(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
प्रश्न‒शास्त्रमें आता
है कि जो नाम नहीं
लेना चाहता, जिसकी
नामपर श्रद्धा
नहीं है, उसको
नाम नहीं सुनाना
चाहिये; क्योंकि
यह नामापराध है; फिर भी
गौरांग
महाप्रभु आदिने
नामपर श्रद्धा
न रखनेवालोंको
भी नाम क्यों सुनाया ?
उत्तर‒जो नाम नहीं
सुनना चाहता, मुखसे भी नहीं
लेना चाहता, नामका तिरस्कार
करता है, उसको नाम नहीं
सुनाना चाहिये‒यह
विधि है, शास्त्रकी आज्ञा
है; फिर भी सन्त-महापुरुष
दया करके उसको
नाम सुना देते
हैं । उनकी दयामें
विधि-निषेध लागू
नहीं होता । विधि-निषेध, ‘कर्म’ में लागू
होता है और ‘दया’
कर्मसे अतीत है
। दया अहैतुकी
होती है, हेतुके बिना
की जाती है । जैसे, कोई भगवत्प्राप्त
सन्त-महापुरुष
अपनी सामर्थ्यसे
दूसरेको कोई चीज
देता है तो यह चीज
लेनेवालेके पूर्वकर्मका
फल नहीं है यह तो
उस सन्त-महापुरुषकी
दया है । ऐसे ही
गौरांग महाप्रभु
आदि सन्तोंने
दयापरवश होकर
दुष्ट, पापी व्यक्तियोंको
भी भगवन्नाम सुनाया
।
प्रश्न‒अगर मरणासन्न
पशु, पक्षी आदिको भगवन्नाम
सुनाया जाय तो
क्या उनका उद्धार
हो सकता है ?
उत्तर‒पशु, पक्षी आदि
भगवन्नामके प्रभावको
नहीं समझते और
अपने-आप प्रभाव
आ जाय तो वे उसका
विरोध भी नहीं
करते । वे नामकी
निन्दा, तिरस्कार
नहीं करते, नामसे धृणा
नहीं करते । अत:
उनको मरणासन्न
अवस्थामें नाम
सुनाया जाय तो
उनपर नामका प्रभाव
काम करता है अर्थात्
नामके
प्रभावसे उनका
उद्धार हो जाता
है ।
प्रश्न‒अन्तसमयमें कोई
अपने पुत्र आदिके
रूपमें भी ‘नारायण’, ‘वासुदेव’ आदि नाम लेता
है तो उसको भगवान्
अपना ही नाम मान
लेते हैं; ऐसा क्यों ?
उत्तर‒भगवान्
बहुत दयालु हैं
। उन्होंने यह
विशेष छूट दी है
कि अगर मनुष्य
अन्तसमयमें किसी
भी बहाने भगवान्का
नाम ले ले, उनको
याद कर ले तो उसका
कल्याण हो जायगा
। कारण
कि भगवान्ने
जीवका कल्याण
करनेके लिये ही
उसको मनुष्य-शरीर
दिया है और जीवने
उस मनुष्य-शरीरको
स्वीकार किया
है । अत: जीवका कल्याण
हो जाय, तभी भगवान्का
इस जीवको मनुष्य-
शरीर देना और जीवका
मनुष्य-शरीर लेना
सार्थक होगा ।
परन्तु वह अपना
कल्याण किये बिना
ही मनुष्य-शरीरको
छोड़कर जा रहा है, इसलिये भगवान्
उसको मौका देते
हैं कि अब जाते-जाते
तू किसी भी बहाने
मेरा नाम ले ले, मेरेको याद कर
ले तो तेरा कल्याण
हो जायगा ! जैसे
अन्तसमयमें भयानक
यमदूत दीखनेपर
अजामिलने अपने
पुत्र नारायणको
पुकारा तो भगवान्ने
उसको अपना ही नाम
मान लिया और अपने
चार पार्षदोंको
अजामिलके पास
भेज दिया ।
तात्पर्य
है कि मनुष्यको
रात-दिन, खाते-पीते, सोते-जागते, चलते-फिरते, सब समय भगवान्का
नाम लेते ही रहना
चाहिये ।
नारायण !
नारायण !!
नारायण !!!
‒‘मूर्ति-पूजा
और नाम-जपकी महिमा’
पुस्तकसे
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