(गत ब्लॉगसे आगेका)
‘अगुन
अनूपम गुन निधान सो’‒यह ‘राम’ नाम निर्गुण अर्थात् गुण रहित है । सत्त्व,
रज और तमसे अतीत है, उपमारहित है और गुणोंका भण्डार है,
दया, क्षमा, सन्तोष आदि सद्गुणोंका खजाना है,
नाम लेनेसे ये सभी आप-से-आप आ जाते हैं । यह
‘राम’
नाम सगुण और निर्गुण दोनोंका वाचक है । आगेके प्रकरणमें आयेगा‒
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी ।
उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ॥
(मानस, बालकाण्ड,
दोहा २१ । ८)
यह ‘राम’ नाम सगुण और निर्गुण‒दोनोंको जनाने-वाला है । इसलिये सगुण उपासक
भी ‘राम’ नाम जपते और निर्गुण उपासक भी
‘राम’
नाम जपते हैं । सगुण-साकारके उपासक हों,
चाहे निर्गुण-निराकारके उपासक हों
। ‘राम’
नामका जप सबको करना चाहिये । यह दोनोंकी प्राप्ति
करा देता है ।
‘राम’ नाम अमृतके समान है;
जैसे, बढ़िया भोजनमें घी और दूध मिला दो तो वह भोजन बहुत बढ़िया बन है
। ऐसे ही ‘राम’ नामको दूसरे साधनोंके साथ करो,
चाहे केवल ‘राम’ नामका जप करो, यह हमें निहाल कर देगा ।
‘राम’ नामके
समान तो केवल ‘राम’
नाम ही है । यह सब साधनोंसे श्रेष्ठ है । नामके दस अपराधोंमें बताया गया है‒‘धर्मान्तरैः साम्यम्’[1]
नामके साथ किसीकी उपमा दी जायगी तो वह नामापराध हो जायगा । मानो
नाम अनुपम है । इसमें उपमा नहीं लग सकती । इसलिये ‘नाम’ को किसीके बराबर नहीं कह सकते ।
भगवान् श्रीराम शबरीके आश्रमपर पधारे और शबरीको
कहने लगे‒
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं ।
सावधान सुनु धरु मन माहीं ॥
(मानस, अरण्यकाण्ड,
दोहा ३५ । ७)
‒‘मैं तुझे अब अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ । तू सावधान होकर सुन
और मनमें धारण कर ।’ नवधा भक्ति कहकर अन्तमें कहते हैं‒‘सकल
प्रकार भगति दृढ़ तोरें ॥’ (मानस,
अरण्यकाण्ड, दोहा
३६ । ७) ‘तेरेमें सब प्रकारकी भक्ति दृढ़ है ।’
शबरीको भक्तिके प्रकारोंका पता ही नहीं;
परंतु नवधा भक्ति उसके भीतर आ गयी । किस प्रभावसे ? ‘राम’ नामके प्रभावसे ! ऐसी उसकी लगन लगी कि ‘राम’ नाम जपते हुए रामजीके आनेकी प्रतीक्षा निरन्तर करती ही रही ।
इस कारण ऋषि-मुनियोंको छोड़कर शबरीके आश्रमपर भगवान् खुद पधारते हैं ।
‘गुन
निधान सो’ यह ‘नाम’ गुणोंका खजाना है, मानो ‘राम’
नाम लेनेसे कोई गुण बाकी नहीं रहता । बिना जाने ही
उसमें सद्गुण, सदाचार अपने-आप आ जाते हैं ।
(शेष
आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
र्भेदधीरश्रद्धा
श्रुतिशास्त्रदैशिकगिरां नाम्न्यर्थवादभ्रमः ।
नामास्तीति
निषिद्धवृत्तिविहितत्यागौ हि
धर्मान्तरैः
साम्यं नामजपे शिवस्य च हरेर्नामापराधा दश ॥
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