(गत ब्लॉगसे आगेका)
ये माताएँ चाहें तो संसारका कल्याण कर सकती हैं,
क्योंकि हम जितने भाई-बहिन हैं, ये सबसे पहले माँकी गोदमें
आते हैं । माँकी गोदमें खेलते हैं । माँका दूध
पीते हैं । माँके स्वभावका असर पड़ता है । महिलाएँ जैसी प्रकृति-(स्वाभाव-)
की होंगी, वैसे ही बालक-बालिकाएँ होंगे, बच्चे वैसे ही नागरिक बनेंगे बड़े होकर,
वैसा ही वह देश बनेगा । माँ छोटी अवस्थामें जो शिक्षा
देती है, वह बहुत काम करती है; क्योंकि बचपनमें पड़े हुए संस्कार बहुत काम करते हैं
। अतः माताएँ चाहें तो देशका बड़ा सुधार कर सकती हैं । मातओंमें
मातृत्व-शक्ति होती है, ये उसका उपयोग करें । भगवान्ने इन्हें शक्ति दी है । ये
छोटी-छोटी बालिकाएँ हैं, ये भी अपने भाई-बहिनका जैसा पालन करती हैं, बड़े लड़के अपने
भाई-बहिनका वैसा पालन नहीं करते । आप छोटे भाई-बहिनको बड़े भाईकी गोदमें देकर देख
लो, बहिनें बड़े प्यारसे पालन करती हैं । बहिनें अपनी चीजें भी छोटे भाई-बहिनोंको
खिला देंगी । भाई अपनी आप खा जायगा और उनकी भी खा जायगा । बालिकाओंके हृदयमें यह भाव नहीं आता
कि यह चीज तो मेरी है, मैं क्यों दूँ ? तो यह भाव क्यों नहीं आता ? उसको
पालन-पोषण करनेकी शक्ति भगवान्ने दी है, यह शक्ति माँ बननेके लिए दी है । यह जो
शक्ति इन्हें दी है, यदि ये
इस शक्तिका सदुपयोग करें तो बहुत सुगमतासे
निर्मम हो सकती हैं ।
इसका कारण
यह है कि सबका पालन-पोषण करना, सबकी रक्षा करना और सबको
सुख देना–इनसे ममता दूर हो जाती है । सेवा
करनेसे अभिमान दूर होता है । यह बड़े ऊँचे दर्जेकी बात कही गयी है ।
अगर यह व्यवहारमें आ जाय तो काम बन जाय । काम-धन्धा ठीक करें, चीजोंको उदारतासे
बरतें, औरोंको देवें । दो-का विशेष आदर होता है; एक
तो जो उपकार करते हैं और दूसरे, जो बड़े-बूढ़े पूजनीय होते हैं । बड़े-बूढ़े हैं, उनका
आदर करें, आज्ञा मानें । जो दीन हैं, रोगी हैं, अभावग्रस्त हैं, उनकी सेवा करें । दीन-दुखियोंमें भगवान् रहते हैं । यदि उनकी सेवा की जाय तो
आपकी सेवा स्वीकार करनेके लिए भगवान् तैयार हैं । दीन-दुखियोंसे घृणा मत करो,
द्वेष मत करो, इर्षा मत करो; अपनेमें अभिमान मत लाओ कि हम बड़े हैं । वास्तवमें
आपमें जो बड़प्पन है, यह बड़प्पन उन छोटे आदमियोंका दिया हुआ है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी
प्रवचन’ पुस्तकसे |