।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.२०७१, मंगलवार
अमावस्याश्राद्ध, पितृविसर्जन
मानसमें नाम-वन्दना




 (गत ब्लॉगसे आगेका)

इन तीनोंका हेतु रामनाम ही है । इस प्रकार सब अक्षरोंमें रामनाम प्राण है । कृसानु, भानु और हिमकर‒इन तीनोंमेंसे रामनाम निकाल देनेपर वे कुछ कामके नहीं रहते हैं, उनमें कुछ भी तथ्य नहीं रहता । यहाँ नामके तीनों अवयवोंको बतानेका तात्पर्य यह है कि रामनाम जपनेसे साधकके पापोंका नाश होता है, अज्ञानका नाश होता है और अन्धकार दूर होकर प्रकाश हो जाता है । अशान्ति, सन्ताप, जलन आदि मिटकर शान्तिकी प्राप्ति हो जाती है । ऐसा जो रघुनाथजी महाराजकारामनाम है, उसकी मैं वन्दना करता हूँ । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒

बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो ।
अगुन अनूपम गुन निधान  सो ॥
                                                    (मानस, बालकाण्ड दोहा १९ । २)

यहरामनाम ब्रह्मा, विष्णु और महेशमय है । विधि, हरि, हर‒सृष्टिमात्रकी उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली, ये तीन शक्तियों हैं । इनमें ब्रह्माजी सृष्टिकी रचना करते हैं, विष्णुभगवान् पालन करते हैं और शंकरभगवान् संहार करते हैं ।

संसारमेंरामनामसे बढ़कर कुछ नहीं है । सब कुछ  शक्ति इसमें भरी हुई है । इसलिये सन्तोंने कहा है‒
रामदास सुमिरण करो रिध सिध याके माँय ।

ऋद्धि-सिद्धि सब इसके भीतर भरी हुई है । विश्वास न हो तो रात-दिन जप करके देखो । सब काम हो जायगा, कोई काम बाकी नहीं रहेगा ।

यहरामनाम वेदोंके प्राणके समान है, शास्त्रोंका और वर्णमालाका भी प्राण है । प्रणवको वेदोंका प्राण माना गया है । प्रणव तीन मात्रावाला ॐ’ कार पहले-ही-पहले प्रकट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय बना । ऋक्, साम, यजुः‒ये तीनों मुख्य वेद हैं । इन तीनोंका प्राकट्य गायत्रीसे, गायत्रीका प्राकट्य तीन मात्रावाले ‘ॐ’ कारसे और यह ॐ’ कार‒प्रणव सबसे पहले हुआ । इस प्रकार यह ॐ’ कार (प्रणव) वेदोंका प्राण है ।

यहाँपररामनामको वेदोंका प्राण कहनेमें तात्पर्य है किरामनामसे प्रणव’ होता है । प्रणवमेंसे निकाल तो पणव’ हो जायगा और पणव’ का अर्थ ढोल हो जायगा । ऐसे ही ॐ’ मेंसे निकालकर उच्चारण करो वह शोकका वाचक हो जायगा । प्रणवमें और ‘ॐ’ में कहना आवश्यक है । इसलिये यह रामनाम वेदोंका प्राण भी है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे