।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन अमावस्या, वि.सं.२०७१, बुधवार
अमावस्या, मातामहश्राद्ध
मानसमें नाम-वन्दना



 (गत ब्लॉगसे आगेका)

अगुन अनूपम गुन निधान सो’‒यह रामनाम निर्गुण अर्थात् गुण रहित है । सत्त्व, रज और तमसे अतीत है, उपमारहित है और गुणोंका भण्डार है, दया, क्षमा, सन्तोष आदि सद्‌गुणोंका खजाना है, नाम लेनेसे ये सभी आप-से-आप आ जाते हैं । यहरामनाम सगुण और निर्गुण दोनोंका वाचक है । आगेके प्रकरणमें आयेगा‒

अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी ।
उभय  प्रबोधक  चतुर  दुभाषी ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा २१ । ८)

यह  ‘रामनाम सगुण और निर्गुण‒दोनोंको जनाने-वाला है । इसलिये सगुण उपासक भीरामनाम जपते और निर्गुण उपासक भीरामनाम जपते हैं । सगुण-साकारके उपासक हों, चाहे निर्गुण-निराकारके उपासक हों रामनामका जप सबको करना चाहिये । यह दोनोंकी प्राप्ति करा देता है ।

रामनाम अमृतके समान है; जैसे, बढ़िया भोजनमें घी और दूध मिला दो तो वह भोजन बहुत बढ़िया बन है । ऐसे ही रामनामको दूसरे साधनोंके साथ करो, चाहे केवलरामनामका जप करो, यह हमें निहाल कर देगा ।

रामनामके समान तो केवल रामनाम ही है । यह सब साधनोंसे श्रेष्ठ है । नामके दस अपराधोंमें बताया गया है‒‘धर्मान्तरैः साम्यम्’[1] नामके साथ किसीकी उपमा दी जायगी तो वह नामापराध हो जायगा । मानो नाम अनुपम है । इसमें उपमा नहीं लग सकती । इसलिये नाम’ को किसीके बराबर नहीं कह सकते ।

भगवान् श्रीराम शबरीके आश्रमपर पधारे और शबरीको कहने लगे‒

नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं ।
सावधान सुनु  धरु  मन  माहीं ॥
                          (मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ३५ । ७)

‒‘मैं तुझे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ । तू सावधान होकर सुन और मनमें धारण कर ।’ नवधा भक्ति कहकर अन्तमें कहते हैं‒सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें ॥’ (मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ३६ । ७) तेरेमें सब प्रकारकी भक्ति दृढ़ है ।’ शबरीको भक्तिके प्रकारोंका पता ही नहीं; परंतु नवधा भक्ति उसके भीतर आ गयी । किस प्रभावसे ?  ‘रामनामके प्रभावसे ! ऐसी उसकी लगन लगी कि रामनाम जपते हुए रामजीके आनेकी प्रतीक्षा निरन्तर करती ही रही । इस कारण ऋषि-मुनियोंको छोड़कर शबरीके आश्रमपर भगवान् खुद पधारते हैं ।

गुन निधान सो’ यह नाम’ गुणोंका खजाना है, मानो रामनाम लेनेसे कोई गुण बाकी नहीं रहता । बिना जाने ही उसमें सद्‌गुण, सदाचार अपने-आप आ जाते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे



[1] सन्निन्दाऽसति नामवैभवकथा श्रीशेशयो-
र्भेदधीरश्रद्धा श्रुतिशास्त्रदैशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः ।
नामास्तीति निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ हि
धर्मान्तरैः साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश ॥