(गत ब्लॉगसे आगेका)
मनुष्यको चाहिये कि जहाँ-कहीं रहे अपनी आवश्यकता पैदा कर दे । भाई हो या बहिन हो, साधु हो या गृहस्थ हो, कोई क्यों न हो ।
अपनी आवश्यकताको जरूर पैदा कर दे, तो वह संसारमें बड़े सुखसे रहेगा । आवश्यकता कैसे
पैदा करें ? एक तो हर समय अच्छे-से-अच्छे काममें लगे रहो
। यह समय बड़ा कीमती है । इस समयके सामान कोई चीज कीमती नहीं है । आप समय
देकर विद्वान बन सकते हैं, परिवारवाले हो सकते हैं । ध्यान
दें, समय लगानेसे सब चीजें मिल सकती हैं, परन्तु सब चीजें देनेपर भी समय नहीं मिलता
। कोई कहे कि उम्रभरमें जो भी प्राप्त किया एक मिनट समयके लिए सब कुछ देता
हूँ, पर उसके बदलेमें एक मिनटका समय भी नहीं मिल सकता । समय देनेसे सब कुछ मिल
सकता है; परन्तु सब देनेपर भी समय नहीं मिलता है । समयको कितना कीमती कहें ?
भागवतमें आया है–
तुलयाम लवेनापि न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
भगवत्संगिसंगस्य मर्त्यानां किमुताशिषः ॥
(१/१८/१३)
भगवान्के प्रेमी पुरुषोंका लवमात्रका
संग अच्छा है, उससे न तो मुक्तिकी तुलना कर सकते
हैं और न ही स्वर्गकी । गोस्वामीजीने कहा है–
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग ।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग ॥
(मानस ५/४)
संतके
लवमात्रका संग मिलनेके समान स्वर्ग और मुक्तिकी भी तुलना नहीं हो सकती । समय इतना
कीमती है । समय मिले तो इसे बेकार मत जाने दो । इस समयको
उत्तम-से-उत्तम, ऊँचे-से-ऊँचे काममें लगाओ । धनकी लोग बड़े आदरके साथ रक्षा करते हैं, तिजोरीमें बन्द कर
देते हैं । धन तो तिजोरीमें बन्द हो सकता है, पर समय तिजोरीमें बन्द नहीं
हो सकता । समय तो हरदम सावधान होनेसे ही सार्थक होगा । नहीं तो निरर्थक बीत जायगा ।
जिन लोगोंनें समयका
आदर किया है, वे बड़े श्रेष्ठ पुरुष बन गये । वे अच्छे महात्मा बन गये ।
उन लोगोंने क्या किया है ? जीवनका समय भगवत्-चरणोंमें लगाया है । संसारके भोगोंसे
विमुख होकर परमात्म-तत्त्व जाननेके लिये समय लगाया है । वे संत और महात्मा बन गये ।
समयके बराबर कोई कीमती चीज नहीं है संसारमें । लवमात्रका
सत्संग हो जाय, साधु-महात्माका संग हो जाय । भगवान्का संग हो जाय, प्रेम हो जाय, भगवान्में आकर्षित हो जाय; वह समय सबसे ऊँचा है ।
अतः इस
समयको उत्तम-से-उत्तम काममें खर्च करो । स्वाध्याय करो, जप करो, कीर्तन करो, सेवा करो । अच्छी पुस्तकोंका पठन-पाठन
करो । विषय-भोगोंमें,
ताश, हँसी-दिल्लगी, नाच-सिनेमा, बीडी-सिगरेट आदिमें समय बरबाद मत करो ।
बीडी-सिगरेट पीते हैं, चिलम पीते हैं । आप जरा विचार करो, आपके पास जो समय है,
उसमें भी आग लगाते हो, धुआँ करते हो । धुआँ हो गया धुआँ ! आपका जो समय है उसमें भी
आग लगती है । पाँच-सात मिनट आपने बीड़ी-सिगरेट पी तो उस
समयमें भी धुआँ लग गया । पैसे गये, समय गया, स्वतन्त्रता गयी–राम ! राम ! राम !
अरे ! फायदा क्या हुआ ? किसी तरहका फायदा नहीं । जो नहीं पीते हैं, उन्हें आपने
गन्दगी दे दी । उनकी नाकमें भी धुआँ चढ़ गया ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे |