(गत ब्लॉगसे आगेका)
माँने जितना कष्ट सहा है, बालक
उतनी माँकी सेवा नहीं कर सकता । सब कुछ माँने दिया । कोई कहे कि मैं मेरे चमड़ेकी
जूती बनाकर माँको पहना दूँ । कोई उनसे पूछे, यह चमड़ा भी बाजारसे लाये हो क्या ? यह
तो माँका ही है । इसपर तू अधिकार क्या करता है ? माँसे मिला है । आज हम बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं । लोगोंमें विद्वान, सज्जन
कहलाते हैं, यह शरीर मिला किससे है ? माँसे मिला है । माँसे पालन हुआ है ।
आप
कितने भी विद्वान हो जायँ । बचपनमें बैठना नहीं आता था, माँने बिठाकर मुखमें ग्रास
दिया । भोजन करना सिखाया । यह दशा थी बहिनोंकी और भाइयोंकी भी । उस अवस्थामें
माँने पालन किया और बड़े-बड़े कष्ट सहे । खेलमें इधर-उधर जाते, तोड़-फोड करते,
वृक्षोंमें उलझते, बिच्छुको भी पकड़ने दौड़ते, आगमें हाथ डालना चाहते । माँने रक्षा
की । टट्टी-पेशाब करते उसमें ही लकीरें खीचने लगते । अब ऐसा देखकर मन खराब होता है
। उस समय होश नहीं था कुछ भी, यह सब माँने ज्ञान कराया । बड़ी विलक्षणतासे पालन
किया ।
कभ-कभी
भाई लोग अभिमानमें आकार कह देते हैं कि क्या बड़ी बात है ! उनसे मैं कहता हूँ कि
बच्चेको दो दिन गोदमें रखकर देखो । माँमें मातृत्व शक्ति
है तब हमारा पालन हुआ । इसलिए जितनी अपनी सामर्थ्य हो माँ-बापकी सेवा करो । जो
माँ-बापका आदर नहीं करते, उनका भगवान् भी आदर नहीं करते । कोई उनका विश्वास नहीं
करते, क्योंकि जो माँ-बापका नहीं है, वह किसका होगा ? माँ-बापकी सेवा करनेसे भगवान्
राजी होते हैं । आज्ञापालन करनेसे सिद्धि प्राप्त होती है । अर्थात् परमात्माकी
प्राप्ति होती है । इस कारण भाई-बहिनोंको आज्ञापालन करना चाहिये ।
आज्ञापालनसे क्या होगा ? उनकी सेवा होगी और हम निरहंकार हो जायेंगे । चीज-वस्तुओंसे उनकी सेवा करनेसे निर्मम हो जायेंगे । जितनी-जितनी
चीजोंको सेवामें लगा देंगे, उतना अपना अहंकार नष्ट हो जायगा । आराम-बुद्धि और
अपनेमें बड़प्पनका अहंकार पतन करनेवाले हैं । संसारकी सेवा करते-करते अभिमानको
सुगमतासे दूर कर सकते हो । ऐसे ही समान उम्रवालोंकी सेवा करो । छोटी
अवस्थावाले हैं, उनकी भी सेवा करो । छोटोंका पालन-पोषण
करना भी सेवा है । सदाचारकी शिक्षा देना भी सेवा है । वे उम्रभर सुख पाएंगे, इसलिए
बालकोंको अच्छी शिक्षा दो । बेटा-बेटीको अच्छी शिक्षा दो, जिससे वे अच्छे बन जायँ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे |