(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
प्रश्न‒अपने स्वरूप ‘है’ में स्थिति
होनेके बाद भी
पुराने संस्कार
आते हैं क्या ?
उत्तर‒पुराने संस्कार
‘है’ में नहीं आते, मन-बुद्धिमें
आते हैं । संस्कार
तो मन-बुद्धिमें
पड़े हुए हैं, पर उनको अपनेमें
मान लेते हो । अनादिकालसे
ही मन-बुद्धिमें
आनेवाले संस्कारोंको
अपनेमें मानते
चले आये हैं । पर
ये अपनेमें आते
ही नहीं । कारण
कि ये आने-जानेवाले
हैं और स्वयं रहनेवाला
है । आने-जानेवालेका
प्रवेश मन-बुद्धिमें
तो हो सकता है, पर ‘है’ में कभी प्रवेश
नहीं हो सकता ।
‘है’ में ‘नहीं’
का प्रवेश कैसे
हो सकता है ? केवल आप नहींको
भूलसे अपनेमें
मानकर उससे सम्बन्ध
जोड़ लेते हैं ।
स्वरूपमें
आकर्षण-विकर्षण
भी बिलकुल नहीं
है । ये तो मन-बुद्धिमें
हैं । थोड़ा-सा ध्यान
दें कि आकर्षण
और विकर्षण‒ये
दोनों किसी ज्ञानके
अन्तर्गत दीखते
हैं । तो उस ज्ञानमें
ये दोनों कहाँ
हैं ? जैसे प्रकाशमें
हाथ दीखता है, तो हाथके
अन्तर्गत प्रकाश
नहीं है, बल्कि प्रकाशके
अन्तर्गत हाथ
है । ऐसे ही मन-बुद्धिमें
होनेवाले आकर्षण-विकर्षण
ज्ञानके अन्तर्गत
हैं । ज्ञान कहो या
‘है’ कहो । उसमें आपकी
स्वतःस्वाभाविक
स्थिति है ।
प्रश्न‒जबतक यह शरीर है, तबतक
अन्तःकरणमें
ये विकार होते
रहेंगे ?
उत्तर‒नहीं, बिलकुल नहीं ।
अन्तःकरणके विकार
शरीरके रहनेसे
सम्बन्ध नहीं
रखते । अन्तःकरणमें
विकार रहते हैं‒असत्को
सत् माननेसे, ‘हैं’ को ‘नहीं’ माननेसे
। असत्को
सत् माना कि विकार
आये । असत्को
सत् न माननेसे
शरीरके रहते हुए
भी विकार नहीं
आयेंगे । शरीरका
वृद्ध होना, कमजोर होना
आदि विकार तो अवस्थाके
अनुसार स्वत: स्वाभाविक
होंगे । पर आकर्षण-विकर्षण
आदि जो विकार हैं, ये नहीं होंगे
। ये
तो असत्में सत्-बुद्धि
होनेसे ही होते
हैं । खूब विचार
करो । असत् असत्
ही है और सत् सत्
ही है । आप ‘है’ में स्वत: स्थित
हो । स्थित न होनेपर
ही स्थित होना
पड़ता है । जिसमें
पहलेसे ही स्थित
हो, उसमें स्थित
क्या होना ? आप ‘है’ में स्थित
हो, तभी आने-जानेवाले
दीखते हैं ।
किस पुरुषने
किस परिस्थितिमें
कौन-सी चेष्टा
की, यह सिवाय उसके
दूसरा कोई नहीं
जान सकता । इसलिये
किसीपर आक्षेप
न करके सत्यका
निर्णय करना चाहिये
। दूसरेको सामने
रखकर सत्यका निर्णय
कभी नहीं हो सकता
। अपनेको सामने
रखो । यदि दूसरेका
आदर्श लेना पड़े
तो शुभ कार्योंमें
ही लो, अशुभ कार्योंमें
नहीं ।
नारायण !
नारायण !!
नारायण !!!
‒
‘तात्त्विक
प्रवचन’
पुस्तकसे
|