भगवान्से प्रार्थना करना और उनके शरण होना‒ये दो बातें तत्काल सिद्धि देनेवाली हैं । कोई आफत आ जाय,दुःख आ जाय, सन्ताप हो जाय, उलझन हो जाय तो आर्तभावसे ‘हे नाथ ! हे प्रभो !’ कहकर भगवान्को पुकारे,उनसे प्रार्थना करे तो तत्काल लाभ होता है । जैसे गजेन्द्र, द्रौपदी, उत्तरा आदिने विपत्तिके समय भगवान्को याद किया, उनको पुकारा तो उनकी तत्काल रक्षा हो गयी । कारण यह है कि जब अपना बल कोई काम नहीं देता, अपनी बुद्धि कुण्ठित हो जाती है, उस समय भगवान्की शरण लेनेसे भगवान्की कृपा काम करती है । जब गजेन्द्र ग्राहसे अपनेको न छुड़ा सकनेके कारण अपने बलसे और अपने साथियोंसे निराश हो गया, तब वह भगवान्की शरणमें गया और भगवान्ने उसको ग्राहसे मुक्ति दिलायी । चीर-हरणके समय जब द्रौपदी सब तरफसे निराश हो गयी, किसीने भी उसकी प्रार्थना नहीं सुनी, तब उसने भगवान्को पुकारा और भगवान्ने उसकी रक्षा की । जब अश्वत्थामाके द्वारा छोड़ा गया अस्त्र उत्तराके गर्भको नष्ट करनेके लिये आने लगा, तब उत्तराने सर्वथा भगवान्के शरण होकर उनको पुकारा और भगवान्ने उसके गर्भकी रक्षा की । जब अर्जुन कर्तव्य-अकर्तव्यका निर्णय न कर सकनेके कारण अपनी बुद्धिसे निराश हो गये, तब वे भगवान्की शरणमें गये और भगवान्ने संसारका उद्धार करनेवाले गीतोपदेशके द्वारा उनके मोहका नाश कर दिया । भगवान्की कृपासे जो काम होता है, वह अपने बल-बुद्धिसे कभी नहीं होता । परन्तु जबतक अपना बल पूरा न लगा दें, तबतक भीतरसे असली प्रार्थना नहीं होती । कारण कि अपना बल पूरा लगानेसे जब अपनेमें निर्बलताका अनुभव होने लगता है, तब अपने बलका भरोसा छूट जाता है और अपने बलका भरोसा छूटनेसे ही असली प्रार्थना होती है ।
बुद्धिर्विकुण्ठिता नाथ समाप्ता मम युक्तय: ।
अपनी बुद्धि कुण्ठित हो जाय, अपुनी युक्तियाँ अपना उद्योग सब फेल हो जाय, ऐसे समयमें असली प्रार्थना होती है, नहीं तो अपने बल आदिके अभिमानका अंश रहनेसे नकली प्रार्थना होती है । नकली प्रार्थनासे काम नहीं होता । जो लोग कहते हैं कि हमने प्रार्थना की, पर कुछ नहीं हुआ तो वास्तवमें उनसे असली प्रार्थना हुई ही नहीं ! प्रार्थना की नहीं जाती, प्रत्युत भीतरसे निकलती है अर्थात् स्वतः होती है । अगर भीतरसे असली प्रार्थना हो तो तत्काल काम होता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवान् और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे
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