(गत ब्लॉगसे आगेका)
जो माँ-बापका भक्त होता है, उसपर भगवान् राजी
हो जाते हैं । ‘राम’ नामसे
भगवान् मिल जायँ, दर्शन दे दें । लोकमें, परलोकमें सब जगह ही वह निर्वाह करनेवाला
है । लोकमें जो चाहिये, वह देनेवाला चिन्तामणि है और परलोकमें भगवद्दर्शन
करानेवाला है । कई ऐसे आदमी देखे हैं, जो दिनभर माँगते रहते हैं, धूमते-फिरते रहते
हैं; परन्तु उनका पेट नहीं भरता । ऐसी दशामें वे भी अगर एकान्तमें ‘राम’-‘राम’
करने लग जायँ तो प्रत्यक्षमें उनके भी ठाट लग जायगा । अन्न, जल, कपड़े आदि किसी
चीजकी कमी रहेगी नहीं । अब नाम-जप करते ही नहीं तो उसका क्या किया जाय ? नाम-जप
करके देखा जाय तो भाग्य खुल जाता है, विलक्षण बात हो जाती है । जीते-जी भाग्यमें
विशेष परिवर्तन भगवन्नामसे होता है, इसमें कोई सन्देहकी बात नहीं है । साधारण आदमी
भी नाम-जपमें लग जाता है तो लोगोंपर विशेष असर पड़ता है ।
भजन करे पतालामें परगट होत अकास ।
दाबी दूबी नहि
दबे कस्तूरी की बास
॥
कस्तूरीको सौगन्ध दिला दें कि तुम सुगन्धि मत फैलाओ तो क्या
वह रुक जायगी ? सुगन्धि तो फैल ही जायगी । इस तरहसे कोई चुपचाप भी भजन करे और
किसीको पता ही न लगने दे तो भी महाराज यह तो प्रकट हो ही जाता है । उसकी
विलक्षणता, अलौकिकता दीखने लगती है । लोगोंपर असर पड़ने लगता है; क्योंकि भगवान्का
नाम है ही ऐसा विलक्षण । इसलिये लोक और परलोक दोनोंमें लाभ होता है । साधारण घरका
बालक साधु होकर भजनमें तत्परतासे लग जाता है तो वह सन्त-महात्मा कहलाने लगता है ।
बड़े चमत्कार उसके द्वारा हो जाते हैं, जिसको पहले कोई पूछता ही नहीं था । बात क्या
है ? यह सब भगवन्नामकी महिमा है ।
बरनत बरन प्रीती बिलगाती ।
ब्रह्म जिव सम सहज संधाती ॥
(मानस, बालकाण्ड, २० । ४)
इन ‘र’, ‘आ’ और ‘म्’ का वर्णन किया जाय तो ये अलग-अलग दीखते
हैं । मानो ये तीनों वर्ण कृशानु, भानु और हिमकरके बीज-अक्षर हैं । वृक्षमें बीजसे
ही शक्ति आती है । इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमामें जो शक्ति है, वह ‘राम’
नामसे ही आयी है ।
यदादित्यगतं तेजो जगद् भासयतेखिलम्
।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥
(गीता
१५ । १२)
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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