।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
कार्तिक कृष्ण अष्टमी, वि.सं.२०७१, गुरुवार
मानसमें नाम-वन्दना



(२ अक्तूबरके ब्लॉगसे आगेका)

‘राम’ नामके विषयमें भी ऐसी बातें शास्त्रोंमें पढ़ते हैं, सन्तोंसे सुनते हैं । ऐसे ही हमने एक घटना सुनी है

बाँकुड़ाकी  बात है । एक सज्जन थे श्रीबद्रीदासजी गोयन्का । वे अपनी बीती घटना सुनाने लगे । एक बुढ़ा बंगाली सरोवरके किनारे मछलियाँ पकड़ रहा था । श्रीजयदयालजी गोयन्का एवं बद्रीदासजीने उसे देखा और कहा‘यह बूढ़ा हो गया, बेचारा भजनमें लग जाय तो अच्छा है ।’ उससे जाकर कहा कि तुम भगवन्नाम- उच्‍चारण  करो तो, उसे ‘राम’ नाम आया ही नहीं । वह मेहनत करनेपर भी सही उच्‍चारण नहीं कर सका । कई नाम बतानेके बादमें अन्तमें ‘होरे-होरे’ कहने लगा । इस नामका उच्‍चारण हुआ और कोई नाम आया ही नहीं । उससे पूछा गया कि ‘तुम्हें एक दिनमें कितने पैसे मिलते हैं ?’ तो उन्होंने बताया कि इतनी मछलियाँ मारनेसे इतने पैसे मिलते हैं । तो उन्होंने कहा कि ‘उतने पैसोंके चावल हम तुम्हें दे देंगे । तुम हमारी दूकानमें बैठकर दिनभर होरे-होरे (हरि-हरि) किया करो ।’ उसको किसी तरह ले गये दूकानपर । वह एक दिन तो बैठा । दूसरे दिन देरसे आया और तीसरे दिन आया ही नहीं । फिर दो-तीन दिन बाद जाकर देखा, वह उसी जगह धूपमें मछली पकड़ता हुआ मिला । उन्होंने उसे कहा कि ‘तू वहाँ दूकानमें छायामें बैठा था । क्या तकलीफ थी ? तुमको यहाँ जितना मिलता है, उतना अनाज दे देंगे केवल दिनभर बैठा हरि-हरि कीर्तन किया कर ।’ उसने कहा‘मेरेसे नहीं होगा ।’ वह दूकानपर बैठ नहीं सका । ऐसी बीती हुई घटना बतायी । हमारे विश्वास हुआ कि बात तो ठीक है भाई ! पापीका शुभ काममें लगना कठीन होता है । श्रीतुलसीदासजी महाराजने कहा है

तुलसी  पूरब पाप ते  हरि चर्चा न सुहात ।
जैसे ज्वरके जोरसे  भूख  बिदा  हो  जात ॥

जब ज्वर (बुखार) का जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता । उसको अन्नमें भी गन्ध आती है । जैसे भीतरमें बुखारका जोर होता है तो अन्न अच्छा नहीं लगता, वैसे ही जिसके पापोंका जोर ज्यादा होता है, वह भजन कर नहीं सकता, सत्संगमें जा नहीं सकता ।

इसलिये सज्जनो ! एक बातपर ध्यान दें । जो भाई सत्संगमें रुचि रखते हैं, सत्संगमें जाते हैं, नाम लेते हैं, जप करते हैं, उन पुरुषोंको मामूली नहीं समझना चाहिये । वे साधारण आदमी नहीं हैं । वे भगवान्‌का भजन करते हैं, शुद्ध हैं और भगवान्‌के कृपा-पात्र हैं । परन्तु जो भगवान्‌की तरफ चलते हैं, उनको अपनी बहादुरी नहीं माननी चाहिये कि हम बड़े अच्छे हैं । हमें तो भगवान्‌की कृपा माननी चाहिये, जिससे हमें सत्संग, भजन-ध्यानका मौका मिलता है । हमें ऐसा समझना चाहिये कि ऐसे कलियुगके समयमें हमें भगवान्‌की बात सुननेको मिलती है, हम भगवान्‌का नाम लेते हैं, हमपर भगवान्‌की बड़ी कृपा है ।

जैसे नदीका प्रवाह समुद्रकी तरफ जा रहा है, ऐसे ही इस समय संसारका प्रवाह नरकोंकी तरफ बड़े जोरोंसे जा रहा है । पढ़ाईमें, रस्म-रिवाजमें, कानून-कायदोंमें, व्यापार आदि कार्योंमें जहाँ कहीं भी देखो, पापका बड़े जोरोंसे प्रवाह चल रहा है । गोस्वामीजीने वर्णन किया है

कलि  केवल  मल  मूल मलिन ।
पाप पयोनिधि जन मन मीना ॥
                                    (मानस, बालकाण्ड, २७ । ४)

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे