।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७१, गुरुवार
शारदीय नवरात्रारम्भ
मानसमें नाम-वन्दना



 (गत ब्लॉगसे आगेका)

रामनाम जपनेवाले जितने सन्त महात्मा हुए हैं । आप विचार करके देखो ! उनमें कितनी ऋद्धि-सिद्धि, कितनी अलौकिक विलक्षणता आ गयी थी ! रामनाम जपमें अलौकिकता है, तब न उनमें आयी ? नहीं तो कहाँसे आती ? इसलिये यह रामनाम गुणोंका खजाना है । यह सत्त्व, रज और तमसे रहित है और गुणोंके सहित भी है एवं व्यापक भी है । यहाँ इस प्रकार रामनाम में ’, ‘आ’ और इन तीन अक्षरोंकी महिमाका वर्णन हुआ और तीनोंकी महिमा कहकर उनकी विलक्षणता बतलायी । यहाँतक रामनामके अवयवोंका एक प्रकरण हुआ । अब गोस्वामीजी राम नामकी महिमा कहना प्रारम्भ करते हैं‒

महामन्त्रकी महिमा

महामंत्र जोइ जपत महेसू ।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू ॥
                                            (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ३)

यह रामनाम महामन्त्र है, जिसे महेश्वर’भगवान् शंकर जपते हैं और उनके द्वारा यह रामनाम-उपदेश काशीमें मुक्तिका कारण है । ’, ‘आ’ और ’‒इन तीन अक्षरोंके मिलनेसे यह रामनाम तो हुआ महामन्त्र’ और बाकी दूसरे सभी नाम हुए साधारण मन्त्र ।

सप्तकोट्यो महामन्त्राश्चित्तविभ्रमकारकाः ।
एक एव  परो  मन्त्रो रामइत्यक्षरद्वयम् ॥

सात करोड़ मन्त्र हैं, वे चित्तको भ्रमित करनेवाले हैं । यह दो अक्षरोंवाला रामनाम परम मन्त्र है । यह सब मन्त्रोंमें श्रेष्ठ मन्त्र है । सब मन्त्र इसके अन्तर्गत आ जाते हैं । कोई भी मन्त्र बाहर नहीं रहता । सब शक्तियाँ इसके अन्तर्गत हैं ।

यह रामनाम काशीमें मरनेवालोंकी मुक्तिका हेतु है । भगवान् शंकर मरनेवालोंके कानमें यह रामनाम सुनाते हैं और इसको सुननेसे काशीमें उन जीवोंकी मुक्ति हो जाती है । एक सज्जन कह रहे थे कि काशीमें मरनेवालोंका दायाँ कान ऊँचा हो जाता है‒ऐसा मैंने देखा है । मानो मरते समय दायें कानमें भगवान् शंकर रामनाम मन्त्र देते हैं । इस विषयमें सालगरामजीने भी कहा है‒
                     जग में जितेक जड़ जीव जाकी अन्त समय,
                                जम के जबर जोधा खबर लिये करे ।
                     काशीपति विश्वनाथ वाराणसी वासिन की,
                     फाँसी यम नाशन को शासन दिये करे ॥
                     मेरी प्रजा ह्वेके किम पे हैं काल दण्डत्रास,
                                सालग विचार महेश यही हिये करे ।
                     तारककी भनक पिनाकी यातें प्रानिन के,
                              प्रानके पयान समय कानमें किये करे ॥

जब प्राणोंका प्रयाण होता है तो उस समय भगवान् शंकर उस प्राणीके कानमेंरामनाम सुनाते हैं । क्यों सुनाते हैं ? वे यह विचार करते हैं कि भगवान्‌से विमुख जीवोंकी खबर यमराज लेते हैं, वे सबको दण्ड देते हैं; परन्तु मैं संसारभरका मालिक हूँ । लोग मुझे विश्वनाथ कहते हैं और मेरे रहते हुए मेरी इस काशीपुरीमें आकर यमराज दण्ड दे तो यह ठीक नहीं है । अरे भाई ! किसीको दण्ड या पुरस्कार देना तो मालिकका काम है । राजाकी राजधानीमें बाहरसे दूसरा आकर ऐसा काम करे तो राजाकी पोल निकलती है न ! सारे संसारमें नहीं तो कम-से-कम वाराणसीमें जहाँ मैं बैठा हूँ, यहाँ आकर यमराज दखल दे‒यह कैसे हो सकता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे