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(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
शंका‒अगर श्रद्धा-विश्वासपूर्वक
किये हुए नाम-जपसे
ही लाभ होता है
तो फिर नामकी महिमा
क्या हुई ? महिमा
तो श्रद्धा-विश्वासकी
ही हुई ?
समाधान‒जैसे, राजाको राजा न
माननेसे राजासे
होनेवाला लाभ
नहीं होता; पण्डितको पण्डित
न माननेसे पण्डितसे
होनेवाला लाभ
नहीं होता; सन्त-महात्माओंको
सन्त-महात्मा
न माननेसे उनसे
होनेवाला लाभ
नहीं होता; भगवान् अवतार
लेते हैं तो उनको
भगवान् न माननेसे
उनसे होनेवाला
लाभ नहीं होता, परंतु राजा आदिसे
लाभ न होनेसे राजा
आदिमें कमी थोड़े
ही आ गयी ? कमी तो न माननेवालेकी
ही हुई । ऐसे ही
जो नाममें
श्रद्धा-विश्वास
नहीं करता, उसको नामसे
होनेवाला लाभ
नहीं होता, पर इससे नामकी
महिमामें कोई
कमी नहीं आती ।
कमी तो
नाममें श्रद्धा-विश्वास
न करनेवालेकी
ही है ।
नाममें अनन्त
शक्ति है । वह शक्ति
नाममें श्रद्धा-विश्वास
करनेसे तो बढ़ेगी
और श्रद्धा-विश्वास
न करनेसे घटेगी‒यह
बात है ही नहीं
। हाँ, जो नाममें श्रद्धा-विश्वास
करेगा, वह तो नामसे लाभ
ले लेगा, पर जो श्रद्धा-विश्वास
नहीं करेगा, वह नामसे लाभ नहीं
ले सकेगा । दूसरी
बात, जो
नाममें श्रद्धा-विश्वास
नहीं करता, उसके द्वारा नामका
अपराध होता है
। उस अपराधके कारण
वह नामसे होनेवाले
लाभको नहीं ले
सकता ।
प्रश्न‒श्रद्धा-विश्वासके
बिना भी अग्निको
छूनेसे हाथ जल
जाता है, फिर श्रद्धा-विश्वासके
बिना नाम लेनेसे
उसकी महिमा तत्काल
प्रकट क्यों नहीं
होती ?
उत्तर‒अग्नि भौतिक
वस्तु है और वह
भौतिक वस्तुओंको
ही जलाती है; परन्तु भगवान्का
नाम अलौकिक दिव्य
है । नाम-जप
करनेवालेका नाममें
ज्यों-ज्यों भाव
बढ़ता है, त्यों-त्यों
उसके सामने नामकी
महिमा प्रकट होने
लगती है, उसको नाम-महिमाकी
अनुभूति होने
लगती है, नाममें विचित्रता, अलौकिकता
दीखने लगती है
। नाममें
एक विचित्रता
है कि मनुष्य बिना
भाव, श्रद्धाके
भी हरदम नाम लेता
रहे तो उसके सामने
नामकी शक्ति प्रकट
हो जायगी, पर उसमें समय लग
सकता है ।
प्रश्न‒क्या एक बार नाम
लेनेसे ही सब पाप
नष्ट हो जाते हैं ?
उत्तर‒हाँ, आर्तभावसे
लिये हुए एक नामसे
ही सब पाप नष्ट
हो जाते हैं । मनुष्यको
अन्तसमयमें मृत्युसे
छुड़ानेवाला कोई
भी नहीं दीखता, वह सब तरफसे
निराश हो जाता
है, उस समय आर्तभावसे
उसके मुखसे एक
नाम भी निकलता
है तो वह एक ही नाम
उसके सम्पूर्ण
पापोंको नष्ट
कर देता है । जैसे गजेन्द्रको
ग्राह खींचकर
जलमें ले जा रहा
था । गजेन्द्रने
देखा कि अब मुझे
कोई छुड़ानेवाला
नहीं है, अब तो मौत आ गयी
है तो उसने आर्तभावसे
एक ही बार नाम लिया
। नाम लेते ही भगवान्
आ गये और उन्होंने
ग्राहको मारकर
गजेन्द्रको छुड़ा
लिया ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा
और नाम-जपकी महिमा’
पुस्तकसे
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