहिं नाम गुन गाई’ (१।२६।४)
 
प्रश्न‒नामकी जो महिमा गायी गयी है, वह नामजप करनेवाले व्यक्तियोंमें देखनेमें नहीं आती, इसमें क्या कारण है ?
 
उत्तर‒नामके माहात्म्यको स्वीकार न करनेसे नामका तिरस्कार, अपमान होता है; अत: वह नाम उतना असर नहीं करता । नाम-जपमें मन न लगानेसे, इष्टके ध्यानसहित नाम-जप न करनेसे, हृदयसे नामको महत्त्व न देनेसे, आदि-आदि दोषोंके कारण नामका माहात्म्य शीघ्र देखनेमें नहीं आता । हाँ, किसी प्रकारसे नाम-जप मुखसे चलता रहे तो उससे भी लाभ होता ही है, पर इसमें समय लगता है । मन लगे चाहे न लगे, पर नामजप निरन्तर चलता रहे कभी छूटे नहीं तो नाम-महाराजकी कृपासे सब काम हो जायगा, अर्थात् मन लगने लग जायगा, नामपर श्रद्धा-विश्वास भी हो जायँगे, आदि- आदि ।
 
अगर भगवन्नाममें अनन्यभाव हो और नाम-जप निरन्तर चलता रहे तो उससे वास्तविक लाभ हो ही जाता है; क्योंकि भगवान्‌का नाम सांसारिक नामोंकी तरह नहीं है । भगवान् चिन्मय हैं; अत: उनका नाम भी चिन्मय (चेतन) है । राजस्थानमें बुधारामजी नामक एक सन्त हुए हैं । वे जब नाम-जपमें लगे, तब उनको नाम-जपके बिना थोड़ा भी समय खाली जाना सुहाता नहीं था । जब भोजन तैयार हो जाता, तब माँ उनको भोजनके लिये बुलाती और वे भोजन करके पुन: नाम-जपमें लग जाते । एक दिन उन्होंने माँसे कहा कि माँ ! रोटी खानेमें बहुत समय लगता है; अत: केवल दलिया बनाकर थालीमें परोस दिया कर और जब वह थोड़ा ठण्डा हो जाया करे, तब मेरेको बुलाया कर । माँने वैसा ही किया । एक दिन फिर उन्होंने कहा कि माँ ! दलिया खानेमें भी समय लगता है; अत: केवल राबड़ी बना दिया कर और जब वह ठण्डी हो जाया करे, तब बुलाया कर । इस तरह लगनसे नाम-जप किया जाय तो उससे वास्तविक लाभ होता ही है ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तकसे