‘राम’ नाममें भगवान् शंकरका विशेष प्रेम है । नामके
प्रभावसे ही पार्वतीको उन्होंने अपना भूषण बना लिया ।
नाम प्रभाउ जान सिव नीको ।
कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा
१९ । ८)
वे नामके प्रभावको ठीकसे जानते हैं । समुद्रका मंथन किया गया, उसमेंसे सबसे
पहले जहर निकला तो सब देवता-असुर घबरा गये । उन्होंने भगवान् शंकरको याद किया और
कहा—‘भोले बाबा ! दुनिया मर
रही है, बचाओ !’ उन्होंने ‘राम’ नामके सम्पुटमें उस
हलाहल जहरको कंठमें रख लिया । ‘रा’ लिखकर बीचमें जहर रख लिया और ऊपर ‘म’ लिख दिया
तो अमृतका काम कर दिया उस जहरने । जो स्पर्श करनेसे भी मार दे ऐसा हलाहल जहर ।
उससे भगवान् शंकर नीलकंठ हो गये । जहर तो अपना काम करे ही । बस, कंठमें ही
उसको रोक लिया । जहर बाहर आ जाय तो मुँह कड़वा कर दे और भीतर चला जाय तो मार दे ।
ऐसे ‘राम’ नामने शिवजीको अमर बना दिया । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं—
सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू ।
लोक लाहु
परलोक निबाहू ॥
(मानस, बालकाण्ड, दोहा
२० । २)
सुमिरन करनेमें
‘राम’
नाम कठीन नहीं है । ‘रा’ और ‘म’—ये दोनों अक्षर उच्चा रण करनेमें सुगम हैं;
क्योंकि ये अक्षर अल्पप्राण हैं । जिनमें प्राण कम खर्च होते
हैं, वे अल्पप्राण कहे जाते हैं । ‘र’ का उच्चावरण जितना सुगमतासे कर सकते हैं,
उतना ‘ह’ का नहीं कर सकते; क्योंकि ‘ह’ महाप्राण है । जैसे ख,
फ, छ, ठ, थ—प्रत्येक वर्गका दूसरा और चौथा अक्षर महाप्राण है । ‘क’ बहुत समयतक कह सकते हैं,
पर ‘ख’ इतने समयतक नहीं कह सकते । बहुत जल्दी खतम हो जायेंगे प्राण;
क्योंकि महाप्राण है वह । पाँचवाँ अक्षर (‘ञ, म, ङ, ण, न’)—अल्प प्राण हैं और ‘यणश्चाल्पप्राणाः’ य, र, ल, व भी अल्पप्राण है । अल्पप्राणवाला अक्षर उच्चा्रण करनेमें सुगम
होता है और उसका उच्चाणरण भी ज्यादा देर हो सकता है । महाप्राणवाले अक्षरामें बहुत
जल्दी प्राण खतम हो जाते हैं । अतः अल्पप्राणवाले अक्षरोंके समान दूसरे नाम उतनी देरतक
नहीं ले सकते । इस कारण ‘राम’ नाम अल्पप्राण होनेसे उच्चारण करनेमें सुगम है ।
नाममें
अरुचिका कारण
वाल्मीकिजीको
अल्पप्राणवाला नाम भी क्यों नहीं आया ? कारण क्या था ? ध्यान दें ! ‘राम’ नाम उच्चारण करनेमें सुगम है; परन्तु जिसके पाप अधिक हैं,
उस पुरुषद्वारा नाम-उच्चारण कठीन हो जाता है । एक कहावत है—
मजाल क्या है जीव की, जो राम-नाम लेवे ।
पाप देवे
थाप की,
जो मुण्डो फोर
देवे ॥
जिनका अल्प पुण्य होता है, वे ‘राम’ नाम ले नहीं सकते ।
श्रीमद्भगवद्गीतामें आया है—
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता
भजन्ते मां दृढव्रताः ॥
(७ । २८)
(अपूर्ण)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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